चित्र -गूगल से साभार |
क्रांति करो
अब चुप मत बैठो
राजा नहीं बदलने वाला |
आग हुई
चूल्हे की ठंडी
अदहन नहीं उबलने वाला |
मंहगाई के
रक्तबीज अब
दिखा रहे हैं दिन में तारे ,
चुप बैठे हैं
सुविधा भोगी
जन के सब प्रतिनिधि बेचारे ,
कैलेन्डर की
तिथियों से अब
मौसम नहीं बदलने वाला |
कुछ ही दिन में
कंकड़ -पत्थर
मुंह के लिए निवाले होंगे ,
जो बोलेगा
उसके मुंह पर
कम्पनियों के ताले होंगे ,
भ्रष्टाचारी
केंचुल पहने
अजगर हमें निगलने वाला |
राजव्यवस्था
ए०सी० घर में
प्रेमचन्द का हल्कू कांपे ,
राजनीति का
वामन छल से
ढाई पग में हमको नापे ,
युवा हमारा
अपनी धुन में
ड्रम पर राग बदलने वाला |
हर दिन
उल्का पिंड गिराते
आसमान से हम क्या पाते ?
आंधी वाली
सुबहें आतीं
चक्रवात खपरैल उड़ाते ,
इस सूरज से
कुछ मत मांगो
शाम हुई यह ढलने वाला |
[आज रविवार 04-11-2012 को यह गीत अमर उजाला के साहित्य पृष्ठ शब्दिता में प्रकाशित हो गया है |सम्पादक साहित्य जाने -माने कवि/उपन्यासकार भाई अरुण आदित्य जी का आभार ]
बदलाव के लिए स्वयं ही कुछ करना होगा.... सार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत खूब कही...सुन्दर शब्द संयोजन और कथ्य भी...
ReplyDeleteआज के हालात का सुंदर चित्रण ....
ReplyDeleteअति सुन्दर रचना..
ReplyDeleteडॉ० मोनिका जी संगीता जी ,अमृता तन्मय जी और भाई वानभट्ट जी आप सभी का आभार |
ReplyDeleteहमें तो सूरज पिछले तीन दिन से दिखायी ही नहीं पड़ा है।
ReplyDeleteआज के परिवेश पर बहुत ही बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteहर दिन
ReplyDeleteउल्का पिंड गिराते
आसमान से हम क्या पाते ?
आंधी वाली
सुबहें आतीं
चक्रवात खपरैल उड़ाते ,
इस सूरज से
कुछ मत मांगो
शाम हुई यह ढलने वाला
तुषार जी, उत्कृष्ट है यह नवगीत।
समय का आईना है यह नवगीत।
क्रान्ति के ओजस्वी स्वर
ReplyDeleteसार्थक नवगीत।
ReplyDeleteचमत्कारिक प्रयोगों ने मन मोह लिया।
आदरणीय पाण्डेय जी, रीना जी, भाई महेंद्र जी ,मिश्र जी और अग्रज मनोज जी आप सभी का बहुत -बहुत आभार |
ReplyDeleteराजव्यवस्था
ReplyDeleteए०सी० घर में
प्रेमचन्द का हल्कू कांपे ,
राजनीति का
वामन छल से
ढाई पग में हमको नापे ,
...आज की व्यवस्था का बहुत सटीक और भावपूर्ण चित्रण...लाज़वाब शब्द संयोजन....
बहुत सुंदर गीत है , बहुत सामयिक भी। बहुत अच्छा लिख रहे है भाई , मेरी बधाई।
ReplyDeleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 08 - 11 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
सच ही तो है .... खूँटे से बंधी आज़ादी ..... नयी - पुरानी हलचल .... .
बहुत सुन्दर गीत...
ReplyDeleteप्रकाशन की बधाई...
सादर
अनु
आजकल के हालात की सच्चाई दर्शाता हुआ गीत !
ReplyDeleteप्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई !
~सादर !
क्रान्ति का नया स्वर
ReplyDeleteदीवाली की अनेक शुभ कामनाएँ !
ReplyDeleteकुछ ही दिन में
ReplyDeleteकंकड़ -पत्थर
मुंह के लिए निवाले होंगे ,
जो बोलेगा
उसके मुंह पर
कम्पनियों के ताले होंगे ,
भ्रष्टाचारी
केंचुल पहने
अजगर हमें निगलने वाला |