चित्र साभार गूगल |
लोकसंस्कृति, गाँव की रौनक़, उत्सवजीविता को, लोकपरम्परा को याद करती लोकभाषा कविता.सादर अभिवादन सहित
एक लोकभाषा गीत -नेता डेंगू कहैं धरम के
काटै दौड़इ साँझ, भोरहरी
बिना फूल कै डाल बा.
चिरई चुनमुन गायब होय गैं
बिना कमल के ताल बा.
मेल -जोल बैठकी नदारद
बिरहा, कजरी, कव्वाली
हलुवा, पूरी के प्रसाद से
वंचित डिह, माता काली
घर में टी वी चैनल, बाहर
बिग बजार औ मॉल बा.
पान दान हुक्का संग छूटल
किस्सागोई माई कै
आभासी दुनिया में गुम हौ
चुहुल ननद भौजाई कै
कइसे मरल आँख कै पानी
ई सौ टका सवाल बा.
भजन न जोगी सारंगी कै
कुटिया, मठ सन्नाटा हौ
पक्की सड़क बनल हौ लेकिन
कदम, कदम पर काँटा हौ
नेता डेंगूँ कहैँ धरम के
कवन देश कै हाल बा.
खट्टी, मीठी जामुन कै रंग
याद न महुवा बारी कै
पीली पीली सरसों भूलल
भूलल धान कियारी कै
पइसा बढ़ल गरीबी गायब
पर उत्सव कंगाल बा.
बुलबुल, मैना, पपिहा, कोयल
लरिका ना पहिचानै ल
बाप -मतारी छोड़िके
कउनो रिश्ता ना ई जानै ल
कहाँ ओसारे, कहाँ दुवारे
गैंता और कुदाल बा.
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
लोकभाषा में रचा गया गीत अच्छी लगी सर।
ReplyDeleteप्रणाम
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १९ सितंबर २०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteलोकभाषा में रची वसी सुंदर रचना,
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteवाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteअत्यंत हृदयस्पर्शी रचना, हर एक पंक्ति अपने आप मे उत्तम है
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
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