चित्र -साभार गूगल |
एक गीत -महलों की पीड़ा मत सहना
महलों की
पीड़ा मत सहना
आश्रम में रह जाना |
अब शकुंतला
दुष्यंतों के
झांसे में मत आना |
इच्छाओं के
इन्द्रधनुष में
अनगिन रंग तुम भरना ,
कोपग्रस्त
ऋषियों के
शापों से किंचित मत डरना ,
कभी नहीं
अब गीत रुदन के
वन प्रान्तर में गाना |
अबला नारी
एक मिथक है
इसी मिथक को तोड़ो ,
अपनी शर्तों पर
समाज से
रिश्ता -नाता जोड़ो ,
रिश्तों का
आधार अंगूठी
हरगिज नहीं बनाना |
आधार अंगूठी
हरगिज नहीं बनाना |
प्रेम वही
जो दंश न देता
यह गोकुल ,बरसाने ,
इसे राजवैभव
के मद में
डूबा क्या पहचाने ,
एक नया
शाकुंतल लिखने
कालिदास फिर आना |
चित्र -साभार गूगल |
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 15.02.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2881 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन मधुबाला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteसुन्दर !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
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