Wednesday, 25 November 2020

एक गीत-नए वर्ष की नई सुबह अब साँसो पर पहरे मत लाना |


 

एक गीत-नए वर्ष की नई सुबह 

अब साँसों पर पहरे मत लाना

नए वर्ष की 

नई सुबह 

अब साँसो पर पहरे मत लाना |

चुभन सुई की

सह लेंगे पर

दर्द बहुत गहरे मत लाना ।


सारे रंग -गंध

फूलों के

बच्चों को बाँटना तितलियों ।

फिर वसंत के

गीत सुनाना

वंशी लेकर सूनी गलियों,

बीता साल

भुला देंगे हम

अब मौसम बहरे मत लाना ।


तारीख़ें शुभ

मंगल दिन हो

झीलों में अमृत सा जल हो,

जीवन की गति

हिरनी जैसी

वातायन की धुन्ध विरल हो,

प्रकृति तोड़ दे

घुँघरू अपने

ऐसे अब खतरे मत लाना ।


कण-कण में हो

रंग-रंगोली

दरपन में श्रृंगार भरा हो,

कविताओं के दिन

फिर लौटें 

स्वर कोई भी नहीं डरा हो ,

मीठे फल ताजा

पेड़ों से लाना

पर कुतरे मत लाना ।


कवि -जयकृष्ण राय तुषार 



कवि-चित्र -साभार गूगल 




12 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२६-११-२०२०) को 'देवोत्थान प्रबोधिनी एकादशी'(चर्चा अंक- ३८९७) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    Replies
    1. अनीता जी आपका हृदय से आभार

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  2. बहुत बहुत सुंदर भाव हृदय स्पर्शी गहरे तक उतरते।
    अभिनव सृजन।

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  3. बहुत सुंदर, सचमुच बहुत ही सुंदर काव्य-सृजन है यह । भाव-विभोर कर देने वाले छंदबद्ध शब्द और अक्षर-अक्षर मर्मस्पर्शी ।

    ReplyDelete

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