Monday, 11 August 2025

एक ग़ज़ल -मौसम का रंग

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल 

तितली का इश्क़, बाग का श्रृंगार ले गया
खिलते ही सारे फूल वो बाज़ार ले गया 

मौसम का रंग फीका है, भौँरे उदास हैं
गुलशन का कोई शख्स कारोबार ले गया 

उसका ही रंगमंच था नाटक उसी का था 
मुझसे चुराके बस मेरा किरदार ले गया 

अपने शहर का हाल मुझे ख़ुद पता नहीं
भींगा था कोई धूप में अख़बार ले गया

दरिया के बीच जाके मुझे तैरना पड़ा 
कश्ती मैं अपने साथ में बेकार ले गया 

आँधी नहीं है फिर भी परिंदो का शोर है 
जंगल की शांति फिर कोई गुलदार ले गया 

ख्वाबों में गुलमोहर ही सजाता था जो कभी 
वो फूल देके मुझको सभी ख़ार ले गया 

इस बार भी न दोस्तों से गुफ़्तगू हुई 
साहब का दौरा अबकी भी इतवार ले गया 

कवि शायर जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल


Friday, 1 August 2025

एक ताज़ा ग़ज़ल -सब घराने आपकी मर्ज़ी से ही गाने लगे

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल 

साज साजिन्दे सभी महफ़िल में घबराने लगे 

सब घराने आपकी मर्ज़ी से ही गाने लगे 


भूल जाएगा ज़माना दादरा, ठुमरी, ग़ज़ल 

अब नई पीठी को शापिंग माल ही भाने लगे 


जिंदगी भी दौड़ती ट्रेनों सी ही मशरूफ़ है 

आप मुद्द्त बाद आए और अभी जाने लगे 


झील में पानी, हवा में ताज़गी मौसम भी ठीक 

फूल में खुशबू नहीं भौँरे ये बतियाने लगे


प्यार से लोटे में जल चावल के दाने रख दिए

फिर कबूतर छत में मेरे हाथ से खाने लगे


हम भी बचपन में शरारत कर के घर में छिप गए

अब बड़े होकर ज़माने भर को समझाने लगे


बीच जंगल से गुजरते अजनबी को देखकर

आदतन ये रास्ते फिर फूल महकाने लगे


देखकर प्रतिकूल मौसम उड़ गए संगम से जो

ये प्रवासी खुशनुमा मौसम में फिर आने लगे

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल


Thursday, 31 July 2025

नई किताब हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार -श्री ज्ञानप्रकाश विवेक

 

 नई किताब

आदरणीय श्री ज्ञानप्रकाश विवेक जी


हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार-लेखक श्री ज्ञान प्रकाश विवेक

हिन्दी ग़ज़ल पर वाणी प्रकाशन से आदरणीय ज्ञानप्रकाश विवेक की बेहतरीन आलोचनात्मक पुस्तक प्राप्त हुई. 371 पेज की यह पुस्तक है इसमें विशद आलेख हैं. मुझे भी शामिल किया गया है. बहुत मेहनत के साथ कुल पांच वर्षों के अथक प्रयास से यह पुस्तक प्रकाशित हुई है.इस पुस्तक में कुल तीन खण्ड हैं बहुत बहुत बधाई आदरणीय ज्ञान प्रकाश जी



पुस्तक -हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार 

लेखक -श्री ज्ञान प्रकाश विवेक 

प्रकाशक वाणी प्रकाशन नई दिल्ली 

मूल्य सजिल्द -795

Monday, 28 July 2025

एक गीत -सारंगी को साधो जोगी

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -

सारंगी को 

साधो जोगी 

बन्द घरों की खिड़की खोलो.

टूटे दिल 

उदास मन वालों के 

संग कुछ क्षण बैठो बोलो.


झाँक रहे 

दिन भर यन्त्रों में 

गमले में चंपा मुरझाई,

भूल गया 

मौसमी गीत मन 

किसे पता कब चिड़िया गाई,

धूल भरे आदमकद 

दरपन को 

आँचल से पोछो धो लो.


बखरी हुई

उदास ग़ुम हुई

दालानों की हँसी-ठिठोली,

रंगोली के

रंग कृत्रिम हैं

पान बेचता कहाँ तमोली,

कहाँ गए

वो हँसने वाले

याद करो उनको फिर रो लो.


महुआ, पीपल

नीम-आम के

नीचे कजरी बैठ रम्भाती,

पीकर पानी

नदी-ताल का

वन में खाते नमक चपाती,

डांट पिता की

याद करो फिर

माँ की यादों के संग हो लो.

कवि

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल

Saturday, 19 July 2025

एक ग़ज़ल -अब तो बाज़ार की मेंहदी लिए बैठा सावन

  

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल 


ग़ुम हुए अपनी ही दुनिया में सँवरने वाले 

हँसके मिलते हैं कहाँ राह गुजरने वाले 


घाट गंगा के वही नाव भी केवट भी वही 

अब नहीं राम से हैं पार उतरने वाले 


फैसले होंगे मगर न्याय की उम्मीद नहीं 

सच पे है धूल गवाहान मुकरने वाले 


अब तो बाज़ार की मेंहदी लिए बैठा सावन

रंग असली तो नहीं इससे उभरने वाले


ढूँढता हूँ मैं हरेक शाम अदब की महफ़िल

जिसमें कुछ शेर तो हों दिल में उतरने वाले



कवि जयकृष्ण राय तुषार

सभी चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -हर मौसम में रंग फूल ही भरते हैं

 

चातक पक्षी

एक ताज़ा गीत 


सूखे जंगल 

का सारा 

दुःख हरते हैं.

झीलों से 

उड़कर ये 

बादल घिरते हैं.


आसमान में 

कितने 

चित्र बनाते हैं,

महाप्राण

बन

बादल राग सुनाते हैं.

फूल -

पत्तियों पर 

अमृत बन झरते हैं.


कजली गाते 

नीम डाल पर 

झूले हैं,

कमल, कुमुदिनी 

चंपा 

गुड़हल फूले हैं,

हर मौसम में 

रंग 

फूल ही भरते हैं.


मेघों के 

मौसम भी 

चातक प्यासा है,

दूर कहीं 

खिड़की में 

हँसी बतासा है,

दिन भर 

किस्से याद 

पुराने आते हैं.

चित्र साभार गूगल


गीतकार -जयकृष्ण राय तुषार

Sunday, 13 July 2025

मौसम का गीत -ढूँढता है मन

 

चित्र साभार गूगल
ढूंढता है

मन शहर की 
भीड़ से बाहर.
घास, वन चिड़िया 
नदी की धार में पत्थर.

नीम, पाकड़ 
और पीपल की
घनी छाया,
सांध्य बेला 
आरती की 
स्वर्ण सी काया,
चिट्ठियों में
ढक गए हैं फूल से अक्षर.

तन बदन दिन
घास मिट्टी
होंठ पर मुरली,
दो अपरिचित
कर रहे हैं
धूप की चुगली,
याद आए
अल्पनाओं से सजे कोहबर.

साज
मौसम का
परिंदे गा रहे ठुमरी,
गाँव-घर
सिवान, गलियाँ
गूँजती कजरी,
घाट काशी के
लगे फिर बोलने हर हर.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Friday, 11 July 2025

माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी को ग़ज़ल संग्रह भेंट करते हुए

 इलाहाबाद अब प्रयागराज का इंडियन कॉफी हॉउस कभी साहित्य का बहुत बड़ा अड्डा था तमाम नामचीन कवि लेखक यहाँ साहित्य विमर्श करते थे. आज वह बात तो नहीं लेकिन कभी कभी कवि, लेखक, पत्रकार प्रोफ़ेसर आ ही जाते हैं. कभी कभी सेवानिवृत न्यायमूर्ति भी आ जाते हैं. आज अकस्मात अपने समय के विख्यात न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी दिखे तो मैंने अपना ग़ज़ल संग्रह देते हुए फोटो का आग्रह किया तो माननीय सहज भाव से स्वीकार कर लिए. आभार आपका सर

माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी
सेवानिवृत्त



Sunday, 6 July 2025

किताब की समीक्षा -मनोरंजन अमर उजाला

 ग़ज़ल संग्रह "सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है"की समीक्षा आज अमर उजाला में साहित्यिक पेज मनोरंजन में छपी है. लेखक श्री श्री चित्रसेन रजक जी सम्पादक श्री देव प्रकाश चौधरी जी का हृदय से आभार




Monday, 30 June 2025

आज़मगढ़ के गौरव श्री जगदीश प्रसाद बरनवाल कुंद

 श्री जगदीश प्रसाद बरवाल कुंद जी आज़मगढ़ जनपद के साथ हिन्दी साहित्य के गौरव और मनीषी हैं. लगभग 15 से अधिक पुस्तकों का प्रणयन कर चुके कुंद साहब अस्वस्थ होने के बावजूद 76 वर्ष की उम्र में भी सक्रिय हैं. आज सौभाग्य से प्रयागराज अपने पुत्र के यहाँ आगमन हुआ. मुझे भी मुलाक़ात का अवसर मिला आज़मगढ़ जनपद के साहित्यकारों में मुझे भी अपनी किताब में कुंद साहब ने शामिल किया है. यह मेरे लिए गौरव की बात है. मैं उनके स्वस्थ और शतायु होने की कामना करता हूँ.


श्री जगदीश प्रसाद बरवाल कुंद जी को अपना
ग़ज़ल संग्रह भेंट करते हुए साथ में भाई
 अवनीश बरनवाल जी


कुंद जी की प्रमुख पुस्तकें

Thursday, 26 June 2025

पुस्तक भेंट -सुश्री रत्नप्रिया जी सहायक आयुक्त प्रशासन

 

आदरणीया श्रीमती रत्न प्रिया सहायक आयुक्त प्रशासन

श्री नीरज पांडे I. P. S

श्री सत्यम मिश्र अपर जिलाधिकारी नगर


Saturday, 21 June 2025

ग़ज़ल संग्रह भेंट -श्री प्रवीण पटेल सांसद फूलपुर

 ग़ज़ल संग्रह सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है

योग दिवस पर माननीय सांसद फूलपुर आदरणीय श्री प्रवीण पटेल जी एवं माननीय विधायक फूलपुर श्री दीपक पटेल जी को अपना ग़ज़ल संग्रह भेंट करने का सौभाग्य मिला. योग दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.

माननीय सांसद फूलपुर श्री प्रवीण पटेल और
माननीय विधायक श्री दीपक पटेल जी
फूलपुर को ग़ज़ल संग्रह भेंट करते हुए




Monday, 2 June 2025

ग़ज़ल संग्रह -सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है

 

माननीय न्यायमूर्ति श्री पंकज मित्तल जी
न्यायधीश उच्चतम न्यायालय

प्रतिष्ठित परिवार में जन्म इलाहाबाद हाईकोर्ट में वकालत फिर यहीँ पर माननीय न्यायधीश के रूप में शपथ. जम्मू कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायधीश पुनः राजस्थान उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश. वर्तमान में भारत के सर्वोच्च न्यायालय में न्यायधीश. सहज सरल सौम्य माननीय मित्तल साहब क़ानून के मर्मज्ञ होने के साथ हिन्दी साहित्य के प्रति अगाध लगाव रखते हैं. साहित्यकारों के प्रति हृदय में सम्मान का भाव रखते हैं. माननीय का हृदय से आभार.
 

माननीय न्यायमूर्ति आदरणीय श्री पंकज मित्तल
जी को अपना ग़ज़ल संग्रह भेंट करते हुए

Thursday, 29 May 2025

ग़ज़ल संग्रह -सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है

 

ग़ज़ल संग्रह

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

पुस्तक -सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है 

प्रकाशक -लोकभारती इलाहाबाद (प्रयागराज )

पेपरबैक मूल्य -250 रूपये 

https://www.amazon.in/dp/934822932X


Saturday, 10 May 2025

एक युद्धगान -अब धर्मयुद्ध छोड़ो अर्जुन

 

श्री कृष्ण अर्जुन

अब धर्मयुद्ध छोड़ो अर्जुन 


केशव की गीता 
कहती है 
युग के जैसा व्यवहार करो.
अब धर्मयुद्ध 
छोड़ो अर्जुन 
दुश्मन पर प्रबल प्रहार करो.

उपदेश
नियम, नैतिकता के
ग्रंथों में शोभा देते हैं,
दानव तो
अबला, संतो के
भी प्राण हरण कर लेते हैं,
मायावी
असुरों के सम्मुख
निज माया का विस्तार करो.


सन 71 में दयावान
बन हमने
जिसको माफ़ किया
उसने भारत माँ
के विरुद्ध
षड़यंत्र और अपराध किया,
अबकी
निर्णायक युद्ध करो
हर पापी का संहार करो.

सूखी चिनाब में
रेत उड़े
आज़ाद बलूचिस्तान बने,
फिर चन्द्रगुप्त
राणाप्रताप
पोरस का हिंदुस्तान बने,
आतंक मिटा कर
दुनिया से
मानवता का उद्धार करो.

जब युद्धभूमि में
जाना हो
प्रभु परशुराम को याद करो,
जिसकी कुदृष्टि
हो भारत पर
उसको समूल बर्बाद करो
सपना अखण्ड
भारत माँ का
अब तो वीरों साकार करो.

जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल

प्रभु परशुराम



Thursday, 8 May 2025

एक देशगान -मोदी है रुद्रावतार

 

भारत माता

एक देशगान 

माननीय प्रधानमंत्री जी


संकट में था 

सिंदूर 

सनातन, महाकाल.

हिमशिखर 

पिघलने लगे 

सिंधु में है उबाल.


तन गयी 

भृकुटि मोदी जी 

हैं रुद्रावतार,

फिर कुपित 

राम की सेना 

लंका पर प्रहार,

निकलो 

वीरों त्रिशूल के 

संग लेकर मशाल.


काफ़िर 

मत कहना 

मूर्ख सुदर्शन चक्र देख,

विषपाई 

शिव की 

भृकुटि हो गयी वक्र देख,

हुंकार

हमारी सुन 

भारत माता निहाल.


अब भजन 

नहीं मंदिर में 

फूंको पांचजन्य,

इस महाप्रलय 

से सजग रहें 

अब शत्रु अन्य,

भर जाय 

रक्त से दुश्मन का 

हर झील, ताल 


वन्देमातरम. जय हिन्द 

भारत के माननीय प्रधानमंत्री जी और चाणक्य 
माननीय गृहमंत्री जी


Sunday, 4 May 2025

एक गीत -गुलमोहर खिलते हुए

 

गुलमोहर चित्र साभार गूगल

एक गीत -गुलमोहर खिलते हुए 


ग्रीष्म के 
तपते हुए दिन 
गुलमोहर खिलते हुए.
आइये 
कुछ मुस्कुरा लें 
सफ़र में चलते हुए.

पर्वतों की
घाटियों में
एक सुन्दर झील है,
सोचिए मत
ज़िन्दगी की
राह कितने मील है,
पाँव तो
चलते रहेंगे
धूप में जलते हुए.

माथ पर
बिंदी सजाए
हँस रहा श्रृंगार दरपन,
झर गए
कुछ फूल बासी
खिल रहे कुछ नए उपवन,
स्वप्न भूले
याद आए
आँख को मलते हुए.

चित्र कितने
रंग कितने
खुशबुओं का खत लिए,
प्रेम के संग
विरह वाले
गीत लिखकर हम जिए,
कुछ परिंदे
गा रहे हैं
शाख पर हिलते हुए.

दीप आँचल में
सजाए
कौन चंदन मुख छिपाए,
ढोलकी की
थाप पर
ये साँझ मंगल गीत गाए,
माँ रफूगर
खुली रिश्तों 
की सिवन सिलते हुए.

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Saturday, 3 May 2025

एक देशगान -गर्जना करोगे कब तक वीरों आसमान में

 

भारतीय वायुसेना

भारत माता

एक देशगान -गर्जना करोगे कब तक वीरों आसमान में 


गर्जना करोगे 

कब तक 

वीरों आसमान में.

आतंकी दुश्मन 

बैठा है 

अब भी गुमान में.


दुश्मन के 

सीने पर 

चढ़कर हुंकार भरो,

राक्षस 

वध करना है 

नृसिंह अवतार धरो,

जयकार

तिरंगे की हो

इस दुनिया जहान में.


पृथ्वी, त्रिशूल,

ब्रम्होस 

अग्नि ज्वाला निकलो,

मेवाड़

महाराणा के

ले भाला निकलो,

रावलपिंडी को

बदलो

जलते श्मशान में.


अब मौन करो

भारत विरुद्ध

आवाज़ो को,

दुश्मन पर

छोड़ो गरुड़

भयंकर बाजों को,

अब ज़हर

न उगले कोई भी

दुश्मन अज़ान में.


कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Monday, 28 April 2025

एक ग़ज़ल - लोटे के जल में फूल रखते हैं

 

चित्र साभार गूगल

ग़ज़ल -लोटे के जल में फूल रखते हैं


अतिथियों के लिए लोटे के जल में फूल रखते हैं 
मगर दुश्मन के सीने पर सदा तिरशूल रखते हैं 

जहाजें पाल वाली हों तो सागर से न टकराना
हवा को मोड़ते हैं हम नहीं मस्तूल रखते हैं


अमन की राह में उजले कबूतर भी उड़ाते हैं 
मगर रंजिश में उत्तर भी बहुत माकूल रखते हैं 

हमारी झील में शतदल के सारे रंग मिलते हैं
 काँटीली झाड़ियों के पेड़ हम निर्मूल रखते हैं 

हम तीरथ पर निकलने वालों को पानी पिलाते हैं
न हम जजिया लगाते हैं नहीं महसूल रखते हैं

जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल


Saturday, 26 April 2025

एक देशगान -हम उनके गीत सुनाते हैं

 

जय महाकाल

एक देशगान -भारत माता की मिट्टी को 


भारत माता की 

मिट्टी को 

जो अपने माथ लगाते हैं.

हम उनके 

गीत सुनाते हैं 

हम उन पर पुष्प चढ़ाते हैं.


इस देश में 

गंगा बहती है 

चिड़ियों के झुण्ड चहकते हैं,

वैदिक मंत्रो से 

यज्ञ कुंड, 

पूजा के फूल महकते हैं,

दुनिया के 

मंगल के खातिर 

देवालय शंख बजाते हैं.


गीता 

जीवन का दर्शन है 

मानस संताप मिटाता है,

संकट पड़ने पर 

भारत ही 

दुनिया को मार्ग दिखाता है,

ईश्वर बनकर 

प्रभु राम यहाँ 

रावण का दर्प मिटाते हैं.


भारत माता 

के कुछ कुपुत्र 

दुश्मन से यारी करते हैं,

इसकी छाया में 

पलकर भी 

इससे गद्दारी करते हैं,

असुरों के 

कुत्सित कार्यों पर 

ये अक्सर जश्न मनाते हैं.


भारत माता का 

स्वर्ण मुकुट 

सदियों तक चमक बिखेरेगा,

उसका 

अस्तित्व नहीं होगा 

जो इसको आँख तरेरेगा,

हम महाकाल 

के तांडव हैं 

हम सामवेद भी गाते हैं.


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Wednesday, 23 April 2025

एक देशगान -सत्य अहिंसा के सीने पर वार सहेंगे आख़िर कब तक

 

एक देशगान -बाज़ उड़ाओ

भारत माता


पाकिस्तान का आतंकी खेल अब हमेशा के लिए खत्म किया जाना चाहिए. मजहब के नाम पर आतंकी हमला किया जा रहा है यह अघोषित युद्ध है. हमको अब इजरायल की तर्ज़ पर निर्णायक वार करना होगा. अन्यथा यह अंतहीन गाथा बन जाएगी. अमेरिकी उप राष्ट्रपति भारत दौरे पर हैं इसके बावजूद भारत में आतंकी हमला. शर्मनाक. भारत सरकार अब सेनाओं को खुली छूट दे और इस आतंक की जड़ को खत्म करे.वन्देमातरम. जयहिंद


एक भिखारी मुल्क 

चुनौती 

देता हिंदुस्तान को.

दुनिया के 

नक्शे से गायब

कर दो पाकिस्तान को,


बाज़ उड़ाओ 

श्वेत कबूतर 

कब तक यहाँ उड़ाओगे,

कब तक सत्य-

अहिंसा वाला 

झूठा गीत सुनाओगे,

अब  ब्रम्हास्त्र 

चलाकर मारो

सदियों के शैतान को.


बार -बार आतंकी 

घेरो -मारो 

यही कहानी है,

फिर धरती 

कुरुक्षेत्र बना दो 

इसमें क्या हैरानी है,

सूर्य निगल 

जाये जो पल में 

याद करो हनुमान को.


सत्य अहिंसा

के सीने पर

वार सहेंगे आख़िर कब तक,

सैन्य शक्ति

के रहते भी

लाचार रहेंगे आख़िर कब तक

ख़त्म करो

जो आँख उठाकर

देखे हिंदुस्तान को.


आँख दिखाते 

बांग्लादेशी 

कैसी नीति हमारी है,

घात लगाए 

दुश्मन बैठे 

घर में भी गद्दारी है,

कब्जे में लो 

सिंध कराची 

और बलूचिस्तान को.

तिरंगा


एक ग़ज़ल -मौसम का रंग

  चित्र साभार गूगल एक ग़ज़ल  तितली का इश्क़, बाग का श्रृंगार ले गया खिलते ही सारे फूल वो बाज़ार ले गया  मौसम का रंग फीका है, भौँरे उदास हैं गुलश...