पवित्र नर्मदा नदी -चित्र साभार गूगल |
एक गीत -
जंगल में हिरनों की चीखें सुनते कहाँ पहाड़
जंगल में
हिरनों की चीखें
सुनते कहाँ पहाड़ |
विन्ध्य ,सतपुड़ा
मौन नर्मदा
किससे कहे निमाड़ |
झरने लगे
ज़हर फूलों से
मौसम सोया है ,
नदियों के
समीप ही
जलकर जंगल रोया है ,
संकट में
अपने ही घर के
खुलते नहीं किवाड़ |
शहर न जाना
छिपकर बैठे
कितने आदमखोर ,
साँपों से
गठबंधन करके
नाच रहे कुछ मोर ,
घर में भी
महफूज नहीं हम
कौन लगाये बाड़ |
झरनों की
जलती लहरें हैं
लावा फूटा है ,
समरसता
तक जाने वाला
हर पुल टूटा है ,
संध्याएँ
सहमी ,विक्षिप्त दिन
सुबहें लगें उजाड़ |
कवि -जयकृष्ण राय तुषार
चित्र -साभार गूगल |
बहुत सुन्दर नवगीत
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय |
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21 -4 -2020 ) को " भारत की पहचान " (चर्चा अंक-3678) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
आदरणीया कामिनी जी आपका हृदय से आभार |
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