Saturday, 13 October 2012

एक गीत -माँ ! नहीं हो तुम

चित्र -गूगल से साभार 

 माँ की स्मृतियों को प्रणाम करते हुए 
एक गीत -माँ ! नहीं हो तुम 
माँ !नहीं हो 
तुम कठिन है 
मुश्किलों का हल |
अब बताओ 
किसे लाऊँ 
फूल ,गंगाजल |

सफ़र से 
पहले दही -गुड़ 
होंठ पर रखती ,
किन्तु घर के 
स्वाद कड़वे 
सिर्फ़ तुम चखती ,
राह में 
रखती 
हमारे एक लोटा जल |

सांझ को 
किस्से सुनाती 
सुबह उठ कर गीत गाती ,
सगुन -असगुन 
पर्व -उत्सव 
बिना पोथी के बताती ,
रोज 
पूजा में 
चढ़ाती देवता को फल |

तुम दरकते 
हुए रिश्तों की 
नदी पर पुल बनाती |
मौसमों का 
रुख समय से 
पूर्व माँ तुम भाँप जाती ,
तुम्हीं से 
था माँ !
पिता के बाजुओं में बल |

मौन में तुम 
गीत चिड़ियों का 
अंधेरे में दिया हो ,
माँ हमारे 
गीत का स्वर 
और गज़ल का काफ़िया हो ,
आज भी 
यादें तुम्हारी 
हैं मेरा संबल |

13 comments:

  1. तीन -चार दिन के लिए गाँव जा रहा तब तक अंतर्जाल से दूर रहूँगा |अपना स्नेह बनाए रक्खें |आभार सहित |

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  2. स्मृतियाँ ही संबल बनकर जीती रहती।

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  3. तुम दरकते
    हुए रिश्तों की
    नदी पर पुल बनाती |.... bahut hi sundar chitran kiya hai maa ka ...

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  4. माँ की स्मृतियाँ ताउम्र याद रहती है,,,

    माँ पर लिखी रचना देखे,,,

    MY RECENT POST:...माँ...:

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  5. बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  6. अलोक श्रीवास्तव की रचना अम्मा की कुछ लाइनें याद आ गयीं...

    घर में झीने-रिश्ते मैंने लाखों बार उघडते देखे...
    चुपके से कर देती है जाने कब तुरपाई अम्मा...

    माँ को सादर नमन...सुन्दर रचना...

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  7. हृदयस्पर्शी स्मृतियाँ .....

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  8. मौन में तुम
    गीत चिड़ियों का
    अंधेरे में दिया हो ,
    माँ हमारे
    गीत का स्वर
    और गज़ल का काफ़िया हो ,
    आज भी
    यादें तुम्हारी
    हैं मेरा संबल |

    बहुत सुन्दर श्रद्धा भाव

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  9. अति सुन्दर ..विह्वल करती रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई..

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  10. किन्तु घर के
    स्वाद कड़वे
    सिर्फ़ तुम चखती ,

    पिता के बाजुओं का बल .... बहुत सुंदर भावों से सजी प्यारी रचना

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  11. बहुत सुन्दर....
    हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ...

    सादर
    अनु

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  12. सुन्दर रचना

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