Friday, 6 May 2016

एक गीत -रामधनी की दुलहिन -कवि कैलाश गौतम



कवि -स्व० कैलाश गौतम 

एक गीत -रामधनी की दुलहिन -कवि कैलाश गौतम 


मुंह पर उजली धूप 
पीठ पर काली बदली है |
रामधनी की दुलहिन 
नदी नहाकर निकली है |

इसे देखकर जल जैसे 
लहराने लगता है ,
थाह लगाने वाला 
थाह लगाने लगता है ,
होंठो पर है हंसी 
गले चाँदी की हंसली है |

गाँव -गली अमराई से 
खुलकर बतियाती है ,
अक्षत रोली और नारियल 
रोज चढ़ाती है ,
ईख के मन में पहली -पहली 
कच्ची इमली है |

लहरों का कल -कल 
इसकी मीठी किलकारी है ,
पान की आँखों में रहती 
यह धान की क्यारी है ,
क्या कहना है परछाई का 
रोहू मछली है |

दुबली -पतली देह बीस की 
युवा किशोरी है ,
इसकी अंजुरी जैसे 
कोई खीर कटोरी है ,
रामधनी कहता है हंसकर 
कैसी पगली है |
चित्र /पेंटिंग्स गूगल से साभार 



2 comments:

  1. बहुत सुंदर गीत

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  2. वाह, बहुत सुन्दर

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