चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल -
कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ
ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ
ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत का मज़दूर भी समझे
दिलों की बात जब हो और भी आसान लिखता हूँ
कमा लेता हूँ इतना मिल सके दो जून की रोटी
मैं बटुआ देखकर बाज़ार का सामान लिखता हूँ
कभी फूलों की घाटी से कभी दरिया से मिलता हूँ
कभी महफ़िल में बंज़ारों की, रेगिस्तान लिखता हूँ
कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शुक्रवार 29 मार्च 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteआपका हार्दिक आभार
Deleteग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत का मज़दूर भी समझे
ReplyDeleteदिलों की बात जब हो और भी आसान लिखता हूँ
वाह !! बहुत खूब कहा है
दिलों की बात बनती भी तब है जब सामने वाले को समझ में आये
हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुन्दर तुषार जी
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteबहुत सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteनमस्ते. आपका हृदय से आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार. सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम
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