Sunday, 27 November 2011

एक गीत -खुली किताबों में

चित्र -गूगल से साभार 
 चलो मुश्किलों का हल ढूँढें खुली किताबों में 
बीत रहे हैं 
दिन सतरंगी 
केवल  ख़्वाबों में |
चलो मुश्किलों 
का हल ढूँढें 
खुली  किताबों में |

इन्हीं किताबों में 
जन- गण -मन 
तुलसी की चौपाई ,
इनमें ग़ालिब -
मीर ,निराला 
रहते हैं परसाई ,
इनके भीतर 
जो खुशबू वो 
नहीं  गुलाबों में |

इसमें कई 
विधा के गेंदें  -
गुड़हल खिलते हैं ,
बंजर  मन  
को इच्छाओं  के  
मौसम मिलते हैं |
लैम्पपोस्ट में 
पढ़िए या फिर 
दफ़्तर, ढाबों में |

तनहाई से 
हमें किताबें 
दूर भगाती हैं ,
ज्ञान अगर 
खुद सो जाए 
तो उसे जगाती हैं ,
इनमें  जो 
परवाज़ ,कहाँ 
होती सुर्खाबों में ?

इनको पढ़कर 
कई घराने 
गीत सुनाते हैं ,
इनकी  जिल्दों में 
जीवन के रंग 
समाते हैं ,
ये न्याय सदन ,
संसद के सारे 
प्रश्न -जबाबों में |


चित्र -गूगल से साभार 
[इलाहाबाद में विगत दिनों पुस्तक मेले में भ्रमण के दौरान मन में यह विचार आया कि क्यों न पुस्तकों के संदर्भ में कोई कविता /गीत लिखा जाए |यह गीत इसी विचार की देन है |पुस्तकें वास्तव में हमें रास्ता दिखाती हैं ,ये अन्धेरे में जलती हुई मशाल होती हैं |हमारी सही मायने में दोस्त होती हैं |पुस्तकें वक्त का आईना होती हैं |हम कवि /लेखक इनके बिना अपने अस्तित्व की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं |]

20 comments:

  1. इन्हीं किताबों में
    जन- गण -मन
    तुलसी की चौपाई ,
    इनमें ग़ालिब -
    मीर ,निराला
    रहते हैं परसाई ,
    इनके भीतर
    जो खुशबू वो
    नहीं गुलाबों में |
    Behtareen rachana!

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  2. पुस्तक की महिमा पर सुन्दर गीत ..

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  3. यदि मुश्किलों का हल बाहर होता तो मुश्किलें ही बाहर हो गयी होतीं। बड़ी ही सुन्दर पंक्तियाँ ।

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  4. किताबें अच्छी दोस्त भी हैं -खूबसूरत रचना

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  5. किताब पर सुन्दर कविता!

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  6. आदरणीय जयकृष्ण राय तुषार जी
    सस्नेहाभिवादन !

    आपके एक और शानदार नव गीत को पढ़ कर मन प्रसन्न हो गया -
    इन्हीं किताबों में जन- गण -मन तुलसी की चौपाई
    इनमें ग़ालिब - मीर , निराला रहते हैं परसाई
    इनके भीतर जो खुशबू वो नहीं गुलाबों में

    इसमें कई विधा के गेंदें - गुड़हल खिलते हैं
    बंजारे मन को इच्छा के मौसम मिलते हैं
    लैम्पपोस्ट में पढ़िए या फिर दफ़्तर ढाबों में

    तनहाई से हमें किताबें दूर भगाती हैं
    ज्ञान अगर खुद सो जाए तो उसे जगाती हैं
    इनमें जो परवाज़ कहां होती सुर्खाबों में ?


    वाह वाह ! हर विषय पर आप सुंदर लिखते हैं … हार्दिक बधाई !


    # हम कवि /लेखक इनके बिना अपने अस्तित्व की कल्पना ही नहीं कर सकते हैं |
    सही कहा आपने … इसी कारण तो मेरे निजी पुस्तक संग्रह में किताबों की तादाद हद से ज़्यादा बढ़ जाने के कारण छोटे घर में रखने में हो रही दिक्कत के बावजूद दो साल से किताबें बेचने या किसी को दे देने का निर्णय टलता आ रहा है ।

    श्रेष्ठ लेखन के लिए बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. किताबों से बढ़िया साथी मिलना असंभव है...जब चाहो खुल जाती है...बिना किसी फरमाइश या जोर-ज़बरदस्ती के...

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  8. kitab har tarah se vykti ke kaam aate hai..gyan ho ya timepass...
    kitabe hi insan ki sacchi dost hoti hai.
    kitabo par bahut hi sundar rachana hai ..

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  9. तनहाई से
    हमें किताबें
    दूर भगाती हैं ,very nice.

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  10. पुस्तकें सबसे अच्छी मित्र होती हैं ,जो खुद कुछ न बोलते हुए भी निर्णय लेने की क्षमता को परिपक्व करती हैं .....

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  11. सुन्दर पंक्तियाँ ,सुन्दर अभिव्यक्ति ..

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  12. what a beautiful creation , very nice rai sahab thanks ji .

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  13. तुषार जी नमस्कार, बहुत बढिया किताब को समर्पित गीत इन्ही किताबो मे जन--------------

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  14. इन्हीं किताबों में
    जन- गण -मन
    तुलसी की चौपाई ,
    इनमें ग़ालिब -
    मीर ,निराला
    रहते हैं परसाई ,
    इनके भीतर
    जो खुशबू वो
    नहीं गुलाबों में |
    सुंदर कविता, और सच भी किताबों से अच्छा साथी और कौन होगा !


    मेरी नई कविता "अनदेखे ख्वाब"

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  15. आदरणीय जय कृष्ण भाई जी...
    बड़ा मोहक गीत प्रस्तुत किया है आपने...
    सादर....

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  16. बहुत ही बढ़िया सर!

    सादर

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  17. पुस्तक महिमा पर बहुत सुंदर रचना,..
    मेरे नए पोस्ट "प्रतिस्पर्धा"पर......

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