Saturday 11 June 2022

कुछ सामयिक दोहे

चित्र साभार गूगल 


कुछ सामयिक दोहे


कोई भी संगीत दे चित्रा या ख़य्याम

अब से पत्थरबाज़ हो कभी न कोई शाम


औरों से कहिए नहीं अपने घर की बात

अंधेरा कब चाहता हो पूनम की रात


मन्दिर -मस्जिद, चर्च में रहे शांति पैगाम

तुझमें है तेरा ख़ुदा  मुझमें मेरा राम


भारत माँ युग युग रहे तेरी कीर्ति अशेष

गंगाजल सा पुण्य दें ब्रह्मा, विष्णु, महेश 


भारत की रज भूमि में देवों का संसार

अर्जुन का गाण्डीव यह पोरस की तलवार


तार -तार मत कीजिए संविधान, क़ानून

लोगों तक मत भेजिए नफ़रत का मज़मून


पापी को मिलता कहाँ कभी पुण्य का धाम

अपराधी की छावनी बुलडोज़र के नाम 


बनना है तुलसी बनो, कबीरा औ रसखान

मुँह से मीठा बोलिए खाकर मगही पान


अतिथि प्रेम बंधुत्व की भारत एक मिसाल

इसके नभ में इंद्रधनु सागर सीप, प्रवाल


जिनके कर्मों से मिला सदा राष्ट्र को मान

सदियों तक उस राष्ट्र को रहता है अभिमान


प्रेम, शांति, सौहार्द से जीवित यह संसार

ज्यादा दिन चलती नहीं खिलजी की तलवार


हर दिन मौसम गर्म है गायब, तितली, फूल

बच्चे लावा हो गए कैसे ये स्कूल


दुनिया पहुँची  चाँद पर फिर भी हम हैरान

फिर भी कोई सच नहीं कहता हे भगवान


स्त्री माँ का रूप है उसको दो सम्मान

पूरी लंका जल गयी सिर्फ एक अपमान


गंगाजल में चन्द्रमा या यमुना में चाँद

दोनों में छवि एक है फिर कैसा उन्माद

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल 


8 comments:

  1. लाजवाब दोहे ।
    उन्मादियों को वजह की ज़रूरत नहीं होती ।।

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(12-6-22) को "सफर चल रहा है अनजाना" (चर्चा अंक-4459) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  3. उत्तम ...
    लाजवाब हैं सभी दोहे ... सामयिक और सार्थक ...

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  4. बहुत सुंदर

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    1. हार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम

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  5. प्रेम, शांति, सौहार्द से जीवित यह संसार

    ज्यादा दिन चलती नहीं खिलजी की तलवार
    सारगर्भित दोहे !!

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    1. हार्दिक आभार. सादर प्रणाम

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