Monday, 27 December 2010

एक गीत -स्वागत आगन्तुक दिनमान का

चित्र -गूगल से साभार 
कल का सूरज
डूबा, स्वागत!
आगन्तुक दिनमान का।
यह सम्वत
शायद कुछ बदले
चेहरा रेगिस्तान का।

बहुत
बदलना चाहे लेकिन
मौसम नहीं बदलता है,
हरियाली का
स्वप्न आंख में
धू-धू करके जलता है,
चैमासे में
खेत पड़ा है
मुंह पीला खलिहान का।

हंसे कुंवारी
धूप हल्दिया
मैना आंगन चहके,
अरुणिम
आभा से पलाश की
जंगल घाटी दहके,
आछी के
फूलों सा महके
हर कोना दालान का।

सिर पर
ओढ़े रात चांदनी
लहरिल मोती झील हो,
चहल पहल में
मन का गहरा
सन्नाटा तब्दील हो,
जूड़े-जूड़े
फूल टांकता
हाथ बढ़े पवमान का।

पल्लव
अधरों से फिर ऋतुएं
छन्द पढ़ें अमराई के,
हर उत्सव में
पंडवानी के गीत
हों तीजन बाई के,
स्वागत करें
सुआ पिंजरे से
घर आये मेहमान का।

7 comments:

  1. स्वागत करें
    सुआ पिंजरे से
    घर आये मेहमान का।
    सुन्दर विम्बों से सजी रचना!!!

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  2. पल्लव
    अक्षरों से फिर ऋतुएं
    छन्द पढ़ें अमराई के,
    हर उत्सव में
    पंडवानी के गीत
    हों तीजन बाई के,
    स्वागत करें
    सुआ पिंजरे से
    घर आये मेहमान का।
    ***
    वाह! एक सम्पूर्ण रचना ! ऐसे लगा जैसे नव पल्लव रोम-रोम में खिलने लगे हों. मिट्टी की खुशबू से सरोबार आपकी ये रचना इतनी भाई कि शब्द अपनी अक्षमता ही दर्शा रहे हैं.. स्वागत है, बधाई ! आभार !!

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  3. बहुत
    बदलना चाहे लेकिन
    मौसम नहीं बदलता है,
    हरियाली का
    स्वप्न आंख में
    धू-धू करके जलता है,
    चैमासे में
    खेत पड़ा है
    मुंह पीला खलिहान का।

    _________________________


    बढिया गीत है ....

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  4. जयकृष्ण भाई बहुत सुन्दर शब्दों से सजी बहुत खूबसूरत रचना.

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  5. आपकी इस सुन्दर रचना के नीचे मै आपको नववर्ष की शुभकामनाये दे रही हूँ .. आपको परिवार सहित नववर्ष खुशियाँ और अच्छा स्वस्थ लाए .. मंगलकामनाएं ...

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  6. बहुत
    बदलना चाहे लेकिन
    मौसम नहीं बदलता है,
    हरियाली का
    स्वप्न आंख में
    धू-धू करके जलता है,
    चैमासे में
    खेत पड़ा है
    मुंह पीला खलिहान का ...

    गज़ब के छंद है सब ... धाराप्रवाह बहते हुवे .... अलग अलग रंग लिए ...

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