Monday, 15 April 2019

एक गीत -जागो मतदाता भारत के



चित्र -साभार गूगल 


एक विक्षोभ से उपजा गीत-जागो मतदाता भारत के 
फिर एक
महाभारत होगा
दुर्योधन खुलकर बोल रहा ।
द्रौपदी हो
गयी अपमानित
कौरव सिंहासन डोल रहा ।


संसद में
कचरा मत फेंको
इतिहास तुम्हें गाली देगा,
अच्छे फूलों की
खुशबू तो
अच्छा उपवन, माली देगा,
जागो मतदाता
भारत के
यह वक्त तुम्हें ही तोल रहा ।

भाषा-बोली
आचरण हीन,
प्रतिनिधि कैसे बन जाते हैं,
मत राष्ट्रगीत
की बात करो
ये राष्ट्रगान कब गाते हैं ?
इस राजनीति
के गिरने में
बस वोट बैंक का रोल रहा ।

तमगे
लौटाने वाले चुप
नारीवादी ख़ामोश रहे ,
कुछ अमृत पी
कुछ मदिरा पी
दरबारों में मदहोश रहे ,
हंसो के
मानसरोवर में
कोई तो है विष घोल रहा |

यह मौन
तुम्हारा सुनो भीष्म
सर शैय्या पर लज्जित होगा,
हे द्रोण ! कृपा !
अश्वस्थामा !
तू भी कल अभिशापित होगा,
गांधारी
पट्टी बांधे है
धृतराष्ट्र मुखौटा खोल रहा ।

8 comments:

  1. बहुत सुन्दर ... व्यंगात्मक गीत बहुत कुछ कह रहा है आज की राजनीति पर ...

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 17अप्रैल 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. भाई दिगम्बर नसवा जी सुश्री पम्मी जी आप दोनों का हृदय से आभार

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 16/04/2019 की बुलेटिन, " सभी ठग हैं - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. बहुत ही लाजवाब.....
    समसामयिक सटीक एवं सार्थक....
    वाह!!!

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  6. अति उत्तम । लगा कक्षा-कक्ष में हूँ और स्व. श्री मैथिलीशरण गुप्त या दिन्कर जी को पढ़ रही हूँ ।

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    1. आदरणीय मीना जी आपने मुझे बहुत बड़ी उपाधि दे दिया | कहाँ दिनकर ,राष्ट्रकवि गुप्त जी और कहाँ मैं और मेरी छोटी सी कोशिश |आपका हार्दिक आभार

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  7. आप सभी शुभ चिंतकों का हार्दिक आभार

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