Saturday 22 September 2012

गज़ल -किसी बच्चे को इक टॉफी थमा दो फिर हँसी देखो

चित्र -गूगल से साभार 
किसी बच्चे को इक टॉफी थमा दो फिर हँसी देखो 
किताबों में नहीं लिक्खा है ये सच है अभी देखो 
किसी बच्चे को इक टॉफी थमा दो फिर हँसी देखो 

अगर रंजिश भी है तो फैसले करिए  मोहब्बत से 
किसी मजदूर के गुस्से में उसकी बेबसी देखो 

रसोईघर के चूल्हों को बुझा देने की है साजिश 
हुकूमत  की मोहब्बत और हमसे आशिकी देखो 

समन्दर को बड़ा कहते हैं सब ,पर मैं नहीं कहता 
कई दरिया का जल पीता है उसकी तिश्नगी देखो 


मुखालिफ़ मौसमों में ये धुँआ ,कालिख नहीं देखो 
अँधेरे में मशालों में है कितनी रौशनी देखो 

वो इक बूढ़ा जिसे बच्चे अकेला छोड़ देते हैं 
सफ़र में जब कभी गिरता उठाते अजनबी देखो 

किसी चश्में से मैं देखूँ हमेशा वो नज़र आये 
मेरी गज़लों से उसके हुस्न  की बाबस्तगी देखो 

शहर का फूल है खुशबू भी उसकी गर्द ओढ़े है 
मेरी बस्ती के फूलों में हमेशा ताज़गी देखो 
चित्र -गूगल से साभार 

14 comments:

  1. समन्दर को सभी कहते बड़ा ,पर मैं नहीं कहता
    कई दरिया का जल पीता है उसकी तिश्नगी देखो ।

    कहाँ टौफ़ी से शुरू कर गज़ल को कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया .... बहुत खूबसूरत

    ReplyDelete
  2. आदरणीय संगीता जी भाई प्रवीण पाण्डेय जी आप सभी का आभार निरन्तर हमारा उत्साहवर्धन करते रहने के कारण |

    ReplyDelete
  3. समन्दर को सभी कहते बड़ा ,पर मैं नहीं कहता
    कई दरिया का जल पीता है उसकी तिश्नगी देखो

    ...बहुत खूब! हरेक शेर दिल को छू गया..बेहतरीन गज़ल..

    ReplyDelete
  4. समन्दर को सभी कहते बड़ा ,पर मैं नहीं कहता
    कई दरिया का जल पीता है उसकी तिश्नगी देखो
    ......इसके लिए "बेहतरीन" भी कम लग रहा है !

    ReplyDelete
  5. दिल में सकारात्मक उद्गारों को भरती एक सुन्दर रचना के लिए आभार!

    ReplyDelete
  6. आस-पास की बिखरी चीज़ों को बिम्बों में क़ैद कर आपने एक बेहतरीन ग़ज़ल पेश किया है, जो काफ़ी देर तक मन पर राज करने वाली है।

    ReplyDelete

  7. वो इक बूढ़ा जिसे बच्चे अकेला छोड़ देते हैं
    सफ़र में जब कभी गिरता उठाते अजनबी देखो

    मार्मिक

    सभी शेर एक से बढ़कर एक

    ReplyDelete
  8. आदरणीय कैलाश शर्मा जी ,वंदना जी भाई मनोज जी
    निवेदिता जी और शालिनी जी आप सभी का आभार

    ReplyDelete
  9. अगर रंजिश भी है तो फैसले करिए मोहब्बत से
    किसी मजदूर के गुस्से में उसकी बेबसी देखो

    bhai Tushar ji tareef ke liye shabd km pd gye .....kya kru ...??? sadar abhar.

    ReplyDelete
  10. रसोईघर के चूल्हों को बुझा देने की है साजिश
    हुकूमत की मोहब्बत और हमसे आशिकी देखो

    वक्त की नब्ज टटोलती अच्छी गजल।

    ReplyDelete
  11. अच्छी गजल के लिए बधाई स्वीकारे .

    ReplyDelete
  12. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल... खासकर आखिरी शेर तो सवा शेर है...

    ReplyDelete
  13. आप सभी का हार्दिक आभार |

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक ग़ज़ल -ग़ज़ल ऐसी हो

  चित्र साभार गूगल  एक ग़ज़ल - कभी मीरा, कभी तुलसी कभी रसखान लिखता हूँ  ग़ज़ल में, गीत में पुरखों का हिंदुस्तान लिखता हूँ  ग़ज़ल ऐसी हो जिसको खेत ...