Saturday, 18 August 2012

एक प्रेम गीत -मैं तुझमें तू कहीं खो गयी

चित्र -गूगल से साभार 
एक प्रेमगीत -मैं तुझमें तू कहाँ खो गयी 

यह भी क्षण 
कितना सुन्दर है 
मैं तुझमें तू कहीं खो गयी |
इन्द्रधनुष 
की आभा से ही 
प्यासी धरती हरी हो गयी |

जीवन बहती नदी 
नाव तुम ,हम 
लहरें बन टकराते हैं ,
कुछ की किस्मत 
रेत भुरभुरी कुछ 
मोती भी पा जाते हैं ,
मेरी किस्मत 
बंजारन थी 
जहाँ पेड़ था वहीँ सो गयी |

तेरी इन 
अपलक आँखों में 
आगत दिन के कुछ सपने हैं ,
पांवों के छाले 
मुरझाये अब 
फूलों के दिन अपने हैं ,
मेरा मन 
कोरा कागज था 
उन पर तुम कुछ गीत बो गयी |
चित्र -गूगल से साभार 
[ सबसे ऊपर लगे चित्र को देखकर ही इस गीत को लिखने का भाव प्रकट हुआ |इधर कुछ दिनों से लिखना मुश्किल हो रहा है फिर भी कोशिश कर रहा हूँ |]

5 comments:

  1. चित्र को देख कर रचना के भाव अच्छे बने है,,,
    बधाई,,,,तुसार जी ,,,,
    RECENT POST...: शहीदों की याद में,,

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  2. कहाँ मुश्किल था लिखना...
    इतना सहज गीत बन पड़ा है....
    बेहद सुन्दर.....

    सादर
    अनु

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  3. बहुत सुन्दर गीत लिखा है...
    कोशिश सफल हुई सर जी....
    :-)

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  4. रूमानियत की कविता

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  5. बहुत ही कोमल अभिव्यक्ति, कटी पतंग की याद आ गयी..

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