चित्र साभार गूगल |
स्मृतिशेष कथा लेखिका उषाकिरण खां |
इस ग़ज़ल के मतले का शेर कथा लेखिका उषाकिरण खां को समर्पित है
एक ग़ज़ल -मैंने दिल से कुछ कहा
भाप में तब्दील इक दरिया का पानी हो गया
एक किस्सागो शहर का ख़ुद कहानी हो गया
खुशबुओं की शाल ओढ़े आ गया छत पर ये कौन
चाँद निकला और मौसम रातरानी हो गया
इक खड़ाऊं रखके भी सारी अयोध्या थी ग़रीब
राम जब लौटे नगर फिर राजधानी हो गया
राग, बंदिश, ताल, सुर, लय का पता कुछ भी न था
मिल गयी महफ़िल तो गायक खानदानी हो गया
मन के सारे रंग भी फूलों से फागुन में खिले
बाग का मंज़र गुलाबी, पीला, धानी हो गया
मांगकर छल से भिखारी देवता भी बन गए
देने वाला कर्ण जैसा वीर दानी हो गया
इस सियासत को समझने का सलीका और है
मैंने दिल से कुछ कहा कुछ और मानी हो गया
कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
आपका हृदय से आभार. बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें
Deleteवाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार. वसंत की शुभकामनायें
Deleteवाह ! ख़ूबसूरत रचना
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार. वसंत की हार्दिक शुभकामनायें
Deleteबेहतरीन
ReplyDeleteहार्दिक आभार. वसंत की हार्दिक शुभकामनायें
Deleteवाह्ह लाजवाब ग़ज़ल सर।
ReplyDeleteसादर।
हार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन श्वेता जी
Deleteमन के सारे रंग भी फूलों से फागुन में खिले
ReplyDeleteबाग का मंज़र गुलाबी, पीला, धानी हो गया
बसंती रंग में रंगी अति सुन्दर सृजन आदरणीय 🙏
आदरणीया आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
Deleteराग, बंदिश, ताल, सुर, लय का पता कुछ भी न था
ReplyDeleteमिल गयी महफ़िल तो गायक खानदानी हो गया
एक से बढ़कर एक शेरों से सजी रचना के लिए हार्दिक बधाई तुषार जी!स्मृति शेष उषा जी की पुण्य स्मृति को सादर नमन! एक बहुत ही संवेदनशील रचनाकार का जाना बहुत दुखद है!🙏😔
आपका हृदय से आभार रेणु जी. सादर अभिवादन
Deleteसुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम
Deleteखुशबुओं की शाल ओढ़े आ गया छत पर ये कौन
ReplyDeleteचाँद निकला और मौसम रातरानी हो गया,,,,,, बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल आदरणीय सर ।
आदरणीया मधुलिका जी हार्दिक आभार. सादर प्रणाम
Deleteवाह वाह बहुत कमाल की गज़ल कही है आपने
ReplyDeleteहार्दिक आभार
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