चलो कि रस्मे मोहब्बत पे एतबार तो है
मेरी विजय पे न थीं तालियाँ न दोस्त रहे
मेरी शिकस्त का इन सबको इंतजार तो है
हजार नींद में एक फूल छू गया था हमें
हजार ख़्वाब था लेकिन वो यादगार तो है
गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई
उस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है
तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है
अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है
हमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा
अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
ReplyDeleteतेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है
वाह जी क्या कल्पना है ....काश ऐसा संभव हो जाए ...!
waah...
ReplyDeleteek-ek sher bahut hi lajawaab...
तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है
mera pasndeeda... n aapko hi dedicated... :)
n really so sorry itne dino na aane ke liye... bahut kuchh miss kar diya maine... :(
सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
ReplyDeleteदेत बधाई प्रेम से, प्रस्तुति हो अविराम ||
wow just awasome , sundar prastuti . badhai
ReplyDeleteबेहतरीन रचना है।
ReplyDeleteवाह ....बहुत खूब
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteहमीं से रंज ,ज़माने से उसको प्यार तो है
ReplyDeleteयूँ उसको रस्मे मोहब्बत पे एतबार तो है
....बहुत खूब! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल.
सर ये तीन शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ
ReplyDeleteफेसबुक पर शेयर करूँगा
इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
..............................
हमीं से रंज ,ज़माने से उसको प्यार तो है
यूँ उसको रस्मे मोहब्बत पे एतबार तो है
अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है
तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नजीर ,मीर सही,
हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है |
गज़ब अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteगुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई
ReplyDeleteउस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है
आपकी ग़ज़ल बिल्कुल हट के होती हैं। इनमें जो नवगीत की छटा आप बिखेर देते हैं, वह आप ही कर सकते हैं।
@ "मेरी विजय पे न थीं तालियाँ न दोस्त रहे
ReplyDeleteमेरी शिकस्त का इन सबको इंतजार तो है "
यह तो ब्लोगिंग व्यवहार का निचोड़ है....
आभार आपका इस प्यारी रचना के लिए ! आनंद आ गया इसे पढ़कर !
गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई
ReplyDeleteउस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है
waah, kya baat hai
आपकी लिखी गजलें तो बेमिसाल हुआ करती हैं तुषार जी । बधाई।
ReplyDeleteआप सभी का आभार लेकिन दिव्या जी का विशेष आभार क्योकि हिंदी दिवस पर प्रथम बार उनका कमेंट्स हिंदी में आया है |पूजा जी आप भी बहुत दिन बाद ब्लॉग पर आयी हैं इसलिए आपका अलग से आभार
ReplyDeleteआप सभी का आभार लेकिन दिव्या जी का विशेष आभार क्योकि हिंदी दिवस पर प्रथम बार उनका कमेंट्स हिंदी में आया है |पूजा जी आप भी बहुत दिन बाद ब्लॉग पर आयी हैं इसलिए आपका अलग से आभार
ReplyDeleteमेरी विजय पे न थीं तालियाँ न दोस्त रहे
ReplyDeleteमेरी शिकस्त का इन सबको इंतजार तो है ..
इया लाजवाब गज़ल के सारे शेर कमाल की हैं .. आज के हालात कुछ ऐसे ही हैं ...
सुन्दर गीत... खास तौर पर इन पंक्तियों ने दिल छू लिया...
ReplyDelete"गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई
उस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है "
भाई अरुण जी इतनी भी क्या हड़बड़ी थी कि आपने गज़ल को गीत लिख दिया |
ReplyDeleteतुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
ReplyDeleteहमारे दौर में भी एक शहरयार तो है
हमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा
तुम्हारे शहर का मौसम ये खुशगवार तो है
बेहतरीन शेर हैं
कहीं तो मौसम खुशगवार हो ...उम्दा गजल !
ReplyDeleteतुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
ReplyDeleteहमारे दौर में भी एक शहरयार तो है
अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है
हमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा
तुम्हारे शहर का मौसम ये खुशगवार तो है
बेहतरीन पंक्तियाँ...
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