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चित्र -गूगल से साभार |
किताबों में नहीं लिक्खा है ये सच है अभी देखो
किसी बच्चे को इक टॉफी थमा दो फिर हँसी देखो
अगर रंजिश भी है तो फैसले करिए मोहब्बत से
किसी मजदूर के गुस्से में उसकी बेबसी देखो
रसोईघर के चूल्हों को बुझा देने की है साजिश
हुकूमत की मोहब्बत और हमसे आशिकी देखो
समन्दर को बड़ा कहते हैं सब ,पर मैं नहीं कहता
कई दरिया का जल पीता है उसकी तिश्नगी देखो
मुखालिफ़ मौसमों में ये धुँआ ,कालिख नहीं देखो
अँधेरे में मशालों में है कितनी रौशनी देखो
वो इक बूढ़ा जिसे बच्चे अकेला छोड़ देते हैं
सफ़र में जब कभी गिरता उठाते अजनबी देखो
किसी चश्में से मैं देखूँ हमेशा वो नज़र आये
मेरी गज़लों से उसके हुस्न की बाबस्तगी देखो
शहर का फूल है खुशबू भी उसकी गर्द ओढ़े है
मेरी बस्ती के फूलों में हमेशा ताज़गी देखो
मेरी बस्ती के फूलों में हमेशा ताज़गी देखो