Saturday, 10 February 2024

एक ग़ज़ल -सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है


चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है 

जंगल पर कब्जा है लकड़ी चोरों का
ज़ुर्म अकेले कहाँ है आदमखोरों का

सावन में भी कहाँ घटाएँ निकली थीं
नृत्य मयूरी देखे कैसे मोरों का

वर्षो की साधना,नहीं आलाप मधुर
अब संगीत समागम केवल शोरों का 


जो उड़ान पर उसे गिराने की साजिश
दोष नहीं उड़ती पतंग की डोरों का

फल वाले  पेड़ों पर सारे पंछी हैं 
कोई देता साथ कहाँ कमजोरों का 


सबको प्रेम कहाँ हासिल हो पाता है
किस्सा पढ़कर देखो चाँद -चकोरों का

थैले में सामान फ्लैट में आता है
गया ज़माना क्विंटल वाले बोरों का

आज़ादी है संविधान की शोहरत है
दिल दिमाग़ पर कब्जा अब भी गोरों का 


कवि /शायर
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल 



2 comments:

  1. वाह ... सचाई से भरे शेर ... अच्छा व्यंग ...

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम

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