चित्र साभार गूगल |
मुंबई ब्लास्ट के बाद इस गीत का सृजन हुआ था लेकिन इसमें संशोधन के साथ दुबारा पोस्ट कर रहा हूँ
सादर
वन्देमातरम. जयहिंद. जय जवान
सत्य अहिंसा के सीने पर वार सहेंगे आखिर कब तक
सत्य अहिंसा के
सीने पर
वार सहेंगे आखिर कब तक ?
हत्यारों का
इस धरती पर भार
सहेंगे आखिर कब तक ?
आतंकी गतिविधियों से
यह धरती
रोज कराह रही,
रावल पिंडी
बिजिंग पर अब
जनता निर्णय चाह रही,
केसर की
क्यारी में ये
अंगार रहेंगे आखिर कब तक?
उठो बुद्ध
अब ऑंखें खोलो
हर दिन हार अहिंसा की है,
भस्म करो हे
महाकाल जो
शापित धरती हिंसा की है,
हम बन करके
बालू की मीनार
ढहेंगे आखिर कब तक?
रामायण के
लंका जैसी
दुश्मन की धरती को कर दो,
धरती से अम्बर
सागर तक
प्रलयंकारी ज्वाला भर दो,
दुश्मन के
सम्मुख हम सब
लाचार रहेंगे आखिर कब तक?
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
बहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर गीत,आदरणीय शुभकामनाएँ
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Delete