चित्र -गूगल से साभार |
शीत का मौसम
ठिठुरती काँपती है |
बड़े होने तक -
हमें माँ ढांपती है |
हरा है स्वेटर मगर
मैरून बुनती है ,
नज़र धुँधली है मगर
माँ कहाँ सुनती है ,
कभी कंधे तो -
कभी कद नापती है |
कभी कद नापती है |
रात -दिन बिखरा हुआ
माँ घर सजाती है ,
बाद्य यंत्रों के बिना
निर्गुण सुनाती है ,
पढ़ नहीं सकती
कथाएं बाँचती है |
जानती रस्में -
प्रथाएं जानती है ,
प्रकृति का हर रंग
माँ पहचानती है ,
सीढियाँ चढ़ते -
उतरते हाँफती है |
पिता कम्बल और
हम हैं शाल ओढ़े ,
भाग्य में उसके
अँगीठी और मोढ़े ,
माँ हमारा मन
परखती -जाँचती है |
पिता कम्बल और
हम हैं शाल ओढ़े ,
भाग्य में उसके
अँगीठी और मोढ़े ,
माँ हमारा मन
परखती -जाँचती है |
एक चिड़िया की तरह
माँ घोंसला बुनती ,
वह हमारा सुर सुगम -
संगीत सा सुनती ,
उत्सवों में संग
बहू के नाचती है |
बहू के नाचती है |
चित्र -गूगल से साभार |
तुषार जी नमस्कार, सही लिखा आपने मां तो सब कुछ जानती है अपने बच्चे के बारे में।
ReplyDeleteबिलकुल ताज़ा बिम्बों और नए प्रतीकों के साथ माँ के अंतर्मन को अक्षर अक्षर बाचता गीत
ReplyDeleteधन्यवाद तुषार जी
स्म सारी और
ReplyDeleteप्रथाएं जानती है ,
प्रकृति का हर रंग
माँ पहचानती है ,
सीढियाँ चढ़ते -
उतरते हाँफती है |
बहुत सुंदर पंक्तियाँ ...
बहुत अच्छी रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर!
ReplyDeleteरस्म सारी और
ReplyDeleteप्रथाएं जानती है ,
प्रकृति का हर रंग
माँ पहचानती है ,
सीढियाँ चढ़ते -
उतरते हाँफती है |...maa to jadu hoti hai
मां और उनकी भावनाओं को समेटती यह अभिव्यक्ति ...बेहतरीन ।
ReplyDeleteपिता कम्बल और
ReplyDeleteहम हैं शाल ओढ़े ,
भाग्य में उसके
अँगीठी और मोढ़े ,
माँ हमारा मन
परखती -जाँचती है |
....माँ सचमुच सब जानती है...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
ये जाफरानी पुलोवर उसी का हिस्सा है
ReplyDeleteकोई जो दूसरा पहने तो दूसरा ही लगे
बेजोड़ रचना
बधाई
नीरज
माँ तो सब कुछ समझती और जानती है ...बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteभारत की माँ ६ ऋतुओं से बच्चों को बचाती हैं।
ReplyDeleteशीत का मौसम
ReplyDeleteठिठुरती काँपती है |
बड़े होने तक -
हमें माँ ढांपती है |
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अच्छा प्रयोग है
गीत बिल्कुल नयापन लिये हुए है
बहुत ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! हर पंक्तियाँ दिल को छू गई! माँ के बारे में जितना भी कहा जाये कम है!
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