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| चित्र साभार गूगल |
दुधमुंहा
दिनमान पूरब के
क्षितिज से आ रहा है |
नया संवत्सर
उम्मीदों की
प्रभाती गा रहा है |
डायरी के
गीत बासी हुए
उनको छोड़ना है ,
अब नई
पगडंडियों की
ओर रुख को मोड़ना है ,
एक अंतर्द्वंद
मन को
आज भी भटका रहा है |
फिर हवा में
फूल महकें
धूप में आवारगी हो ,
पर्व -उत्सव
के सुदिन लौटें
मिलन में सादगी हो ,
नया मौसम
नई तारीखें
नशा सा छा रहा है |
गर्द ओढ़े
खूटियों पर
टंगे कैलेण्डर नये हैं ,
विदा लेकर
अनमने से
कुछ पुराने दिन गये हैं ,
तितलियों के
पंख फूलों से
कोई सहला रहा है |
फिर समय की
सीढियों पर
हो कबीरा की लुकाठी ,
स्वस्ति वाचन
करें निर्भय
मंदिरों में वेदपाठी ,
फिर
जलोटा के सुरों में
भजन संगम गा रहा है |

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