Thursday, 1 November 2012

एक नवगीत -इस सूरज से कुछ मत मांगो

चित्र -गूगल से साभार 
एक नवगीत -इस सूरज से कुछ मत मांगो 
क्रांति करो 
अब चुप मत बैठो 
राजा नहीं बदलने वाला |
आग हुई 
चूल्हे की ठंडी 
अदहन नहीं उबलने वाला |

मंहगाई के 
रक्तबीज अब 
दिखा रहे हैं दिन में तारे ,
चुप बैठे हैं 
सुविधा भोगी 
जन के सब प्रतिनिधि बेचारे ,
कैलेन्डर की 
तिथियों से अब 
मौसम नहीं बदलने वाला |

कुछ ही दिन में 
कंकड़ -पत्थर 
मुंह के लिए निवाले होंगे ,
जो बोलेगा 
उसके मुंह पर 
कम्पनियों के ताले होंगे ,
भ्रष्टाचारी 
केंचुल पहने 
अजगर हमें निगलने वाला |

राजव्यवस्था 
ए०सी० घर में 
प्रेमचन्द का हल्कू कांपे ,
राजनीति का 
वामन छल से 
ढाई पग में हमको नापे ,
युवा हमारा 
अपनी धुन में 
ड्रम पर राग बदलने वाला |

हर दिन 
उल्का पिंड गिराते 
आसमान से हम क्या पाते ?
आंधी वाली 
सुबहें आतीं 
चक्रवात खपरैल उड़ाते ,
इस सूरज से 
कुछ मत मांगो 
शाम हुई यह ढलने वाला |
[आज रविवार 04-11-2012 को यह गीत अमर उजाला के साहित्य पृष्ठ शब्दिता में प्रकाशित हो गया है |सम्पादक साहित्य जाने -माने कवि/उपन्यासकार भाई  अरुण आदित्य जी का आभार ]

19 comments:

  1. बदलाव के लिए स्वयं ही कुछ करना होगा.... सार्थक रचना

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  2. बहुत खूब कही...सुन्दर शब्द संयोजन और कथ्य भी...

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  3. आज के हालात का सुंदर चित्रण ....

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  4. अति सुन्दर रचना..

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  5. डॉ० मोनिका जी संगीता जी ,अमृता तन्मय जी और भाई वानभट्ट जी आप सभी का आभार |

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  6. हमें तो सूरज पिछले तीन दिन से दिखायी ही नहीं पड़ा है।

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  7. आज के परिवेश पर बहुत ही बेहतरीन रचना...

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  8. हर दिन
    उल्का पिंड गिराते
    आसमान से हम क्या पाते ?
    आंधी वाली
    सुबहें आतीं
    चक्रवात खपरैल उड़ाते ,
    इस सूरज से
    कुछ मत मांगो
    शाम हुई यह ढलने वाला

    तुषार जी, उत्कृष्ट है यह नवगीत।
    समय का आईना है यह नवगीत।

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  9. क्रान्ति के ओजस्वी स्वर

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  10. सार्थक नवगीत।
    चमत्कारिक प्रयोगों ने मन मोह लिया।

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  11. आदरणीय पाण्डेय जी, रीना जी, भाई महेंद्र जी ,मिश्र जी और अग्रज मनोज जी आप सभी का बहुत -बहुत आभार |

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  12. राजव्यवस्था
    ए०सी० घर में
    प्रेमचन्द का हल्कू कांपे ,
    राजनीति का
    वामन छल से
    ढाई पग में हमको नापे ,

    ...आज की व्यवस्था का बहुत सटीक और भावपूर्ण चित्रण...लाज़वाब शब्द संयोजन....

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  13. बहुत सुंदर गीत है , बहुत सामयिक भी। बहुत अच्छा लिख रहे है भाई , मेरी बधाई।

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  14. बहुत सुन्दर गीत...
    प्रकाशन की बधाई...

    सादर
    अनु

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  15. आजकल के हालात की सच्चाई दर्शाता हुआ गीत !
    प्रकाशन के लिए हार्दिक बधाई !
    ~सादर !

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  16. क्रान्ति का नया स्वर

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  17. दीवाली की अनेक शुभ कामनाएँ !

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  18. कुछ ही दिन में
    कंकड़ -पत्थर
    मुंह के लिए निवाले होंगे ,
    जो बोलेगा
    उसके मुंह पर
    कम्पनियों के ताले होंगे ,
    भ्रष्टाचारी
    केंचुल पहने
    अजगर हमें निगलने वाला |

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