मेरा सद्यः प्रकाशित तृतीय गीत संग्रह मेड़ों पर वसन्त अमेज़ॉन पर भी बिक्री हेतु उपलब्ध है।सादर ।आप सभी का दिन शुभ हो
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चित्र साभार गूगल |
भारत राष्ट्र,भारत की संस्कृति महान है।आज़ादी के लिए शहीद होने वाले महान पूर्वजों को कोटि- कोटि नमन !
एक देशगान-हमें यही वरदान चाहिए
भारत का
गौरव,भारत की
संस्कृति का अभिमान चाहिए ।
वन्देमातरम
गूँजे जिसमें
वह भारत बलवान चाहिए ।
जिसके
सागर की लहरों से
शंख,सीपियाँ,ज्वार निकलते,
जिसके,झील
ताल में हँसकर
अनगिन कमल पुष्प हैं खिलते,
उस भारत को
राम-सिया के
अधरों की मुस्कान चाहिए ।
हंसवाहिनी
सिंहवाहिनी
भारत माँ का संकट टालो,
राष्ट्रवाद के
हवनकुण्ड को
करो प्रज्जवलित समिधा डालो,
सोने की
चिड़िया हो जिसमें
हमें वही आख्यान चाहिए ।
सरहद से
सागर तक वीरों
पांचजन्य का शंखनाद हो,
भगत सिंह,आज़ाद
शिवाजी की
बलिदानी कथा याद हो,
हिमगिरि से
सागर तक केवल
जन गण मन का गान चाहिए।
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-तुम्हारा चाँद, तुम्हारा ही आसमान रहा
हवा में,धूप में,पानी में फूल खिलते रहे
हज़ार रंग लिए ख़ुशबुएं बदलते रहे
बड़े हुए तो सफ़र में थकान होने लगी
तमाम बच्चे जो घुटनों के बल पे चलते रहे
सुनामी,आँधियाँ, बारिश,हवाएँ हार गईं
बुझे चराग़ नई तीलियों से जलते रहे
जहाँ थे शेर के पंजे वही थी राह असल
नए शिकारी मगर रास्ते बदलते रहे
तुम्हारा चाँद तुम्हारा ही आसमान रहा
मेरी हथेली पे जुगनू दिए सा जलते रहे
कुँए के पानियों को प्यास की ख़बर ही कहाँ
हमारे पाँव भी काई में ही फिसलते रहे
सफ़र में राह बताकर वो हमको लूट गया
उसी के कारवाँ के साथ हम भी चलते रहे
कवि-जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
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एक ग़ज़ल-मौसम अच्छा धूप गुलाबी
मौसम अच्छा धूप गुलाबी क्या दूँ इसको नाम
राधा कृष्ण कहूँ या इसको लिख दूँ सीताराम
चन्दन की खुशबू में लिपटे दीपक यादों के
रामचरितमानस को लेकर बैठी दूल्हन शाम
भींगे पंखों वाली तितली लिपटी फूलों से
मौसम आया फूल तोड़ने करके चारो धाम
हरी दूब पर ओस फैलते रंग महावर के
कत्थक की मुद्रा में कोई करता रहा प्रणाम
सम्बोधन के बिना चिट्ठियां लिखता कौन भला
रिश्तों को भी देना पड़ता है अच्छा सा नाम
कवि-शायर जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
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एक ग़ज़ल-धूप निकल जाए तो अच्छा
संक्रान्ति है मौसम ये बदल जाए तो अच्छा
भींगी हैं छतें धूप निकल जाए तो अच्छा
लो अपनी ही शाखों से बग़ावत में परिंदे
अब इनका ठिकाना ही बदल जाए तो अच्छा
अब ख़त्म हो ये लूट,घरानों की सियासत
कुछ देश का कानून बदल जाए तो अच्छा
जो दिन में अंधेरों को लिए घूम रहा था
उस सूर्य को आकाश निगल जाए तो अच्छा
मैं गीत लिखूँ कैसे कुहासे में उजाले
खिड़की से कोई चाँद निकल जाए तो अच्छा
अपराधमुक्त राज्य में दागी नहीं जीतें
हर बूथ पे जनता ये सम्हल जाए तो अच्छा
उस बार भी नाटक का विजेता था हमारा
इस बार भी जादू वही चल जाय तो अच्छा
अब गंगा को नालों से बचाना है जरूरी
गोमुख पे पड़ी बर्फ़ पिघल जाए तो अच्छा
इस बार भी सरयू के किनारे हो दिवाली
फिर राम का दीपक वही जल जाए तो अच्छा
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा ग़ज़ल-
सर्द मौसम में खिली धूप गुलाबों की तरह
सर्द मौसम में खिली धूप गुलाबों की तरह
जाम खुशबू का लिए शाम शराबों की तरह
छोड़कर आसमां महताब चले आओ कभी
तुझको सिरहाने सजा दूँगा किताबों की तरह
जिनकी तस्वीर तसव्वुर में लिए बैठे रहे
वो मुझे भूल गए रात के ख़्वाबों की तरह
ज़िन्दगी तुझको समझना कहाँ आसान रहा
उम्र भर बैठे रहे ले के हिसाबों की तरह
मैंने हर बात ज़माने से कही है दिल की
जिसको दुनिया ये छिपाती है नकाबों की तरह
शायर/कवि जयकृष्ण राय तुषार
(प्रयाग की युवा गायिका स्वाति निरखी की प्रेरणा से)
चित्र साभार गूगल |
गीत कवि यश मालवीय |
चित्र साभार गूगल |
राधा से ही नहीं जुड़े हैं मीरा से भी धागे
चलो बाँट ले आपस में मिल
सुख-दुःख आधा-आधा
गोकुल से बरसाने तक है
केवल राधा-राधा
कुन्ज गली से निकलें
जमुना के तट पर हो आएं
अपने से जब मिलना हो तो
थोड़ा सा छुप जाएँ
खुलकर मिलने-जुलने में है
आख़िर कैसी बाधा ?
रास रचैया,धेनु चरैया
सोते में भी जागे
राधा से ही नहीं जुड़े हैं
मीरा से भी धागे
ख़ुद का आराधन कर बैठे
जब तुमको आराधा
क़दम क़दम गोकुल वृंदावन
मथुरा की हैं गलियाँ
सूरदास की आँखों को भी
दी हैं दीपावलियाँ
जितना मोरपंख सा जीवन
उतना ही है सादा
गीतकार-यश मालवीय
चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-मौसम सारे अच्छे थे
धूप,हवाएँ, बादल, बिजली,चाँद-सितारे अच्छे थे
जब तक उसके साथ सफ़र था मौसम सारे अच्छे थे
मन्द मन्द मुस्कान किसी की माँझी भी गुलज़ार सा था
फूलों की टोकरियाँ लादे सभी शिकारे अच्छे थे
पक्का घर हैं आँखें सुंदर पर आँखों में नींद नहीं
कच्चे घर में दिखने वाले ख़्वाब हमारे अच्छे थे
बुलबुल के गाने सुनते थे खेत की मेड़ों पर चलकर
गाँव के मंज़र की मत पूछो सभी नज़ारे अच्छे थे
मिलना-जुलना प्यार-मोहब्बत ख़तो-ख़िताबत आज कहाँ
तुम भी सच्चे दोस्त थे पहले हम भी प्यारे अच्छे थे
हिरनी,मछली,जल पाखी का प्यास से गहरा रिश्ता था
लहरों से हर पल टकराते नदी किनारे अच्छे थे
अपनी बोली-बानी अपना कुनबा लेकर चलते थे
बस्ती-बस्ती गीत सुनाते ये बंजारे अच्छे थे
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
चित्र साभार गूगल |
एक ग़ज़ल-
चटख मौसम,किताबें,फूल
चटख मौसम,किताबें,फूल,कुछ किस्सा,कहानी है
मोहब्बत भी किसी बहते हुए दरिया का पानी है
नहीं सुनती ,नहीं कुछ बोलती ये चाँदनी गूँगी
मगर जूड़े में बैठी गूँथकर ये रात रानी है
सफ़र में थक के मैं पीपल के नीचे लेट जाता हूँ
दिए कि लौ में अब भी गाँव की संध्या सुहानी है
ये संगम है यहाँ रेती,हवन,नावें,परिंदे हैं
कमण्डल में कहीं गंगा,कहीं यमुना का पानी है
भले गोमुख से निकली है मगर देवों की थाती है
भगीरथ की तपस्या की ये गंगा माँ निशानी है
हमारे देश की मिट्टी में चन्दन और केसर है
कहीं अमरूद का मौसम कहीं लीची,खुबानी है
ज़रूरत है नहीं हमको शहर के ताज़महलों की
हमारे गाँव में उत्सव,तितलियाँ, मेड़ धानी है
कवि/शायर जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
माननीय प्रधानमन्त्री भारत सरकार |
एक गीत-सौ प्रतिशत मतदान कीजिए
लोकतंत्र सबसे सुन्दर है
बस इसका गुणगान कीजिए।
भारत माँ के गौरव ख़ातिर
शत-प्रतिशत मतदान कीजिए।
सबके भाषण को सुनिएगा
भ्रष्टाचारी मत चुनिएगा
राष्ट्र प्रेम के धागों से ही
वस्त्र तिरंगे का बुनिएगा
जिनको सत्ता मद में भूली
उनको अब सम्मान मिल रहा
कृत्रिम फूल अब सूख गए है
कीचड़ में फिर कमल खिल रहा
बरसों रहे उपेक्षित मेजर
ध्यानचंद का ध्यान कीजिए।
जिनके साहस ने बीजिंग के
बज्र वक्ष को चीर दिया है
पलक झपकते संविधान को
एक नया कश्मीर दिया है
काशी,सरयू,गंगा के तट
चमक उठा दिनमान प्रखर है
खण्ड-खण्ड केदार धाम का
फिर से निर्मित स्वर्ण शिखर है
काँप रहे अपराधी जिनसे
उन्हें वोट का दान कीजिए ।
दंगा मुक्त प्रदेश बन गया
अपराधी यमलोक जा रहे
अब किसान,लाचार घरों में
बैठे सुविधा अन्न पा रहे
समरसता के पाखण्डों में
देश बहुत दिन तक रोया था
सत्य,सनातन से मुख मोड़े
संविधान घर में सोया था
भारत का मस्तक ऊँचा है
आज आप अभिमान कीजिए।
जितना मिला समय यह कम है
अभी बहुत बाकी होना है
अभी नागफनियों के वन में
केसर,चंदन को बोना है
फिर सोने की चिड़िया
भारत माता के हर तरु पर बोले
शत्रु भस्म हो जाए पल में
जब जब तृतीय नेत्र को खोले
सबके सुख-दुःख में जो शामिल
उस योगी का मान कीजिए
कवि-जयकृष्ण राय तुषार
माननीय गृहमन्त्री भारत सरकार |
चित्र -गूगल से साभार आप सभी को होली की बधाई एवं शुभकामनाएँ एक गीत -होली आम कुतरते हुए सुए से मैना कहे मुंडेर की | अबकी होली में ले आन...