गीत कवि यश मालवीय |
चित्र साभार गूगल |
राधा से ही नहीं जुड़े हैं मीरा से भी धागे
चलो बाँट ले आपस में मिल
सुख-दुःख आधा-आधा
गोकुल से बरसाने तक है
केवल राधा-राधा
कुन्ज गली से निकलें
जमुना के तट पर हो आएं
अपने से जब मिलना हो तो
थोड़ा सा छुप जाएँ
खुलकर मिलने-जुलने में है
आख़िर कैसी बाधा ?
रास रचैया,धेनु चरैया
सोते में भी जागे
राधा से ही नहीं जुड़े हैं
मीरा से भी धागे
ख़ुद का आराधन कर बैठे
जब तुमको आराधा
क़दम क़दम गोकुल वृंदावन
मथुरा की हैं गलियाँ
सूरदास की आँखों को भी
दी हैं दीपावलियाँ
जितना मोरपंख सा जीवन
उतना ही है सादा
गीतकार-यश मालवीय
बेहतरीन रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका अनुराधा जी
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-01-2022) को चर्चा मंच "सन्त विवेकानन्द" जन्म दिवस पर विशेष (चर्चा अंक-4307) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार आपका आदरणीय
ReplyDeleteअप्रतिम रचना, निस्संदेह। अंतिम पद में संभवतः 'मथुरा की हैं गलियाँ' होना चाहिए।
ReplyDeleteसर टायपिंग मिस्टेक की तरफ ध्यान दिलाने हेतु आपका हृदय से आभार।सादर प्रणाम
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब गीत।
हार्दिक आभार आपका।मकर संक्रांति की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं
Deleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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