Thursday, 24 February 2022

एक प्रेम गीत-तुमने जिस दीप को छुआ

 

चित्र साभार गूगल

एक प्रेमगीत-तुमने जिस दीप को छुआ


लौट गयी

पल भर थी चाँदनी

दूर अभी भोर के उजाले ।

सिरहाने

शंख धरे सोये

पर्वत की पीठ पर शिवाले ।


यात्राओं में

सूनापन

चौराहों पर जादू -टोने,

वासन्ती 

मेड़ों पर बैठी

खेतों में गीत लगी बोने,

सूरज को

प्यास लगी शायद

झीलों से मेघ उड़े काले ।


उसमें था

कैसा सम्मोहन

घर तक मुस्कान लिए लौटे,

रंग चढ़े

होठों पर सादे

काशी से पान लिए लौटे,

प्रेम के

सुकोमल स्पर्शों से

टूट गए जंग लगे ताले ।


फूलों से

लौटती हवा

फागुन के गीत गा रही ,

तुमने 

जिस दीप को छुआ

उसकी लौ खिलखिला रही,

पलकों में

बसने की ज़िद

काजल को पार गए आले।

जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र-साभार गूगल



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