चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार |
सुलगते
सवाल कई
छोड़ गया मौसम |
मानसून
रिश्तों को
तोड़ गया मौसम |
धुआँ -धुँआ
चेहरे हैं
धान -पान खेतों के ,
नदियों में
ढूह खड़े
हंसते हैं रेतों के ,
पथरीली
मिट्टी को
गोड़ गया मौसम |
आंगन कुछ
उतरे थे
मेघ बिना पानी के ,
जो कुछ हैं
पेड़ हरे
राजा या रानी के ,
मिट्टी के
मटके हम
फोड़ गया मौसम |
मिमियाते
बकरे हम
घूरते कसाई ,
शाम -सुबह
नागिन सी
डंसती मंहगाई ,
चूडियाँ
कलाई की
वाह, सुंदर नवगीत| तोड़ गया, छोड गया, फोड़ गया, जोड़ गया तो ठीक पर आप ने तो एक कदम आगे बढ़ते हुए जो गोड गया वाला शब्द प्रयोग में लाया है, क्या कहने| नवगीत क्या होता है, आप को पढ़ कर सहज ही समझा जा सकता है| बहुत बहुत बधाई तुषार जी| आप ऐसे ही गीत पढ़वाते रहो, और हम आनंद लेते रहें|
ReplyDeleteमिमियाते
ReplyDeleteबकरे हम
घूरते कसाई ,
शाम -सुबह
नागिन सी
डंसती मंहगाई ,
....
बहुत सुन्दर भावों और शब्दों का संयोजन..बहुत सार्थक प्रस्तुति..
kya baat hai ji :)
ReplyDeleteधुआँ -धुँआ
ReplyDeleteचेहरे हैं
धान -पान खेतों के ,
नदियों में
ढूह खड़े
हंसते हैं रेतों के ,
गहन अभिव्यक्ति ....बहुत सुंदर
आदरणीय भाई नवीन जी बड़े भाई कैलाश शर्मा जी डॉ० मोनिका जी और पारुल जी आपके सुंदर कमेंट्स और उत्साहवर्धन से मेरा यह गीत धन्य हो गया आपका प्यार और आशीर्वाद मिलता रहेगा तो मेरी कलम से कुछ अच्छा ही लिखा जायेगा |आभार
ReplyDeleteMaza aa gaya padhke!
ReplyDeleteमिमियाते
ReplyDeleteबकरे हम
घूरते कसाई ,
शाम -सुबह
नागिन सी
डंसती मंहगाई ,
हुत सुन्दर भावों और शब्दों का संयोजन.. सार्थक प्रस्तुति!
राय साहब , गोड़ने वाली बात एकदम मस्त रही . आंचलिक भाषा के इस शब्द का प्रयोग चार चाँद लगा गया इस कविता में .
ReplyDeleteरिश्तो को तोड गया और सुलगते सवाल छोड गया , मिटटी के मटके भी फोड गया ,कलाई की चूडिंया भी तोड गया । बडा बेमुरब्बत मौसम था जी वकील साहव
ReplyDeleteभाई ब्रिजमोहन जी अगर आप दुबारा ब्लॉग पर आयें तो कृपया वकील शब्द का इस्तेमाल न करें और आप खुद एक वकील हैं तो इस स्तर और गरिमा को बनाये रखें |ब्लॉग पर मैं एक कवि की हैसियत से हूँ और वही मुझे प्रिय है |कविता पर सार्थक कमेंट्स से मैं घबराता नहीं लेकिन यहाँ मैं सभी की तरह एक ब्लोगर हूँ बिलकुल सहज और सरल |
ReplyDeleteबहुत सुन्दर .....गहन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति ...आपकी रचनाशीलता.. स्वयं परिचय देती है..
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