चित्र -गूगल से साभार |
क्या सीखा
रैदास से भाई ?
भरे कमण्डल में
महंगाई |
तुम कबीर का
हाल न पूछे ,
भूत -प्रेत
बेताल न पूछे ,
भूले तुलसी
की चौपाई |
जाति -धरम की
किए सियासत ,
फिर चुनाव में
अपनी सांसत ,
हम बकरे
तुम हुए कसाई |
घर में उड़ती
धूल न देखा ,
पढ़े न घोटालों
का लेखा ,
तुलसी चौरे
पर मुरझाई |
वही पुरानी
ढपली गाना ,
कैसे भी हो
सत्ता पाना ,
सोने का मृग
सीता माई |
धूनी जैसे
होते चूल्हे ,
हाथ बंधे हैं
टूटे कूल्हे ,
और पाँव में
फटी बिवाई |
बहरे कान
ढकी हैं ऑंखें ,
जिन्दा चिड़िया
टूटी पाँखें ,
उड़े घोंसले
आंधी आई |
राजनीति अब
खेल तमाशा ,
शकुनि और
शतरंजी पासा ,
धर्मराज सब
गूंगे भाई |
[एक बड़ी पार्टी के युवराज कल बनारस में संत रविदास जी के मन्दिर में गए थे |देश की बड़ी -बड़ी समस्याओं पर युवराज मौन हैं |काश मूल समस्याओं पर अपना ध्यान खींचते |भाई अब जनता बहुत जागरूक है ]
[एक बड़ी पार्टी के युवराज कल बनारस में संत रविदास जी के मन्दिर में गए थे |देश की बड़ी -बड़ी समस्याओं पर युवराज मौन हैं |काश मूल समस्याओं पर अपना ध्यान खींचते |भाई अब जनता बहुत जागरूक है ]
बहरे कान
ReplyDeleteढकी हैं ऑंखें ,
जिन्दा चिड़िया
टूटी पाँखें ,...badhiyaa
बिल्कुल सटीक चित्रण किया है।
ReplyDeleteसटीक चित्रण है पुराने पात्रों को ले कर ... लाजवाब ....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति है.
ReplyDeleteकुछ बदले मिजाज की यथार्थ कविता , पसंद आई , बहुत -2 बधाई जी /
ReplyDeleteतुषार जी नमस्कार, सटीक चित्रण बहरे कान------
ReplyDeleteसभी पके हैं..
ReplyDeleteअंधे आगे
ReplyDeleteक्या रोना है
बांटो सुख
सच्चा टोना है
परहित सरिस
धर्म नहीं भाई
आपकी रचनायें लिखने को प्रेरित करतीं हैं...