Tuesday, 13 September 2011

मेरी एक गज़ल-हमीं से रंज


हमीं से रंज ,ज़माने से उसको प्यार तो है 
चलो कि  रस्मे मोहब्बत पे एतबार तो है 

मेरी विजय पे न थीं  तालियाँ न दोस्त रहे 
मेरी शिकस्त का इन सबको इंतजार तो है 

हजार नींद में एक फूल छू गया था हमें 
हजार ख़्वाब था लेकिन वो यादगार तो है 

गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई 
उस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है 

तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही 
हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है 

अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही 
तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है 

हमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा 
तुम्हारे शहर का मौसम ये खुशगवार तो है 
[सभी चित्र गूगल से साभार ]

23 comments:

  1. अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
    तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है

    वाह जी क्या कल्पना है ....काश ऐसा संभव हो जाए ...!

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  2. waah...
    ek-ek sher bahut hi lajawaab...
    तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
    हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है
    mera pasndeeda... n aapko hi dedicated... :)
    n really so sorry itne dino na aane ke liye... bahut kuchh miss kar diya maine... :(

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  3. सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
    देत बधाई प्रेम से, प्रस्तुति हो अविराम ||

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  4. wow just awasome , sundar prastuti . badhai

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  5. बेहतरीन रचना है।

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  6. वाह ....बहुत खूब

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  7. This comment has been removed by the author.

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  8. हमीं से रंज ,ज़माने से उसको प्यार तो है
    यूँ उसको रस्मे मोहब्बत पे एतबार तो है

    ....बहुत खूब! बहुत ख़ूबसूरत गज़ल.

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  9. सर ये तीन शेर अपने साथ लिए जा रहा हूँ
    फेसबुक पर शेयर करूँगा

    इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई
    ..............................

    हमीं से रंज ,ज़माने से उसको प्यार तो है
    यूँ उसको रस्मे मोहब्बत पे एतबार तो है

    अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
    तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है

    तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नजीर ,मीर सही,
    हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है |

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  10. गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई
    उस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है
    आपकी ग़ज़ल बिल्कुल हट के होती हैं। इनमें जो नवगीत की छटा आप बिखेर देते हैं, वह आप ही कर सकते हैं।

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  11. @ "मेरी विजय पे न थीं तालियाँ न दोस्त रहे
    मेरी शिकस्त का इन सबको इंतजार तो है "

    यह तो ब्लोगिंग व्यवहार का निचोड़ है....
    आभार आपका इस प्यारी रचना के लिए ! आनंद आ गया इसे पढ़कर !

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  12. गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई
    उस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है
    waah, kya baat hai

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  13. आपकी लिखी गजलें तो बेमिसाल हुआ करती हैं तुषार जी । बधाई।

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  14. आप सभी का आभार लेकिन दिव्या जी का विशेष आभार क्योकि हिंदी दिवस पर प्रथम बार उनका कमेंट्स हिंदी में आया है |पूजा जी आप भी बहुत दिन बाद ब्लॉग पर आयी हैं इसलिए आपका अलग से आभार

    ReplyDelete
  15. आप सभी का आभार लेकिन दिव्या जी का विशेष आभार क्योकि हिंदी दिवस पर प्रथम बार उनका कमेंट्स हिंदी में आया है |पूजा जी आप भी बहुत दिन बाद ब्लॉग पर आयी हैं इसलिए आपका अलग से आभार

    ReplyDelete
  16. मेरी विजय पे न थीं तालियाँ न दोस्त रहे
    मेरी शिकस्त का इन सबको इंतजार तो है ..

    इया लाजवाब गज़ल के सारे शेर कमाल की हैं .. आज के हालात कुछ ऐसे ही हैं ...

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  17. सुन्दर गीत... खास तौर पर इन पंक्तियों ने दिल छू लिया...
    "गुजरती ट्रेनें रुकीं खिड़कियों से बात हुई
    उस अजनबी का हमें अब भी इंतजार तो है "

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  18. भाई अरुण जी इतनी भी क्या हड़बड़ी थी कि आपने गज़ल को गीत लिख दिया |

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  19. तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
    हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है

    हमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा
    तुम्हारे शहर का मौसम ये खुशगवार तो है

    बेहतरीन शेर हैं

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  20. कहीं तो मौसम खुशगवार हो ...उम्दा गजल !

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  21. तुम्हारे दौर में ग़ालिब ,नज़ीर ,मीर सही
    हमारे दौर में भी एक शहरयार तो है

    अब अपने मुल्क की सूरत जरा बदल तो सही
    तेरा निज़ाम है कुछ तेरा अख्तियार तो है

    हमारा शहर तो बारूद के धुंए से भरा
    तुम्हारे शहर का मौसम ये खुशगवार तो है

    बेहतरीन पंक्तियाँ...

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