Monday, 11 March 2013

भोपाल से प्रकाशित अन्तरा का गीत विशेषांक -एक अवलोकन

सम्पादक -नरेन्द्र दीपक 
अन्तरा का गीत विशेषांक -एक समीक्षा 

भोपाल मध्य प्रदेश की राजनैतिक राजधानी ही नहीं वरन साहित्यिक और सांस्कृतिक राजधानी भी है | इस शहर की साहित्यिक गतिविधिया समूचे देश को प्रभावित करती हैं | कुछ दिन पूर्व ही जाने -माने कवि भाई नरेन्द्र दीपक ने गीत विधा पर केन्द्रित पत्रिका अन्तरा के प्रकाशन का शुभारम्भ किया था ,जो पाठको के बीच अपनी अलग छवि बनाने में कामयाब रही है | अन्तरा का छठा अंक बहुत ही पठनीय और संग्रहनीय है |यह अंक गीत विशेषांक है | हाल ही में गीत विधा पर कई विशेषांक प्रकाशित हुए है सबकी अपनी -अपनी सम्पादकीय दृष्टि और सोच है ,इसी तरह भाई नरेन्द्र दीपक की अपनी सोच है | अन्तरा के अंक के बारे में यही कहना उचित होगा -सतसैया के दोहरे ज्यों नावक के तीर ......वास्तव में यह कोई भारी -भरकम अंक नहीं है लेकिन इस अंक में अन्य गीत अंको से बहुत कुछ अलग है | पत्रिका के आरम्भ में तीन महत्वपूर्ण आलेख हैं -हिंदी गीतों का व्यापक वितान लेखक कैलाशचन्द्र पन्त ,नवगीत गीत है पर डॉ0 भारतेन्दु मिश्र का आलेख ,गीतों की सदानीरा नदी नर्मदा पर चन्द्रसेन विराट  का आलेख | ग्यारह छायावादोत्तर प्रमुख कवियों के एक -एक गीत के साथ उन पर चर्चा [आलेख ] इस अंक को संग्रहनीय बनाता है | ये वो कवि है जिनसे गीत विधा को गौरव हासिल हुआ है -रामेश्वर शुक्ल अंचल पर दिवाकर वर्मा का आलेख ,हरिवंशराय बच्चन पर राम अधीर का आलेख ,गोपाल सिंह नेपाली पर डॉ 0 सुरेश गौतम का आलेख शिवमंगल सिंह सुमन पर श्रीराम परिहार का आलेख ,बलवीर सिंह रंग पर डॉ 0 प्रेम कुमारी कटियार का आलेख रमानाथ अवस्थी पर डॉ सुरेश गौतम का आलेख ,वीरेन्द्र मिश्र पर शिवशंकर शर्मा का आलेख पदमविभूषण गोपालदास नीरज पर डॉ0 पशुपतिनाथ उपाध्याय का आलेख ,मुकुटबिहारी सरोज पर सुमेर सिंह शैलेश का आलेख और डॉ0 शिव बहादुर सिंह भदौरिया पर मधु शुक्ला का पठनीय आलेख है | गीत खण्ड के अंतर्गत कुछ चुनिन्दा गीतकारों को ही शामिल किया गया है जिनके नाम इस क्रम में हैं -यश मालवीय ,कुमार रवीन्द्र ,शान्ति सुमन ,मधु शुक्ला ,राजकुमारी रश्मि ,दिनेश शुक्ल ,राम सेंगर ,जयकृष्ण राय तुषार ,रजनी मोरवाल ,किशोर काबरा ,जगदीश श्रीवास्तव ,सत्येन्द्र तिवारी और चन्द्रसेन विराट ,स्तम्भ के अंतर्गत ज्योत्स्ना प्रवाह का आलेख प्रेम एक गीत है पठनीय है |बिलकुल प्रारम्भ में नीरज जी का एक गीत है | कुल मिलाकर सम्पादक नरेन्द्र दीपक का यह बेजोड़ कार्य सराहनीय है और उनकी सम्पादकीय टीम साधुवाद की हक़दार है |गीतों के पतन में स्वयं गीत कवियों की भूमिका प्रमुख रही है मंचीय स्वभाव एक दूसरे पर गद्य में कुछ न लिखना ,अपने से बड़ा गीत कवि किसी को न मानना भी एक कारण है |लेकिन गीत तो प्रकृति की हर लय में समाहित है ,यह कभी ख़त्म ही नहीं हो सकता बस इसका तेवर और कलेवर बदल सकता है |यह विरहाकुल नायिका का दोस्त है तो प्रेम मग्न नायक नायिका को रिझाता है |कभी खेत में काम करते मजदूर का साथ निभाता है तो कभी क्रांति का काम करता है | गीत हमेशा जीवित रहेगा और इसे जीवित रखेगें भाई नरेन्द्र दीपक जैसे जीवट वाले सम्पादक उसे जीवित रखेगें कलम के सिपाही | वाचिक परम्परा का होने के कारण भी गीत कभी खत्म नहीं होगा | गीत की यह मशाल युगों -युगों तक जलती रहे |अन्तरा निरन्तर अपने प्रयास में दिनमान की तरह प्रकाशमान रहे |
-मेरी कलम से 


सिद्ध गीतकार नरेन्द्र दीपक के सम्पादन में निकलने वाली गीतधर्मी पत्रिका अन्तरा का ताज़ा विशेषांक गीत केन्द्रित ही रखा गया है | दीपक जी की रचनात्मक प्रखर दृष्टि और संयोजन में इसे एक सर्जनात्मक चेहरा दे दिया |गीत में हमारी परम्परा और आज का गीत दोनों का ही प्रतिनिधित्व हुआ है | शिवमंगल सुमन जी से लेकर मधु शुक्ला के गीतात्मक संसार से पत्रिका हमें परिचित कराती है |निश्चित रूप से यह अपने समय में दर्ज एक रचनात्मक आन्दोलन है ,जिसकी एक विलक्षण भाव- भूमि अभिभूत करती है |
सुप्रसिद्ध गीत कवि -यश मालवीय 

एक गीत -मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार 
कवि -शिवमंगल सिंह सुमन 
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार 
पथ ही मुड़ गया था |

गति मिली मैं चल पड़ा 
पथ पर कहाँ रुकना मना था 
राह अनदेखी ,अजाना देश 
संगी अनसुना था |
चाँद -सूरज की तरह चलता 
न जाना रात -दिन है 
किस तरह हम तुम गए मिल 
आज भी कहना कठिन है 
तन न आया मांगने अभिसार 
मन ही जुड़ गया था |

देख मेरे पंख चल ,गतिमय 
लता भी लहलहाई 
पत्र आंचल में छिपाए मुख 
कली भी मुस्कुराई |
एक क्षण को थम गए  डैने 
समझ विश्राम का पल 
पर प्रबल संघर्ष बनकर 
आ गयी आंधी सदल -बल |
डाल झूमी पर न टूटी 
किन्तु पंछी उड़ गया था |

कवि -शिवमंगल सिंह सुमन 

7 comments:

  1. एक सम्यक व प्रभावपूर्ण समीक्षा ...बहुत बहुत बधाई के पात्र हैं आप ...
    साभार!

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  2. प्रभावपूर्ण समीक्षा .

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  3. आकर्षक प्रस्तुति .एवं सटीक समीक्षा .धन्यवाद तुषार

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  4. गीत तो प्रकृति की हर लय में हैं..बस गुनगुनाना है..आकर्षक प्रस्तुति..

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