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चित्र -गूगल से साभार |
बापू तेरे सपनों वाली
वह आज़ादी कहाँ गयी |
तुम जिसको चरखे में
बुनते थे वह खादी कहाँ गयी |
नेता ,मंत्री खुलेआम
अब सिर्फ़ तिजोरी भरते हैं .
सत्यमेवजयते को
हर दिन झूठा साबित करते हैं ,
राजनीति वह पहलेवाली
सीधी -सादी कहाँ गयी |
ठेकेदार व्यवस्था वाले
ठेकेदार व्यवस्था वाले
राजमार्ग सब टूटे हैं ,
जन को पूछे कहाँ सियासत
करम हमारे फूटे हैं ,
और अधिक पाने में
अपनी रोटी आधी कहाँ गयी |
राजा जितना गूंगा -बहरा
उतने ही हरकारे हैं ,
बंजर धरती ,कर्ज किसानी
हम कितने बेचारे हैं ,
रामराज के सपनों वाली
वह शहजादी कहाँ गयी |
जो भी सूर्य उगाते हैं हम
उसको राहु निगल जाता है ,
सत्ता पाकर धर्मराज भी
अक्सर यहाँ फिसल जाता है ,
जो सबका सुख दुःख सुनती थी
वह आबादी कहाँ गयी |
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
ReplyDeleteसादर
बहुत खूब...
ReplyDeleteस्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई।
सलाम बंधुवर...सीधे और सपाट शब्दों में जो प्रश्न उठाये हैं...वो लाजवाब हैं...हम होंगे कामयाब...पर कब होंगे कामयाब...आधे से ज्यादा जीवन तो निकल गया...
ReplyDeleteजाने कहाँ चली गयी ..वो आज़ादी...वो रोटी...
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.
स्वतन्त्रता दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएँ!
सादर
अनु
बापू तेरे सपनों वाली
ReplyDeleteवह आज़ादी कहाँ गयी |
तुम जिसको चरखे में
बुनते थे वह खादी कहाँ गयी |
Waqayee...
इन ज्वलंत प्रश्नों का उत्तर पाने का हक हर भारतीय को है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत।
स्वप्न है अभी कहीं, स्वप्न की जो आस थी,
ReplyDeleteबाँध टूटता रहा, रिक्तता की प्यास थी।
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteजो भी सूर्य उगाते हैं हम
ReplyDeleteउसको राहु निगल जाता है ,
सत्ता पाकर धर्मराज भी
अक्सर यहाँ फिसल जाता है ,
जो सबका सुख दुःख सुनती थी
वह आबादी कहाँ गयी |
...बहुत ही सटीक और सुंदर अभिव्यक्ति...
शानदार प्रस्तुति .......राय साहब ....बहुत -२ शुभकामनाएं ...
ReplyDeleteसराहनीय ,शानदार रचना सर।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
वाह | बस नमन बापू |
ReplyDeleteबहुत खूब!
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