हर की पैड़ी हरिद्वार -चित्र गूगल से साभार |
एक गीत -अपना दुःख कब कहती गंगा
स्वर्ग छोड़कर
चट्टानों में ,
वीरानों में बहती गंगा |
दुनिया का
संताप मिटाती
खुद कितने दुःख सहती गंगा |
रहे पुजारिन
या मछुआरिन
सबसे साथ निभा लेती है ,
सबके
आंचल में सुख देकर
सारा दर्द चुरा लेती है
आंख गड़े
या फटे बिवाई
अपना दुःख कब कहती गंगा |
चित्रकार ,
शिल्पी माँ तेरी
छवियाँ रोज गढ़ा करते हैं ,
कितने काशी
संगम तेरे
तट पर मंत्र पढ़ा करते हैं ,
सागर से
मिलने की जिद में
दूर -दूर तक दहती गंगा |
गाद लपेटे
कोमल तन पर
थककर भी विश्राम न करती ,
अभिशापित
होकर आयी हो
या तुमको प्रिय है यह धरती ,
कुछ तो है
अवसाद ह्रदय में
वरना क्यों चुप रहती गंगा |
तेरे जल में
राख बहाकर
कितने पापी स्वर्ग सिधरते ,
तेरी अमृतमय
बूंदों से
हरियाली के स्वप्न उभरते ,
जो भी डूबा
उसे बचाती
खुद कगार पर ढहती गंगा |
तेरे जल में
राख बहाकर
कितने पापी स्वर्ग सिधरते ,
तेरी अमृतमय
बूंदों से
हरियाली के स्वप्न उभरते ,
जो भी डूबा
उसे बचाती
खुद कगार पर ढहती गंगा |
प्रभावित करती कविता .
ReplyDeleteDua kartee hun ki is nadee ko qudrat kabhee na mitaye! Ham to tule hue hain mitane pe.
ReplyDeleteवर्षों से बस सहती गंगा..
ReplyDeleteganga ka dard sunder tarike se likha hai
ReplyDeleteprabhavi kavita
rachana
बहुत सुन्दर.....
ReplyDeleteहर हर गंगे...
सादर
अनु
आप ने सही चिंता व्यक्त की है ,जिस नदी को माँ का दर्ज़ा दिए गया है अब उसे बचाने के लिए हर व्यक्ति को अपने सत्र पर प्रयास करने होंगे..सिर्फ सरकार के भरोसे रहना व्यर्थ है.
ReplyDelete.......
कविता भी बहुत अच्छी लिखी है..
कुछ तो है अवसाद ह्रदय में वरना क्यों चुप रहती गंगा |.......
सत्य कहा!
अद्भुत !!
ReplyDeleteगंगा सी निर्मल रचना के हार्दिक बधाई जयकृष्ण जी!
ReplyDeleteमगर आज गंगा को हालत देखकर दुःख भी होता है .
ReplyDeleteभाई राजपूत जी गंगा की इसी दुर्दशा का तो हम कविता में चित्रण किये हैं |
ReplyDeleteगाद लपेटे
ReplyDeleteकोमल तन पर
थककर भी विश्राम न करती ,
अभिशापित
होकर आयी हो
या तुमको प्रिय है यह धरती ,
कुछ तो है
अवसाद ह्रदय में
वरना क्यों चुप रहती गंगा |
प्रश्न स्वाभाविक है और विचारणीय भी.
बहुत सुंदर प्रस्तुति.