चित्र साभार गूगल |
एक प्रेमगीत-तुमने जिस दीप को छुआ
लौट गयी
पल भर थी चाँदनी
दूर अभी भोर के उजाले ।
सिरहाने
शंख धरे सोये
पर्वत की पीठ पर शिवाले ।
यात्राओं में
सूनापन
चौराहों पर जादू -टोने,
वासन्ती
मेड़ों पर बैठी
खेतों में गीत लगी बोने,
सूरज को
प्यास लगी शायद
झीलों से मेघ उड़े काले ।
उसमें था
कैसा सम्मोहन
घर तक मुस्कान लिए लौटे,
रंग चढ़े
होठों पर सादे
काशी से पान लिए लौटे,
प्रेम के
सुकोमल स्पर्शों से
टूट गए जंग लगे ताले ।
फूलों से
लौटती हवा
फागुन के गीत गा रही ,
तुमने
जिस दीप को छुआ
उसकी लौ खिलखिला रही,
पलकों में
बसने की ज़िद
काजल को पार गए आले।
जयकृष्ण राय तुषार
चित्र-साभार गूगल
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