चित्र -गूगल से साभार |
बांध रहे नज़रों को फूल हरसिंगार के
बाँध रहे
बाँध रहे
नज़रों को
फूल हरसिंगार के |
तुमने
कुछ बोल दिया
चर्चे हैं प्यार के |
मौसम का
रंग -रूप
और अधिक निखरा है ,
सैलानी
मन मेरा
आसपास बिखरा है ,
आज
मिला कोई
बिन चिट्ठी ,बिन तार के |
उतरे हैं
पंछी ये
झुकी हुई डाल से ,
रिझा गया
कोई फिर
नैन ,नक्श ,चाल से |
टीले
मुस्तैद खड़े
जुल्फ़ को संवार के |
बलखाती
नदियों के संग
आज बहना है ,
अनकहा
रहा जो कुछ
आज वही कहना है ,
अब तक
हम दर्शक थे
नदी के कगार के |
[मेरा यह गीत नवगीत की पाठशाला में हाल ही में प्रकाशित हो चुका है -साभार ]
बाँध रहे
ReplyDeleteनज़रों को
फूल हरसिंगार के |
तुमने
कुछ बोल दिया
चर्चे हैं प्यार के |
काव्य का माधुर्य सौंदर्य की गलियों से गुजरे तो रश्मियों का परावर्तन अनेकों रूपों में ढल ही जाता है ... के बात है जी राय साहब .....बरसता मन ,भीगता मन .....
बहुत सुंदर नवगीत......
ReplyDeleteआखिर आप कूद ही पड़े मझधार में...साहिल से कब तक तूफानों का मंज़र देखते...भला...गुजरिये कभी...वाणभट्ट से...
ReplyDeleteवाह ...बहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबलखाती
ReplyDeleteनदियों के संग
आज बहना है ,
अनकहा
रहा जो कुछ
आज वही कहना है ,
अब तक
हम दर्शक थे
नदी के कगार के |...waah bahut sunder geet tushar ji . harsingar बाँध रहे
नज़रों को
फूल हरसिंगार के...waah waah hadik badhai sunder geet ke liye .
वाह, कोमल भाव भरी, प्रवाहपूर्ण रचना।
ReplyDeleteनवगीत बांध कर रखता है।
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