चित्र -गूगल से साभार |
मुझको मत कवि कहना मैं तो आवारा हूँ
ना कोई
राजा हूँ
ना मैं हरकारा हूँ |
यहाँ -वहाँ
गाता हूँ
मैं तो बंजारा हूँ |
मैं तो बंजारा हूँ |
साथ नहीं
सारंगी
ढोलक ,करताल नहीं ,
हमको
सुनते पठार
श्रोता वाचाल नहीं ,
छेड़ दें
हवाएं तो
बजता इकतारा हूँ |
धूप ने
सताया तो
सिर पर बस हाथ रहे ,
मौसम की
गतिविधियों में
उसके साथ रहे ,
नदियों में
डूबा तो
स्वयं को पुकारा हूँ |
झरनों का
बहता जल
चुल्लू से पीता हूँ ,
मुश्किल से
मुश्किल क्षण
हंस -हंसकर जीता हूँ ,
वक्त की
अँगीठी में
जलता अंगारा हूँ |
फूलों से
गन्ध मिली
रंग मिले फूलों से ,
रोज -नए
दंश मिले
राह के बबूलों से ,
मौसम के
साथ चढ़ा
और गिरा पारा हूँ |
महफ़िल तो
उनकी है
जिनके सिंहासन हैं ,
हम तो
वनवासी हैं
टीले ही आसन हैं ,
मुझको मत
कवि कहना
मेरा मुझको पाता न यारा
ReplyDeleteमैं आवारा एक बंजारा
.... बहुत खूब लिखा है जय कृष्ण जी
महफ़िल तो
ReplyDeleteउनकी है
जिनके सिंहासन हैं ,
हम तो
वनवासी हैं
टीले ही आसन हैं ,
मुझको मत
कवि कहना
मैं तो आवारा हूँ |
Kya gazab kee panktiyan hain!
बहुत बढियां...
ReplyDeleteमहफ़िल तो
उनकी है
जिनके सिंहासन हैं ,
हम तो
वनवासी हैं
टीले ही आसन हैं ,
मुझको मत
कवि कहना
मैं तो आवारा हूँ |
अति सुन्दर....
:-)
वाह! हमेशा की तरह बेहतरीन।
ReplyDeleteवाह तुषार जी...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
राह के बबूलों से ,
मौसम के
साथ चढ़ा
और गिरा पारा हूँ |
लाजवाब..
सादर
अनु
सरल सुमधुर गीत ,प्रशंसनीय राय साहब बहुत -२ बधाईयाँ जी l
ReplyDeleteसरल सुमधुर गीत ,प्रशंसनीय राय साहब बहुत -२ बधाईयाँ जी l
ReplyDeleteप्रकृति और भावनाओं का सुंदर सरल संगम...
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत ....
ReplyDeleteअति सुंदर गीत
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति।
ReplyDeletebahut acchi abhiwayakti geeton ke madham se ...tushar jee ...
ReplyDeleteमहफिल तो
ReplyDeleteउनकी है
जिनके सिंहासन हैं ,
हम तो
वनवासी हैं
टीले ही आसन हैं ,
मुझको मत
कवि कहना
मैं तो आवारा हूँ ।
मन को स्पर्श करता सुंदर गीत।
विजयादशमी की शुभकामनाएं।
महफ़िल तो
ReplyDeleteउनकी है
जिनके सिंहासन हैं ,
हम तो
वनवासी हैं
टीले ही आसन हैं ,
...लाज़वाब पंक्तियाँ...बहुत सुन्दर गीत..
झरनों का
ReplyDeleteबहता जल
चुल्लू से पीता हूँ ,
मुश्किल से
मुश्किल क्षण
हंस -हंसकर जीता हूँ ,
वक्त की
अँगीठी में
जलता अंगारा हूँ |
Tushar ji bahut sundar rachana padhwaya hai .......bina awargi ke kavita janm hi nahi ho sakata ....sadar abhar sir .
महफ़िल तो
ReplyDeleteउनकी है
जिनके सिंहासन हैं ,
हम तो
वनवासी हैं
टीले ही आसन हैं ,
मुझको मत
कवि कहना
मैं तो आवारा हूँ |
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कविता जब तक न होगी जब तक हम आवारा न होंगे। बन्धे होंगे तो कुछ न लिख पाऐंगे।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,बहुत खूब ।
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