चित्र -गूगल से साभार |
पढ़ते -पढ़ते
आप, और हम
लिखते -लिखते बोर हो गए |
राजनीति के
इस अरण्य में
कितने आदमखोर हो गए |
पाँव तले
शीशों की किरचें
चेहरों पर नाख़ून दिख रहे ,
अदब घरों में
तने असलहे
फिर भी हम नवगीत लिख रहे ,
कटी पतंगें
कब गिर जाएँ
हम मांझे की डोर हो गए |
अख़बारों
के पहले पन्ने
उनके जो बदनाम हो गए ,
कालजयी
कृतियों के लेखक
कलाकार गुमनाम हो गए ,
काले कौवे
हंस बन गए
सेही वन के मोर हो गए |
गिरते पुल हैं
टूटी सड़कें
प्रजातंत्र लाचार हो गया ,
राजनीति
का मकसद सेवा नहीं
सिर्फ़ व्यापार हो गया ,
क्रांतिकारियों
के वंशज हम
गिरते पुल हैं
ReplyDeleteटूटी सड़कें
प्रजातंत्र लाचार हो गया ,
राजनीति
का मकसद सेवा नहीं
सिर्फ़ व्यापार हो गया ,
bilkul sach likha hai aapne ...
sundar rachna ...!!
कभी मुँह पर ताले जड़े, कभी पेड़ पर चढ़े,
ReplyDeleteदेखो, हम तो ऐसे ही क्षितिज की ओर बढ़े।
बहुत सुन्दर....
ReplyDeleteकटी पतंगें
कब गिर जाएँ
हम मांझे की डोर हो गए |
लाजवाब अभिव्यक्ति......
वाह!!!
सादर
अनु
इस नवगीत ने देश की वर्तमान पीड़ा को स्वर दिया है। ...गज़ब!
ReplyDeleteआज के हालात पर सटीक प्रस्तुति ... सुंदर गीत
ReplyDeleteआज की राजनितिक परिवेश पर सटीक रचना..
ReplyDeleteबेहतरीन और लाजवाब...
:-)
अख़बारों
ReplyDeleteके पहले पन्ने
उनके जो बदनाम हो गए ,
कालजयी
कृतियों के लेखक
कलाकार गुमनाम हो गए ,
काले कौवे
हंस बन गए
सेही वन के मोर हो गए ...
बहुत खूब ... आज के हालात पे करार तप्सरा है ... लाजवाब नवगीत है ...
AAPKE BLOG PAR AAKAR BAHUT ACHCHHA
ReplyDeleteLAGAA HAI . EK UMDA RACHNE PDHNE KA
SAUBHAGYA PRAAPT HUA HAI .
AAPKE BLOG PAR AAKAR BAHUT ACHCHHA
ReplyDeleteLAGAA HAI . EK UMDA RACHNE PDHNE KA
SAUBHAGYA PRAAPT HUA HAI .
साथी
ReplyDeleteसूरज बनना होगा
अन्धेरे मुँहजोर हो गए |
बहुत सच कहा है.अब तो यही एक उपाय बचा है...बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...
कहीं ज़िंदगी खुद न आदमखोर बन जाय!
ReplyDeleteराजनीति का अरण्य ही ऐसा है जिस पर जितना कहो, लिखो कम ही कम है
ReplyDeleteबहुत सार्थक सटीक प्रस्तुति
आप सभी शुभचिंतकों का हृदय से आभार |
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