चित्र -गूगल से साभार |
एक प्रेमगीत -मैं तुझमें तू कहाँ खो गयी
यह भी क्षण
यह भी क्षण
कितना सुन्दर है
मैं तुझमें तू कहीं खो गयी |
इन्द्रधनुष
की आभा से ही
प्यासी धरती हरी हो गयी |
जीवन बहती नदी
नाव तुम ,हम
लहरें बन टकराते हैं ,
कुछ की किस्मत
रेत भुरभुरी कुछ
मोती भी पा जाते हैं ,
मेरी किस्मत
बंजारन थी
जहाँ पेड़ था वहीँ सो गयी |
तेरी इन
अपलक आँखों में
आगत दिन के कुछ सपने हैं ,
पांवों के छाले
मुरझाये अब
फूलों के दिन अपने हैं ,
मेरा मन
कोरा कागज था
उन पर तुम कुछ गीत बो गयी |
चित्र को देख कर रचना के भाव अच्छे बने है,,,
ReplyDeleteबधाई,,,,तुसार जी ,,,,
RECENT POST...: शहीदों की याद में,,
कहाँ मुश्किल था लिखना...
ReplyDeleteइतना सहज गीत बन पड़ा है....
बेहद सुन्दर.....
सादर
अनु
बहुत सुन्दर गीत लिखा है...
ReplyDeleteकोशिश सफल हुई सर जी....
:-)
रूमानियत की कविता
ReplyDeleteबहुत ही कोमल अभिव्यक्ति, कटी पतंग की याद आ गयी..
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