Friday, 21 November 2025

एक ताज़ा प्रेम गीत -हँसी -ठिठोली

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा प्रेमगीत


बहुत दिनों के 

बाद आज फिर 

फूलों से संवाद हुआ.

हँसी -ठिठोली 

मिलने -जुलने का 

किस्सा फिर याद हुआ.


पानी की लहरों 

पर तिरते 

जलपंछी टकराये फिर,

पत्तों में उदास 

बुलबुल के 

जोड़े गीत सुनाये फिर 

आज प्रेम की 

लोक कथा का 

भावपूर्ण अनुवाद हुआ.


खुले -खुले 

आँगन में कोई 

खुशबू वंशी टेर रही,

भ्रमरों को 

सतरंगी तितली की 

टोली फिर घेर रही,

बंदी गृह से 

जैसे कोई 

मौसम फिर आज़ाद हुआ.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल



Saturday, 15 November 2025

एक ताज़ा गीत -कोई मांझी शंख बजाये

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत.कलम ख़ामोश थी आज कुछ कोशिश किए.


कोई चिड़िया 

नीलगगन से 

मेरे आँगन में आ जाये.

मेरे प्रेम गीत को

फिर से फूल

पत्तियाँ, मौसम गाये.


बाहर का मौसम 

अच्छा है 

लेकिन मन में धुंध, तपन है,

चाँद कहीं पर 

सोया होगा 

खाली -खाली नीलगगन है,

खुशबू ओढ़े 

बैठे होंगे 

घाटी में पेड़ों के साये.


हिरन दौड़ते 

तेज धूप में 

नदियों की भुरभुरी रेत में,

फसलों से 

बतियाते होंगे 

कितने राँझे -हीर खेत में,

हरी भरी मेंड़ों पर 

कोई जोड़ा 

नीलकंठ आ जाये.


सूने वन में 

बनजारों के संग 

वंशी, मादल का मिलना,

उस पठार की 

भूमि धन्य है 

जिसमें हो फूलों का खिलना,

गंगा की धारा में 

जैसे कोई 

मांझी शंख बजाये.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल

Sunday, 9 November 2025

एक आस्था का गीत. देवभूमि उत्तराखंड

 

भगवान केदारनाथ



यह ऋषियों की भूमि
यहां की कथा निराली है।
गंगा की जलधार यहां
अमृत की प्याली है।

हरिद्वार, कनखल, बद्री
केदार यही मिलते
फूलों की घाटी में
अनगिन फूल यहां खिलते,
देवदार चीड़ों के वन
कैसी हरियाली है।

शिवजी की ससुराल
यहीं पर मुनि की रेती है,
दक्ष यज्ञ की कथा
समय को शिक्षा देती है,
मनसा देवी यहीं
यहीं मां शेरावाली है।

हर की पैड़ी जलधारों में
दीप जलाती है,
गंगोत्री यमुनोत्री
अपने धाम बुलाती है,
हेमकुण्ड है यहीं
मसूरी और भवाली है।

पर्वत घाटी झील
पहाड़ी धुन में गाते हैं,
देव यक्ष गंधर्व
इन्हीं की कथा सुनाते हैं,
कहीं कुमाऊं और कहीं
हंसता गढवाली है।

लक्ष्मण झूला शिवानन्द की
इसमें छाया है,
शान्तिकुंज में शांति
यहां ईश्वर की माया है,
यहीं कहीं कुटिया भी
काली कमली वाली है।

भारत माता मंदिर में
भारत का दर्शन है,
सीमा पर हर वीर
यहां का चक्र सुदर्शन है,
इनके जिम्मे हर दुर्गम
पथ की रखवाली है।

उत्सवजीवी लोग यहां
मृदुभाषा बोली है,
यह धरती का स्वर्ग
यहां हर रंग रंगोली है,
वन में कैसी हिरनों की
टोली मतवाली है।

यज्ञ धूम से यहां सुगन्धित
पर्वत नदी गुफाएं
यहीं प्रलय के बाद जन्म लीं
सारी वेद ऋचाएं,
नीलकण्ठ पर्वत की कैसी
छवि सोनाली है।

कवि/गीतकार
जयकृष्ण राय तुषार


उत्तराखण्ड के समस्त निवासियों को समर्पित
चित्र uttarakhandevents.com से साभार

Tuesday, 4 November 2025

मेरे ग़ज़ल संग्रह का द्वितीय संस्करण

 मेरे ग़ज़ल संग्रह का द्वितीय संस्करण छप गया. नए कवर को डिजाइन किया है प्रोफ़ेसर अरुण जेतली जी ने. प्रकाशक लोकभारती. मूल्य 250 रूपये मात्र.


द्वितीय संस्करण


Friday, 31 October 2025

प्रयागराज आयकर भवन में हिन्दी पखवाड़ा कवि गोष्ठी

  दिनांक 28-10-2025 को आयकर भवन प्रयागराज में हिन्दी पखवाड़ा के अंतर्गत कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ एवं विभागीय कर्मचारियों का सम्मान. कार्यक्रम में आयकर आयुक्त श्रीमती मोना मोहंती जी. आयकर आयुक्त अपील तिवारी जी, अपर आयकर आयुक्त श्री शिव कुमार राय जी, उपनिदेशक राजभाषा हरिकृष्ण तिवारी जी, श्री मकरध्वज मौर्य जी और विभाग के श्रोतागण कविगण मौजूद रहे. प्रबुद्ध श्रोताओं के बीच एक खूबसूरत शाम का आनंद मिला.

आयकर आयुक्त श्रीमती मोना मोहंती को अपना ग़ज़ल
संग्रह भेंट करते हुए दिनांक 28-10-2025

कवि गोष्ठी में मकरध्वज मौर्य जी मुझे सम्मानित करते हुए

आयकर आयुक्त, आयकर आयुक्त अपील तिवारी जी 
राजभाषा उपनिदेशक हरिकृष्ण तिवारी एवं कवि गण

आयकर आयुक्त महोदया से सम्मान ग्रहण करते हुए



काव्य पाठ सुनते श्रोतागण आयकर भवन

अपर निदेशक आयकर श्री शिव कुमार राय जी
आयकर आयकर आयुक्त अपील श्री तिवारी जी
मध्य में आयकर आयुक्त सुश्री मोना मोहंती जी

Sunday, 12 October 2025

प्रयाग पथ पत्रिका का मोहन राकेश पर केंद्रित विशेषांक

 

प्रयागपथ

प्रयागपथ का नया अंक मोहन राकेश पर एक अनुपम विशेषांक है. इलाहाबाद विश्व विद्यालय जगदीश गुप्त, कृष्णा सोबती,अमरकांत डॉ रघुवंश, श्रीलाल शुक्ल और मोहन राकेश की जन्मशती मना रहा है.पत्रिका के यशस्वी सम्पादक भाई हितेश कुमार सिंह ने एक अविस्मरणीय विशेषांक मोहन राकेश पर निकाला है.प्रयागपथ का हर अंक पठनीय और संग्रहणीय रहता है.इस अंक में उच्चतम न्यायालय के ख्यातिलब्ध माननीय न्यायमूर्ति आदरणीय पंकज मित्तल साहब की कविताएं भी पढ़ने को मिलीं. इस अंक में मेरी किताब *सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है *पर भाई अनिल कुमार सिंह की समीक्षा प्रकाशित है. इस अंक में स्मृतियों के अंतर्गत श्री हेरम्ब चतुर्वेदी जी और डॉ हरीश त्रिवेदी का आलेख है. यतीश कुमार और काव्या कटारे की कहानियाँ और सुभाष राय, प्रदीप कुमार सिंह, अभिमन्यु प्रताप सिंह, लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता लोकेश श्रीवास्तव, सत्यार्थ अनिरुद्ध पंकज, माननीय न्यायमूर्ति श्री पंकज मित्तल जी परमेश्वर फुंकवालऔर शीला चौहान की कविताएं भी हैँ. मोहन राकेश पर कलम चलाने वाले रचनाकार नामदेव निधि सिंह मुष्टाक अली, रेणु अरोड़ा, मेरी हांसदा, श्रीधर करूणानिधि, विजेंद्र प्रताप सिंह, सत्यदेव त्रिपाठी, आभा गुप्ता ठाकुर,, राजाराम भादू, कुमार वीरेंद्र, अजय वर्मा, शम्पा शाह, राहुल शर्मा, एकता मंडल, खेमकरण सोमन, रमेश प्रजापति, जमुना कृष्ण राज, मलय पानेरी, सुनीता,, उपन्यास लोक में आशुतोष कुमार सिंह, डायरी डेरा कुबेर कुमावत मधुरेश, आशुतोष, असलम हसन,. समीक्षा कालम में विजय बहादुर सिंह, राजेश मल्ल, मिताश्री श्रीवास्तव, सुलोचना दास, रंजीत सिंह और अनिल कुमार शामिल हैँ. मैं सम्पादक और समीक्षा लेखक के प्रति आभारी हूँ.



पत्रिका प्रयागपथ 

सम्पादक -श्री हितेश कुमार सिंह 

सह सम्पादक -डॉ नीतू सिंह


Wednesday, 17 September 2025

एक गीत -सारा जंगल सुनता है

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -सारा जंगल सुनता है

चित्र साभार गूगल



चिड़िया जब 
गाती है मन से 
सारा जंगल सुनता है.

नए बाग में 
नए फूल जब 
विविध रंग में खिलते हैं,
भौरे, तितली 
खुशबू अक्सर 
इनसे उनसे मिलते हैं,
वल्कल पहने 
मौसम 
टहनी से फूलों को चुनता है.

कभी कभी
तो सपने मन के
इंद्र धनुष हो जाते हैं,
कभी स्वनिर्मित
महासुरंगो में
जाकर खो जाते हैं,
बूढ़ी आँखों
से बुनकर मन
जाने क्या क्या बुनता है.

कलम वही जो
कविताओं में
सबकी पीड़ा लिखती है,
धुंधले पंन्नों पर
सोने के
अक्षर जैसी दिखती है,
वृंदावन अब
अपने मन की
वंशी केवल सुनता है.

कवि-जयकृष्ण राय तुषार




चित्र साभार गूगल


Thursday, 11 September 2025

सूबेदार मेज़र हरविंदर सिंह जी से आत्मीय मुलाक़ात और पुस्तक भेंट

 भारतीय सेना विश्व की सबसे अनुशासित और बहादुर सेना है. भारत ही नहीं इस सेना के त्याग और बलिदान की गाथा समूचे विश्व में गुंजायमान है. भारत की एकता अखंडता और विविधता इनके पुरुषार्थ और पराक्रम से सुरक्षित है. नायक वो नहीं जो फिल्मों में दिखते हैँ. देश के असली हीरो नभ. जल और थल को सुरक्षित रखने वाले हमारे सैनिक हैं. जो पर्वत, पठार, दलदल, रेगिस्तान में भी कष्ट सहकर अपने देश को सुरक्षित रखते हैं. प्रयागराज में 6 बटालियन N. C. C. में आज ऐसे ही देश के बहादुर नायक आदरणीय सूबेदार मेज़र हरविंदर सिंह जी से मुलाक़ात कर मैंने अपनी पुस्तक भेंट किया. भारतीय सेना की गाथा युगों तक गाये जाने लायक है. समूचे विश्व में मानवता के लिए जहाँ जरूरत पड़ी भारतीय सेना ने अपने साहसिक अभियानों से देश का मान बढ़ाया. जयहिंद वन्देमातरम. सत श्री अकाल 


सूबेदार मेज़र श्री हरविंदर सिंह जी को
अपनी पुस्तक भेंट करते हुए


Wednesday, 20 August 2025

एक गीत -गा रहा होगा पहाड़ों में कोई जगजीत

 

चित्र साभार गूगल

एक गीत -मोरपँखी गीत 


इस मरुस्थल में 
चलो ढूँढ़े 
नदी को मीत.
डायरी में 
लिखेंगे 
कुछ मोरपँखी गीत.

रेत में 
पदचिन्ह होंगे 
या मिटे होंगे,
बेर से 
लड़कर 
हरे पत्ते फटे होंगे,
फूल के 
ऊपर लिखेंगे 
तितलियों की जीत.

घाटियों में 
रंग होंगे 
हरापन होगा,
जहाँ तुम 
होगी वहाँ 
कुछ नयापन होगा,
इन परिंदो 
के यहाँ 
होगा सुगम संगीत.

आदिवासी 
घाटियों में
रंग सारे हैं,
अतिथि
स्वागत में
सभी बाहें पसारे हैं,
गा रहा होगा
पहाड़ी धुन
कोई जगजीत.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Monday, 18 August 2025

अनुपम परिहार की कलम से समीक्षा

 

समीक्षक श्री अनुपम परिहार


मेरे ग़ज़ल संग्रह*सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है*

पर अनुपम परिहार की कलम

ग़ज़लकार जयकृष्ण राय 'तुषार' ने मुलाक़ात करके मुझे अपना ग़ज़ल संग्रह ‘सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है’ भेंट किया। इस संग्रह को मैंने आज शाम से पढ़ना शुरू किया है। पढ़ते हुए महसूस हुआ कि इन ग़ज़लों में समकालीन जीवन की विडम्बनाएँ, मनुष्य की जद्दोजहद और बदलते परिवेश के मार्मिक चित्र बड़ी सहजता से सामने आते हैं।

इन ग़ज़लों की ख़ासियत यह है कि तुषार अपने परिवेश और समाज से गहरे जुड़े हुए हैं। वे प्रतीकों और बिम्बों के सहारे पाठक को सोचने पर मज़बूर करते हैं। 


आज़ादी पेड़ हरा है ये मौसमों से कहो  न सूख पाएं ये परिंदों को एतबार रहे।


इन पंक्तियों में कवि ने आज़ादी को हरियाली और जीवन से जोड़कर उसकी नमी और ताज़गी बचाए रखने का संदेश दिया है।


बाज़ारवाद और उपभोक्तावादी संस्कृति के दबाव में बदलते घरेलू परिदृश्य का यथार्थ उनकी इन पंक्तियों में साफ़ झलकता है।


खिलौने आ गए बाज़ार से लेकिन हुनर का क्या 

 मेरी बेटी कहां अब शौक से गुड़िया बनाती है।


यह शेर केवल एक बच्ची की आदत के बदलने की बात नहीं है, बल्कि बदलते समय में लुप्त हो रही रचनात्मकता और सहजता की ओर भी इशारा करता है।


संग्रह में औरत की बदलती भूमिका पर भी बेहद सटीक टिप्पणी मिलती है।


 न चूड़ी है, ना बिंदी है, न काजल, मांग का टीका है 

यह औरत कामकाजी है, यह चेहरा इस सदी का है।


यह शेर समकालीन स्त्री के संघर्ष और आत्मनिर्भरता का स्पष्ट व सशक्त चित्रण करता है। यहाँ तुषार किसी आदर्श स्त्री की कल्पना नहीं करते, बल्कि वास्तविक जीवन से उठाए गए दृश्य को कविता में दर्ज़ करते हैं।

इस संग्रह की ग़ज़लें समाज के भीतर चल रहे छोटे-छोटे परिवर्तनों को गहरी संवेदनशीलता के साथ दर्ज़ करती हैं। तुषार की भाषा सधी हुई है और उनका शिल्प सहज। यह संग्रह निश्चय ही पाठक को अपने समय और परिवेश की पड़ताल करने को विवश करता है।

मेरा ग़ज़ल संग्रह


18/08/25

Sunday, 17 August 2025

एक ग़ज़ल -यादों के आसपास रहा

 

चित्र साभार गूगल

तमाम फूल, तितलियों में भी उदास रहा 

बिछड़ने वाला ही यादों के आसपास रहा 

जहाँ भी फूल थे शाखों पे खिलखिलाते रहे 
हवा के साथ उड़ानों में बस कपास रहा 

तमाम ग़म को छिपाए हँसी की चादर से 
गुलाम मुल्क में जैसे वो क्रीत दास रहा 

जो पेड़ आज परिंदो का आशियाना है 
वसंत आने के पहले वो बेलिबास रहा 

किसी के आने की आहट थी चाँदनी की तरह 
तमाम रात अँधेरे में भी उजास रहा 

न मोर पंख न तितली,नदी, हिरण भी नहीं 
ये गाँव गाँव नहीं था ये बस नख़ास रहा 

हमेशा अजनबी रस्तों में काम आते रहे 
शिकस्त उससे मिली जो हमारा खास रहा 

सलोने रंग में उलझे जो देवदास बने
जो स्याम रंग में डूबा वो सूरदास रहा

जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साभार गूगल


Monday, 11 August 2025

एक ग़ज़ल -मौसम का रंग

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल 

तितली का इश्क़, बाग का सिंगार ले गया
खिलते ही सारे फूल वो बाज़ार ले गया 

मौसम का रंग फीका है, भौँरे उदास हैं
गुलशन का कोई शख्स कारोबार ले गया 

उसका ही रंगमंच था नाटक उसी का था 
मुझसे चुराके बस मेरा किरदार ले गया 

अपने शहर का हाल मुझे ख़ुद पता नहीं
भींगा था कोई धूप में अख़बार ले गया

दरिया के बीच जाके मुझे तैरना पड़ा 
कश्ती मैं अपने साथ में बेकार ले गया 

आँधी नहीं है फिर भी परिंदो का शोर है 
जंगल की शांति फिर कोई गुलदार ले गया 

ख्वाबों में गुलमोहर ही सजाता था जो कभी 
वो फूल देके मुझको सभी ख़ार ले गया 

इस बार भी न दोस्तों से गुफ़्तगू हुई 
साहब का दौरा अबकी भी इतवार ले गया 

कवि शायर जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल


Friday, 1 August 2025

एक ताज़ा ग़ज़ल -सब घराने आपकी मर्ज़ी से ही गाने लगे

 

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल 

साज साजिन्दे सभी महफ़िल में घबराने लगे 

सब घराने आपकी मर्ज़ी से ही गाने लगे 


भूल जाएगा ज़माना दादरा, ठुमरी, ग़ज़ल 

अब नई पीठी को शापिंग माल ही भाने लगे 


जिंदगी भी दौड़ती ट्रेनों सी ही मशरूफ़ है 

आप मुद्द्त बाद आए और अभी जाने लगे 


झील में पानी, हवा में ताज़गी मौसम भी ठीक 

फूल में खुशबू नहीं भौँरे ये बतियाने लगे


प्यार से लोटे में जल चावल के दाने रख दिए

फिर कबूतर छत में मेरे हाथ से खाने लगे


हम भी बचपन में शरारत कर के घर में छिप गए

अब बड़े होकर ज़माने भर को समझाने लगे


बीच जंगल से गुजरते अजनबी को देखकर

आदतन ये रास्ते फिर फूल महकाने लगे


देखकर प्रतिकूल मौसम उड़ गए संगम से जो

ये प्रवासी खुशनुमा मौसम में फिर आने लगे

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल


Thursday, 31 July 2025

नई किताब हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार -श्री ज्ञानप्रकाश विवेक

 

 नई किताब

आदरणीय श्री ज्ञानप्रकाश विवेक जी


हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार-लेखक श्री ज्ञान प्रकाश विवेक

हिन्दी ग़ज़ल पर वाणी प्रकाशन से आदरणीय ज्ञानप्रकाश विवेक की बेहतरीन आलोचनात्मक पुस्तक प्राप्त हुई. 371 पेज की यह पुस्तक है इसमें विशद आलेख हैं. मुझे भी शामिल किया गया है. बहुत मेहनत के साथ कुल पांच वर्षों के अथक प्रयास से यह पुस्तक प्रकाशित हुई है.इस पुस्तक में कुल तीन खण्ड हैं बहुत बहुत बधाई आदरणीय ज्ञान प्रकाश जी



पुस्तक -हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार 

लेखक -श्री ज्ञान प्रकाश विवेक 

प्रकाशक वाणी प्रकाशन नई दिल्ली 

मूल्य सजिल्द -795

Monday, 28 July 2025

एक गीत -सारंगी को साधो जोगी

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -

सारंगी को 

साधो जोगी 

बन्द घरों की खिड़की खोलो.

टूटे दिल 

उदास मन वालों के 

संग कुछ क्षण बैठो बोलो.


झाँक रहे 

दिन भर यन्त्रों में 

गमले में चंपा मुरझाई,

भूल गया 

मौसमी गीत मन 

किसे पता कब चिड़िया गाई,

धूल भरे आदमकद 

दरपन को 

आँचल से पोछो धो लो.


बखरी हुई

उदास ग़ुम हुई

दालानों की हँसी-ठिठोली,

रंगोली के

रंग कृत्रिम हैं

पान बेचता कहाँ तमोली,

कहाँ गए

वो हँसने वाले

याद करो उनको फिर रो लो.


महुआ, पीपल

नीम-आम के

नीचे कजरी बैठ रम्भाती,

पीकर पानी

नदी-ताल का

वन में खाते नमक चपाती,

डांट पिता की

याद करो फिर

माँ की यादों के संग हो लो.

कवि

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल

Saturday, 19 July 2025

एक ग़ज़ल -अब तो बाज़ार की मेंहदी लिए बैठा सावन

  

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल 


ग़ुम हुए अपनी ही दुनिया में सँवरने वाले 

हँसके मिलते हैं कहाँ राह गुजरने वाले 


घाट गंगा के वही नाव भी केवट भी वही 

अब नहीं राम से हैं पार उतरने वाले 


फैसले होंगे मगर न्याय की उम्मीद नहीं 

सच पे है धूल गवाहान मुकरने वाले 


अब तो बाज़ार की मेंहदी लिए बैठा सावन

रंग असली तो नहीं इससे उभरने वाले


ढूँढता हूँ मैं हरेक शाम अदब की महफ़िल

जिसमें कुछ शेर तो हों दिल में उतरने वाले



कवि जयकृष्ण राय तुषार

सभी चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -हर मौसम में रंग फूल ही भरते हैं

 

चातक पक्षी

एक ताज़ा गीत 


सूखे जंगल 

का सारा 

दुःख हरते हैं.

झीलों से 

उड़कर ये 

बादल घिरते हैं.


आसमान में 

कितने 

चित्र बनाते हैं,

महाप्राण

बन

बादल राग सुनाते हैं.

फूल -

पत्तियों पर 

अमृत बन झरते हैं.


कजली गाते 

नीम डाल पर 

झूले हैं,

कमल, कुमुदिनी 

चंपा 

गुड़हल फूले हैं,

हर मौसम में 

रंग 

फूल ही भरते हैं.


मेघों के 

मौसम भी 

चातक प्यासा है,

दूर कहीं 

खिड़की में 

हँसी बतासा है,

दिन भर 

किस्से याद 

पुराने आते हैं.

चित्र साभार गूगल


गीतकार -जयकृष्ण राय तुषार

Sunday, 13 July 2025

मौसम का गीत -ढूँढता है मन

 

चित्र साभार गूगल
ढूंढता है

मन शहर की 
भीड़ से बाहर.
घास, वन चिड़िया 
नदी की धार में पत्थर.

नीम, पाकड़ 
और पीपल की
घनी छाया,
सांध्य बेला 
आरती की 
स्वर्ण सी काया,
चिट्ठियों में
ढक गए हैं फूल से अक्षर.

तन बदन दिन
घास मिट्टी
होंठ पर मुरली,
दो अपरिचित
कर रहे हैं
धूप की चुगली,
याद आए
अल्पनाओं से सजे कोहबर.

साज
मौसम का
परिंदे गा रहे ठुमरी,
गाँव-घर
सिवान, गलियाँ
गूँजती कजरी,
घाट काशी के
लगे फिर बोलने हर हर.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Friday, 11 July 2025

माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी को ग़ज़ल संग्रह भेंट करते हुए

 इलाहाबाद अब प्रयागराज का इंडियन कॉफी हॉउस कभी साहित्य का बहुत बड़ा अड्डा था तमाम नामचीन कवि लेखक यहाँ साहित्य विमर्श करते थे. आज वह बात तो नहीं लेकिन कभी कभी कवि, लेखक, पत्रकार प्रोफ़ेसर आ ही जाते हैं. कभी कभी सेवानिवृत न्यायमूर्ति भी आ जाते हैं. आज अकस्मात अपने समय के विख्यात न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी दिखे तो मैंने अपना ग़ज़ल संग्रह देते हुए फोटो का आग्रह किया तो माननीय सहज भाव से स्वीकार कर लिए. आभार आपका सर

माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी
सेवानिवृत्त



Sunday, 6 July 2025

किताब की समीक्षा -मनोरंजन अमर उजाला

 ग़ज़ल संग्रह "सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है"की समीक्षा आज अमर उजाला में साहित्यिक पेज मनोरंजन में छपी है. लेखक श्री श्री चित्रसेन रजक जी सम्पादक श्री देव प्रकाश चौधरी जी का हृदय से आभार




Monday, 30 June 2025

आज़मगढ़ के गौरव श्री जगदीश प्रसाद बरनवाल कुंद

 श्री जगदीश प्रसाद बरवाल कुंद जी आज़मगढ़ जनपद के साथ हिन्दी साहित्य के गौरव और मनीषी हैं. लगभग 15 से अधिक पुस्तकों का प्रणयन कर चुके कुंद साहब अस्वस्थ होने के बावजूद 76 वर्ष की उम्र में भी सक्रिय हैं. आज सौभाग्य से प्रयागराज अपने पुत्र के यहाँ आगमन हुआ. मुझे भी मुलाक़ात का अवसर मिला आज़मगढ़ जनपद के साहित्यकारों में मुझे भी अपनी किताब में कुंद साहब ने शामिल किया है. यह मेरे लिए गौरव की बात है. मैं उनके स्वस्थ और शतायु होने की कामना करता हूँ.


श्री जगदीश प्रसाद बरवाल कुंद जी को अपना
ग़ज़ल संग्रह भेंट करते हुए साथ में भाई
 अवनीश बरनवाल जी


कुंद जी की प्रमुख पुस्तकें

एक ताज़ा प्रेम गीत -हँसी -ठिठोली

  चित्र साभार गूगल एक ताज़ा प्रेमगीत बहुत दिनों के  बाद आज फिर  फूलों से संवाद हुआ. हँसी -ठिठोली  मिलने -जुलने का  किस्सा फिर याद हुआ. पानी क...