Monday 20 April 2020

एक गीत -जंगल में हिरनों की चीखें सुनते कहाँ पहाड़

पवित्र नर्मदा नदी -चित्र साभार गूगल 

एक गीत -
जंगल में हिरनों की चीखें सुनते कहाँ पहाड़ 

जंगल में 
हिरनों की चीखें 
सुनते कहाँ पहाड़ |

विन्ध्य ,सतपुड़ा 
मौन नर्मदा 
किससे कहे निमाड़ |

झरने लगे 
ज़हर फूलों से 
मौसम सोया है ,
नदियों के 
समीप ही 
जलकर जंगल रोया है ,

संकट में 
अपने ही घर के 
खुलते नहीं किवाड़ |

शहर न जाना 
छिपकर बैठे 
कितने आदमखोर ,
साँपों से 
गठबंधन करके 
नाच रहे कुछ मोर ,

घर में भी 
महफूज नहीं हम 
कौन लगाये बाड़ |

झरनों की 
जलती लहरें हैं 
लावा फूटा है ,
समरसता 
तक जाने वाला 
हर पुल टूटा है ,

संध्याएँ 
सहमी ,विक्षिप्त दिन 
सुबहें लगें उजाड़ |

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र -साभार गूगल 

4 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (21 -4 -2020 ) को " भारत की पहचान " (चर्चा अंक-3678) पर भी होगी,
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीया कामिनी जी आपका हृदय से आभार |

      Delete

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