कवि -स्व० कैलाश गौतम |
एक गीत -रामधनी की दुलहिन -कवि कैलाश गौतम
मुंह पर उजली धूप
पीठ पर काली बदली है |
रामधनी की दुलहिन
नदी नहाकर निकली है |
इसे देखकर जल जैसे
लहराने लगता है ,
थाह लगाने वाला
थाह लगाने लगता है ,
होंठो पर है हंसी
गले चाँदी की हंसली है |
गाँव -गली अमराई से
खुलकर बतियाती है ,
अक्षत रोली और नारियल
रोज चढ़ाती है ,
ईख के मन में पहली -पहली
कच्ची इमली है |
लहरों का कल -कल
इसकी मीठी किलकारी है ,
पान की आँखों में रहती
यह धान की क्यारी है ,
क्या कहना है परछाई का
रोहू मछली है |
दुबली -पतली देह बीस की
युवा किशोरी है ,
इसकी अंजुरी जैसे
कोई खीर कटोरी है ,
रामधनी कहता है हंसकर
बहुत सुंदर गीत
ReplyDeleteवाह, बहुत सुन्दर
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