चित्र साभार गूगल |
एक लोकभाषा गीत-
प्रेम क रंग निराला हउवै
सिर्फ़ एक दिन प्रेम दिवस हौ
बाकी मुँह पर ताला हउवै
ई बाजारू प्रेम दिवस हौ
प्रेम क रंग निराला हउवै
सबसे बड़का प्रेम देश की
सीमा पर कुर्बानी हउवै
प्रेम क सबसे बड़ा समुंदर
वृन्दावन कै पानी हउवै
प्रेम भक्ति कै चरम बिंदु हौ
तुलसी कै चौपाई हउवै
सूरदास,हरिदास,सुदामा
ई तौ मीराबाई हउवै
प्रेम क मन हौ गंगा जइसन
प्रेम क देह शिवाला हउवै
प्रेम मतारी कै दुलार हौ
बाबू कै अनुशासन हउवै
ई भौजी कै हँसी-ठिठोली
गुरु क शिक्षा,भाषन हउवै
बेटी कै सौभाग्य प्रेम हौ
बहिन क रक्षाबन्धन हउवै
सप्तपदी कै कसम प्रेम हौ
हल्दी,सेन्हुर,चन्दन हउवै
आज प्रेम में रंग कहाँ हौ
एकर बस मुँह काला हउवै
प्रेम न माटी कै रंग देखै
प्रेम नदी कै धारा हउवै
ई पर्वत घाटी फूलन कै
खुशबू कै फ़व्वारा हउवै
जइसे सजै होंठ पर वंशी
वइसे अनहद नाद प्रेम हौ
एके ढूँढा नहीं देह में
मन से ही संवाद प्रेम हौ
प्रेम न राजा -रंक में ढूंढा
ई गोकुल कै ग्वाला हउवै
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र साभार गूगल |
चित्र-साभार गूगल
बहुत सुंदर रचना,आदरणीय शुभकामनाएँ ।
ReplyDeleteमधुलिका जी आपका हार्दिक आभार।सादर अभिवादन
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (15-2-22) को पाश्चात्य प्रेमदिवस का रंग" (चर्चा अंक 4342)पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा
आपका हार्दिक आभार
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 15 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार आपका
Deleteसुंदर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन
Deleteपरेम सब कछुव हैय पर आजकल जौन चलत बा दिन दहाड़े उ परेम नाही हउवै... बढिया रचना👌👌👌
ReplyDeleteशुक्रिया ।लेकिन यहाँ कविता में उस प्रेम का जिक्र नहीं है जिसकी तरफ आपका संकेत है
Deleteखूबसूरत सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत सुंदर... वाह!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteबहुत ही सुंदर रचना है आपकी
ReplyDeleteहार्दिक आभार मित्र
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteसादर प्रणाम।आपका हृदय से आभार।
Deleteउम्दा सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
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