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चित्र साभार गूगल |
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चित्र साभार गूगल |
एक गीत -मौसम में जितने भी रंग उन्हें रहने दो
फूलों को
खिलने दो
नदियों को बहने दो.
मौसम में
जितने भी रंग
उन्हें रहने दो.
झील -ताल
पर्वत,
ये घाटी, ये देवदार,
केसर, चन्दन
औषधि
नदियों की धवल धार,
तुतलाते
बच्चों सा
इनको कुछ कहने दो.
जनपद के
लोकरंग
मादल, ढपली, मृदंग,
हरे भरे
वन मैना
हिरणों की हो उमंग,
राही को
अनुभव की
धूप -छाँह सहने दो.
दिशा देह -
गंध भरे
खुशबू ले पवन बहे,
दीप जले
रंग उड़े
शिखर कलश ऊँ कहे,
स्मृति में
परी लोक
किस्सों को रहने दो.
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
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चित्र साभार गूगल |
मौसम की खूबसूरती शब्दों के माध्यम से महसूस कराती बहुत सुंदर रचना सर।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३१ अक्टूबर२०२३ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
हार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत खूबसूरत रचना ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteसुंदर रचना..
ReplyDeleteआभार..
सादर
हार्दिक आभार आपका
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteआपका हृदय से आभार
Deleteअलौकिक रचना !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteझील -ताल
ReplyDeleteपर्वत,
ये घाटी, ये देवदार,
केसर, चन्दन
औषधि
नदियों की धवल धार,
तुतलाते
बच्चों सा
इनको कुछ कहने दो.
.
अत्यंत सुंदर रचना
हार्दिक आभार भाई
Deleteप्रकृति के प्राकृतिक खजानों को शब्दों में सहेज कर सुंदर सृजन।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteआपकी किसी भी रचना के पारायण के उपरांत कुछ कहने का नहीं, स्तब्ध रहकर उस काव्याभिव्यक्ति के सौंदर्य को अनुभूत करने का मन होता है। यह अति सुंदर रचना भी अपवाद नहीं।
ReplyDeleteभाई साहब आपका स्नेह है सादर अभिवादन. आपका हृदय से आभार
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