चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -कास -वन जलता रहा
भोर में
उगता रहा और
साँझ को ढ़लता रहा |
सूर्य का
रथ देखने में
कास -वन जलता रहा |
नदी विस्फारित
नयन से
हांफता सा जल निहारे ,
गोपियाँ
पाषाणवत हैं
अब किसे वंशी पुकारे ,
प्रेम से जादा
विरह दे
कृष्ण भी छलता रहा |
चांदनी के
दौर में मैं
धूप पर लिखता रहा ,
दरपनों में
एक पागल
आदमी दिखता रहा ,
सारथी का
रथ वही ,
पहिया वही, चलता रहा |
चित्र -गूगल से साभार |
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