Wednesday, 8 January 2025

एक ग़ज़ल -अपनी ग़ज़ल के साथ

 

चित्र साभार गूगल 

दस्तक न दो किवाड़ पे , खुशबू कमल के साथ 

मशरूफ़ हूँ मैं इन दिनों अपनी ग़ज़ल के साथ


अब चाँदनी का अक्स निहारुँ क्या झील में 

मौसम की जंग में हूँ मैं अपनी फसल के साथ 


कुछ दिन जियेंगे लोग गलतफहमियों के संग 

फिर आ गया है गाँव में कोई रमल के साथ 


दरिया के पानियों पे नज़ारे हसीन हैं 

कैसे परिंदे चोंच लड़ाते हैं जल के साथ 


धरती से लोकरंग मिटाने की ज़िद न कर 

जिन्दा रहें ये रंग जरुरी बदल के साथ 

कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -फूलों का हार दे

 

चित्र साभार गूगल 

एक ताज़ा ग़ज़ल 


पर्वत, नदी, दरख़्त, तितलियों को प्यार दे 

अपनी हवस को छोड़ ये मौसम संवार दे 


इतना ग़रीब हूँ कि इक तस्वीर तक नहीं 

सपनों में आके माँ कभी मुझको पुकार दे 


मुझको भी तैरना है परिंदो के साथ में 

संगम के बीच माँझी तू मुझको उतार दे 


झूले पे मैं झुलाऊँगा राधा जू स्याम को 

चन्दन की काष्ठ, भक्ति से गढ़के सुतार दे 


दुनिया की असलियत को परखना ही है अगर 

ए दोस्त मोह माया का चश्मा उतार दे 


काशी में तुलसीदास या मगहर में हों कबीर

दोनों ही सिद्ध संत हैं दोनों को प्यार दे 


जिस कवि के दिल में राष्ट्र हो वाणी में प्रेरणा 

उस कवि को यह समाज भी फूलों का हार दे 


कवि /शायर 

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -अपनी ग़ज़ल के साथ

  चित्र साभार गूगल  दस्तक न दो किवाड़ पे , खुशबू कमल के साथ  मशरूफ़ हूँ मैं इन दिनों अपनी ग़ज़ल के साथ अब चाँदनी का अक्स निहारुँ क्या झील में  म...