Thursday, 10 February 2022

एक गीत-फागुन की गलियों में

 

चित्र साभार गूगल

एक गीत-फागुन की गलियों में


चोंच में

उछाह भरे

जलपंछी तिरते हैं।

शतदल के

फूलों में

अनचाहे घिरते हैं।


होठों पर

वंशी के

राग-रंग बदले हैं,

पाँवों के

घुँघरू से

कत्थक स्वर निकले हैं,

स्वर के

सम्मोहन में

टूट-टूट गिरते हैं ।


नए-नए

फूलों की

गंध है किताबों में,

कैसे कह दूँ

तुमसे

देखा जो ख़्वाबों में,

मौसम के

पारे तो 

उठते हैं,गिरते हैं।


वृन्दावन

मन अथाह

कौन इसे नापे,

कुर्ते की

पीठों पर

हल्दी के छापे,

फागुन की

गलियों में

रंग सभी फिरते हैं।

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


2 comments:

  1. बहुत ही सुंदर

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    1. हार्दिक आभार आपका।सादर अभिवादन

      Delete

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