Sunday, 20 November 2011

एक गीत -राजा को टकसाल चाहिए

चित्र -गूगल से साभार 
हमें चाँदनी -
चौक ,मुम्बई और 
नहीं भोपाल चाहिए |
हम किसान 
बुनकर के वंशज  
हमको रोटी -दाल चाहिए |

हथकरघों से 
सपने बुनकर 
हम कबीर के पद गाएंगे ,
युगों -युगों की 
भ्रान्ति तोड़ने 
काशी से मगहर जाएंगे ,
हमें एक 
सारंगी साधो 
झाँझ और करताल चाहिए |

हम किसान हैं 
कठिन जिन्दगी 
फिर भी हर मौसम में गाते ,
धूप -छाँह से ,
नदी -पहाड़ों से 
हैं अपने रिश्ते -नाते ,
सूखे खेत 
बरसना मेघों 
हमको नहीं अकाल चाहिए |

आप धन्य !
जनता के सेवक 
रोज बनाते महल -अटारी .
भेष बदलकर 
भाव बदलकर 
हमको छलते बारी -बारी ,
परजा के 
हिस्से महंगाई 
राजा को टकसाल चाहिए |
चित्र -गूगल से साभार 

23 comments:

  1. kaash ek jahan mil pata
    jahan aisa har sapna sach ho jata...

    bahut sundar geet...

    ReplyDelete
  2. परजा के
    हिस्से महंगाई
    राजा को टकसाल चाहिए |


    बहुत भावपूर्ण गीत

    ReplyDelete
  3. पूजा जी और संगीता जी आप दोनों का बहुत -बहुत आभार |

    ReplyDelete
  4. हथकरघों से
    सपने बुनकर
    हम कबीर के पद गाएंगे ,
    युगों -युगों की
    भ्रान्ति तोड़ने
    काशी से मगहर जाएंगे ,
    हमें एक
    सारंगी साधो
    झाँझ और करताल चाहिए |superb song

    ReplyDelete
  5. वाह,
    सबको सबका जहाँ नहीं मिल पाता..

    ReplyDelete
  6. सुंदर गीत!
    व्यवस्था के प्रति क्षोभ तो है लेकिन आशावादिता की झंकार स्पष्ट गुंजायमान है गीत में...

    ReplyDelete
  7. सुन्दर भावपूर्ण

    ReplyDelete
  8. परजा के
    हिस्से महंगाई
    राजा को टकसाल चाहिए |

    बहुत खूब...

    ReplyDelete
  9. हथकरघों से
    सपने बुनकर
    हम कबीर के पद गाएंगे ,
    युगों -युगों की
    भ्रान्ति तोड़ने
    काशी से मगहर जाएंगे ,
    हमें एक
    सारंगी साधो
    झाँझ और करताल चाहिए |

    हम किसान हैं
    कठिन जिन्दगी
    फिर भी हर मौसम में गाते ,
    धूप -छाँह से ,
    नदी -पहाड़ों से
    हैं अपने रिश्ते -नाते ,
    सूखे खेत
    बरसना मेघों
    हमको नहीं अकाल चाहिए |
    Behtareen panktiyan! Aprateem bhaav!

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन प्रस्तुति।

    ReplyDelete
  11. दीन के दर्द को अभिव्यक्त करती इस कविता का अंत ...राजा को टकसाल चाहिए.. से होता है। जो इसे बेहतरीन कटाक्ष में परिवर्तित कर देता है।
    ..मेरी बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  12. परजा के
    हिस्से महंगाई
    राजा को टकसाल चाहिए |

    बहुत सुंदर ...

    ReplyDelete
  13. तेरे भाव कुसुम की कीमत सबसे ऊँची और बड़ी !"
    सूने में प्रतिमा बोल पड़ी !

    वाह ...बहुत खूब कहा ।

    ReplyDelete
  14. आज के समय में ऐसा गीत लिखने की कला सिर्फ तुषार की कलम में ही हो सकती है . बहुत बहुत धन्यवाद .

    ReplyDelete
  15. हम किसान हैं
    कठिन जिन्दगी
    फिर भी हर मौसम में गाते ,
    धूप -छाँह से ,
    नदी -पहाड़ों से
    हैं अपने रिश्ते -नाते ,
    सूखे खेत
    बरसना मेघों
    हमको नहीं अकाल चाहिए ।

    सुंदर कामना व्यक्त करता उत्तम गीत।

    ReplyDelete
  16. सुन्दर शब्द और अद्भुत भाव लिए अप्रतिम रचना ...बधाई


    नीरज

    ReplyDelete
  17. आप धन्य !
    जनता के सेवक
    रोज बनाते महल -अटारी .
    भेष बदलकर
    भाव बदलकर
    हमको छलते बारी -बारी ,
    परजा के
    हिस्से महंगाई
    राजा को टकसाल चाहिए |



    वाह वाह तुषार जी बहुत दिनों के बात एक "झमाझम" गीत पढ़ने को मिला

    शुक्रिया और बधाई स्वीकारें

    ReplyDelete
  18. तुषार जी नमस्कार, बहुत सुन्दर लिखा है आप बनाये भवन अटारी ------परजा के हिस्से महंगाई राजा को टकसाल चाहिये । फिर भी इनका पेट नही भरता नेता जो ठ्हरे बांट्ना और राज करना ही नीति बन गैइ है।

    ReplyDelete
  19. आज के राजा को तो टकसाल भी कम है...

    ReplyDelete
  20. ब्लॉग पर आकर हमारा उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी का बहुत -बहुत आभार |

    ReplyDelete
  21. तकलीफ देह सच्चाई तो यही है ....
    शुभकामनायें आपको !

    ReplyDelete
  22. भेष बदलकर
    भाव बदलकर
    हमको छलते बारी -बारी ,excellent.

    ReplyDelete
  23. आप धन्य !
    जनता के सेवक
    रोज बनाते महल -अटारी .
    भेष बदलकर
    भाव बदलकर
    हमको छलते बारी -बारी ,
    परजा के
    हिस्से महंगाई
    राजा को टकसाल चाहिए |

    ____________________


    गीतों में यही बहरहाल चाहिये .....
    अच्छा गीत है

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक गीत -सर्द मौसम

  चित्र साभार गूगल  एक गीत -सर्द मौसम  बर्फ़ में गुलमर्ग  औली  और शिमला है. सर्द मौसम में  गुलाबी  कोट निकला है. छतें  स्वेटर बुन रही हैं  भा...