Saturday, 27 December 2025

मेरे ग़ज़ल संग्रह की समीक्षा -समीक्षक श्री जगदीश बरनवाल कुंद

 

श्री जगदीश बरवाल कुंद समीक्षक और वरिष्ठ साहित्यकार
आज़मगढ़

गीतों और गजलों के क्षेत्र में नये प्रयोगों के लिए जाने जाने वाले प्रयागराज के प्रख्यात कवि श्री जयकृष्ण राय 'तुषार 'ने मेरे पुत्र अवनीश कुमार बरनवाल एडवोकेट,उच्च न्यायालय,प्रयागराज के माध्यम से अपनी सद्यःप्रकाशित कृति" सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है "(गजल संग्रह)मुझे उपलब्ध कराया है।144पृष्ठीय इस गजल संग्रह में प्रेम, राष्ट्रभक्ति,प्रकृति,पर्यावरण,वर्तमान समय में वोट की राजनीति,होली,कुशीनगर,प्रयागराज,वाराणसी,लखनऊ की संस्कृति,माँ का महत्व,जनहित की भावना,आदि विविध विषयों से समन्वित 132गजलें हैं ।पुस्तक का प्रकाशन,राजकमल प्रकाशन समूह के प्रमुख प्रकाशक 'लोक भारती प्रकाशन प्रयागराज 'से हुआ है।सरल,सरस शब्दों में पठनीय एवं रोचक शैली में लिखी गयीं सभी गजलें महत्वपूर्ण हैं ।

सियासत भी इलाहाबाद में
संगम नहाती है


       गजल को परिभाषित करते हुए कवि ने लिखा-

       शोख इठलाती हुई परियों का है ख्वाब गजल।

       झील के पानी में उतरे तो है महताब     गजल।

       कूचा-ए-जानाॅ,भी मजदूर भी,साकी ही नहीं  ।

       एक शायर की ये दौलत यही असबाब  गजल।

यही नहीं,बल्कि गजल को धूप में शामियाना बताते हुए तथा इसे  दर्द,तनहाई,गरीबी से भी,जोडते हुए

उन्होंने लिखा-

       कुछ हकीकत कुछ फसाना है गजल ।

       धूप में इक शामियाना है        गजल। 

       दर्द,तनहाई,गरीबी, मुफलिसी 

       सरफरोशी का  तराना   है     गजल ।

कवि की भावनायें राष्ट्रीयता से ओतप्रोत हैं ।वह कहता है -

      मैं जब भी जन्म लूॅ गंगा तुम्हारी गोद रहे।

      यही तिरंगा,हिमालय ये हरसिंगार    रहे ।

      ये मुल्क ख्वाब से सुन्दर है जन्नतों से बडा।

      यहाँ पे सन्त,सिद्ध और दशावतार   रहे  ।

देश की वर्तमान राजनीति ढपोरशंखी हो गयी है।उनके वादों और जमीनी सच्चाइयों में कोई तालमेल नहीं है।द्रष्टव्य हैं-

     इलेक्शन में हुनर जादूगरी सब देखिये  इनकी  ।

     ये हर भाषण में सडकें  और टूटे पुल बनाते हैं  ।

     हमारे वोट से संसद में नाकाबिल पहुॅचते   हैं,

     जो काबिल हैं गुनाहों से हमारे हार  जाते   हैं   ।

     ये संसद हो गयी बाजार इसके माइने क्या  हैं,

     बिके प्यादों से हम सरकार का बहुमत जुटाते हैं ।

नित्य प्रति वृक्षों के काटे जाने से उत्पन्न पर्यावरणीय संकट पर भी कवि की दृष्टि जाती है-

      ऑधियों से अब दरख्तों को बचाना चाहिए ।

      हमको मीठे फल परिन्दों को ठिकाना चाहिए ।

         ××                 ××

      तरक्की की कुल्हाडों ने हजारो पेड काटे  हैं  ।

      जरूरत को कहाँ कोई नफा नुकसान दिखता है।

संस्कारों से विमुख होते जा रहे समाज को देख कर कवि द्रवित है।वह छल,कपट,लोभ से मुक्त एक सत्समाज की रचना करना चाहता है:

      छल कपट और  लोभ का यदि संवरण हो जाएगा।

      स्वर्ग सा इस देश का वातावरण     हो     जाएगा  ।

      आप पश्चिम के ही दर्शन में अगर  डूबे     रहे,

       वेद,गीता,उपनिषद का  विस्मरण  हो   जाएगा    ।

पुस्तक की प्रत्येक गजल नैतिकता से, नारों  से पूरित है।सभी में प्रेम,मुहब्बत,अपनापन एवं नव निर्माण विषयक कोई न कोई सन्देश छिपा है।इस अच्छे गजल संग्रह के लिए श्री तुषार जी को बहुत बहुत बधाई ।

       श्री जयकृष्ण राय तुषार मूल रूप से जनपद आजमगढ़ के विकास खण्ड ठेकमा के ग्राम पसिका के मूल निवासी हैं ।वह सम्प्रति प्रयाग उच्च न्यायालय में अधिवक्ता,राज्य विधि अधिकारी,उ0प्र0सरकार हैं ।पूर्व में उनके तीन कविता संकलन,सदी को सुन रहा हूँ मैं,कुछ फूलों के कुछ मौसम के तथा मेडों पर बसन्त प्रकाशित हैं ।भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित तथा श्री रवीन्द्र कालिया द्वारा सम्पादित "हिन्दी की बेहतरीन गजलें "एवं साहित्य अकादमी से प्रकाशित एवं श्री माधव कौशिक द्वारा सम्पादित "समकालीन हिन्दी गजल"आदि कई साझा संकलनों में उनकी गजलें प्रकाशित हो चुकी हैं । पत्र पत्रिकाओं में भी  उनकी रचनायें प्रकाशित होती रहती हैं ।उ0प्र0हिन्दी संस्थान एवं अन्य अनेक संगठनों/संस्थाओं द्वारा उन्हें पुरस्कृत,सम्मानित किया गया है ।


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