चित्र -गूगल से साभार |
एक गीत -यह वसंत भी प्रिये !
तुम्हारे होठों का अनुवाद है
तुमसे ही
कविता में लय है
जीवन में संवाद है |
यह वसंत भी
प्रिये ! तुम्हारे
होठों का अनुवाद है |
तुम फूलों के
रंग ,खुशबुओं में
कवियों के स्वप्नलोक में ,
लोककथाओं
जनश्रुतियों में
प्रेमग्रंथ में कठिन श्लोक में ,
जलतरंग पर
खिले कमल सी
भ्रमरों का अनुनाद है |
तुम्हें परखने
और निरखने में
सूखी कलमों की स्याही ,
कालिदास ने
लिखा अनुपमा
हम तो एक अकिंचन राही
तेरा हँसना
और रूठना
और रूठना
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरूवार 18-01-2018 को प्रकाशनार्थ 916 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-01-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2852 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब...
सुन्दर कविता ! किन्तु 'बच्चों की लोरी' वाली उपमा समझ में नहीं आई.
ReplyDeleteसर बच्चों की लोरी ,सुखदा प्रियतम का आह्लाद कई उपमाएं है आप इसे प्रेम का एक डायमेंशन समझ लें कई रूप यहाँ है |वैसे यह प्रेम गीत है इसलिए आपके तर्क से भी मैं सहमत हूँ |सादर
Deleteवाह!!बहुत खूब।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
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