चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
कब लौटोगी कथा सुनाने
कब लौटोगी
कथा सुनाने
ओ सिंदूरी शाम |
रीत गयी है
गन्ध संदली
शोर हवाओं में ,
चुटकी भर
चांदनी नहीं है
रात दिशाओं में ,
टूट रहे
आदमकद शीशे
चीख और कोहराम |
माथे बिंदिया
पांव महावर
उबटन अंग लगाने ,
जूडे चम्पक
फूल गूंथने
क्वांरी मांग सजाने ,
हाथों में
जादुई छड़ी ले
आना मेरे धाम |
बंद हुई
खिड़कियाँ ,झरोखे
तुम्हें खोलना है ,
बिजली के
तारों पर
नंगे पांव डोलना है ,
प्यासे होठों पर
लिखना है
बौछारों का नाम |
सूरज कल भोर में जगाना
नींद नहीं
टूटे तो
देह गुदगुदाना |
सूरज
कल भोर में
जगाना |
फूलों में
रंग भरे
खुशबू हो देह धरे ,
मौसम के
होठों से
रोज सगुन गीत झरे ,
फिर आना
झील -ताल
बांसुरी बजाना |
हल्दी की
गाँठ बंधे
रंग हों जवानी के ,
इन सूखे
खेतों में
मेघ घिरें पानी के ,
धरती की
कोख हरी
दूब को उगाना |
लुका -छिपी
खेलेंगे
जीतेंगे -हारेंगे
मुंदरी के
शीशे में
हम तुम्हें निहारेंगे ,
मन की
दीवारों पर
अल्पना सजाना |
अल्पना सजाना |
प्यासे होठों पर
ReplyDeleteलिखना है
बौछारों का नाम |
....
लुका -छिपी
खेलेंगे
जीतेंगे -हारेंगे
मुंदरी के
शीशे में
हम तुम्हें निहारेंगे ,
दोनों ही रचनाएँ बहुत सुन्दर ...गहरे अहसास, कोमल भाव और शब्दों और भावों का बहुत सुन्दर संयोजन...बेहतरीन
दोनों ही गीत बहुत सुंदर ....... प्रभावी अभिव्यक्ति.....
ReplyDelete.
ReplyDeleteआपकी दोनों रचनाएँ पढ़ीं। जो पढने मात्र से ही मन को गुदगुदा दे , उसे ही असली सृजन कहते हैं । 'सांझ' को इतने प्यार से बुलाना और 'सूरज' से इतनी मीठी विनती करना , दोनों ही मन को अतिप्रिय लगा।
बधाई।
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tushar ji,
ReplyDeletelaajavaab navgeet padhvaaye
mazaa aa gaya :)
भाई कैलाश शर्मा जी डॉ० मोनिका जी डॉ० दिव्या और वीनस जी आप सभी का आभार |
ReplyDeleteसुन्दर गीत पढ़वाने के लिए तुषार जी आपका आभार.
ReplyDeleteGahra prem .. komal ehsaas aur madhur shabdon se rachi khoobsoorat rachna ...
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