Sunday, 11 September 2011

साक्षात्कार -दीवार के उस पार-प्रोफ़ेसर बी० आर० दीपक से अरुण आदित्य की बातचीत

चीन के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित जे० एन० यू० के चीनी भाषा के विद्वान
 प्रोफेसर बी० आर० दीपक 
चीन के सर्वोच्च सम्मान स्पेशल बुक प्राइज से सम्मानित चीनी भाषा के   प्रोफ़ेसर  बी० आर० दीपक से अरुण आदित्य की बातचीत 
जे० एन० यू० में चीनी भाषा के विद्वान बी० आर० दीपक एक ऐसी सीढ़ी तैयार कर रहे हैं ,जिस पर चढकर चीन की लौह दीवार के उस पार देखा जा सकता है कि वहां साहित्य और संस्कृति का क्या हाल है |यह सीढ़ी है भाषा की ,अनुवाद की और मैत्री की |हाल ही में चीन ने उन्हें विदेशी मूल के लेखकों के लिए दिए जाने वाले सर्वोच्च सम्मान -स्पेशल बुक प्राइज़-से सम्मानित किया है |
अरुण आदित्य [-जाने -माने कवि ,उपन्यासकार और अमर उजाला के संपादक साहित्य ]
भारत और चीन के बीच द ग्रेट वाल ऑफ चाइना  भले ही  न हो ,संशय और संवादहीनता की दीवार जरूर है |यही वजह है कि दोनों देशों के लोग एक दूसरे के साहित्य -संस्कृति के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं रखते हैं |बी० आर० दीपक एक ऐसे शख्स हैं ,जिन्होंने इस संवादहीनता को को कम करने के लिए काफ़ी प्रयास किया है |उन्होंने भारत चीन के रिश्तों पर कई महत्वपूर्ण किताबें लिखीं है |हाल ही में उन्होंने भारत चीन की 88क्लासिक कविताओं का अनुवाद किया है ,जिसे चीन के सर्वोच्च पुरस्कार से सम्मानित किया गया है |प्रोफेसर बी० आर० दीपक से की गयी यह महत्वपूर्ण बातचीत आज अमर उजाला के शब्दिता पेज पर प्रकाशित है |हम साभार अमर उजाला इसे आप तक पहुंचा रहे हैं -
अरुण आदित्य -जिस मिटटी से यह दीपक बना है ,कुछ उसके बारे में बताएं |

बी० आर० दीपक --14 अक्टूबर 1966 को टील गांव ,तहसील बंजार जिला कुल्लू [हिमांचल प्रदेश ]में मेरा जन्म हुआ |बचपन भी वहीँ बीता |पिता जी किसान थे |काफी बड़ा परिवार था |हम पांच भाई चार बहनें हैं |प्राथमिक शिक्षा वहीं से हुई ,टील स्कूल से ,जो कि काफी पुराना प्राइमरी स्कूल है |ऐसा कहा जाता है कि 1927 में अंग्रेजों ने उसे बनवाया था |आजकल वह  मिडल स्कूल हो गया है ,लेकिन हाई स्कूल नहीं है इतने सालों के बाद भी |हाई स्कूल मैंने मंडी जिले के गडा गुसांई हाई स्कूल से पास किया |हमारे गांव से वह चार -पांच किलोमीटर दूर है |हम लोग पैदल ही पढ़ने जाते थे |जाने -आने में करीब एक घंटा लग जाता था |हाई स्कूल के बाद आगे की पढ़ाई कुल्लू कालेज से की |ग्यारहवीं और बारहवीं में  टॉपर था |
अरुण आदित्य -अक्सर टॉपर स्टूडेंट्स मेडिकल ,इंजीनियरिंग या आई० ए० एस० आदि में जाने का ख्वाब देखते हैं ,आप चीनी भाषा  के चक्कर में कैसे पड़ गए ?
बी० आर० दीपक -जब मैं बारहवीं में था ,उसी दौरान चीन में मेरी रूचि पैदा हो गई |चीन के इतिहास और और संस्कृति के बारे में किताबें पढ़नी शुरू की ,उसी समय हमारी मुलाकात प्रोफेसर बरियाम सिंह से हुई ,जो जवाहरलाल नेहरु विश्व विद्यालय में रुसी भाषा के प्रोफेसर हैं |वे मेरे बड़े भैया के मित्र भी हैं |उन्होंने भाई साहब से कहा कि अगर तुम्हारे भाई को विदेशी भाषाओँ में रूचि है तो इसे जे० एन० यू० भेज दो |फिर हमने जे०एन० यू० की प्रवेश परीक्षा दी |उसमें पास हो गए और 1986 में चीनी भाषा विभाग में आ गए |
अरुण आदित्य --आपकी जो पुरस्कृत कृति "चीनी कविता :ईसा पूर्व ग्यारहवीं सदी से ईसा पश्चात 14 वीं सदी तक है ,उसमें आपने 88कविताओं का अनुवाद किया है |इन कविताओं का चयन कैसे किया ?
बी० आर० दीपक ---मेरी पढ़ाई जे० एन० यू० में खत्म हो गई तो तो मैं भारत सरकार की छात्रवृत्ति पर चीन गया था |आने के बाद मैंने शोध कार्य शुरू किया और 1993 में जब मैंने जे० एन० यू० में पढ़ाना शुरू किया ,तो उसमें एक सब्जेक्ट था क्लासिकल चाईनीज लिटरेचर |उसमें 11सदी ईसा पूर्व से लेकर बाद का सारा पुराना क्लासिकल साहित्य पढ़ाना था |इस तरह उस साहित्य में मेरी रूचि बढ़ती गयी और मैंने इस पर एक किताब भी लिखी :हिस्ट्री ऑफ चाइनीज लिटरेचर :|यह किताब जे० एन० यू० में एम० ए० में पढ़ाईं जाती है |इस किताब के लिए शोध करते हुए चीनी कविताओं से भी मेरा गहरा परिचय हुआ |इस किताब के लिए कविताओं का चयन करते समय यह परिचय बहुत काम आया |कविताओं का चयन करते समय मैंने कालक्रम का तो ख्याल रखा  ही इस बात का भी ध्यान रखा कि हर काल की चर्चित और श्रेष्ठ कृतियों को ही शामिल करूँ |
अरुण आदित्य -आपने जिन कवियों का चयन किया है ,उनमें और प्राचीन भारतीय कवियों जैसे सूर ,तुलसी ,कबीर आदि की रचनाओं में क्या कुछ विषय साम्य मिलता है ?
बी० आर० दीपक --चीनी कविता भारतीय कविता से काफी  कुछ मिलती है |लेकिन जैसा हमारे यहाँ भक्ति काल है ,वैसा वहाँ की कविता में कुछ दीखता नहीं है लेकिन दूसरी तमाम शैलियाँ ,जैसे वीरगाथा काल है ,उस तरह की शैली में वहाँ काफी सृजन हुआ है |जैसे ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी के कवि हैं छी य्वान उन्होंने वीर रस में काफी कविताएँ लिखी हैं |थांग वंश में कई कवियों ने वीर रस में कविताएँ लिखी हैं |वहाँ वीरगाथा काल का कोई एक निश्चित काल खण्ड नहीं है |हर राजवंश के काल में कुछ -कुछ कवियों ने वीर रस में  कविताएँ लिखी हैं |इसी तरह जैसे हमारे यहाँ रीतिकाल है ,वहाँ भी श्रृंगार रस की कविताएँ काफी लिखी गयी हैं |ली पाए बड़े ही रूमानी कवि हैं |वहाँ तू फू एक मशहूर कवि हैं |थांग काल कविता के लिए सुनहरा काल रहा है |जिसमें दो हजार से ज्यादा कवि सक्रिय थे |
अरुण आदित्य --चीन के साहित्यिक परिदृश्य के बारे में भारत के लोग बहुत कम जानते हैं |ऐसे में जिज्ञासा सहज है कि आपको जो ;स्पेशल बुक प्राइज ;मिला है ,उसका कितना महत्व है ?
बी० आर० दीपक -यह विदेशी मूल के अध्ययनकर्ताओं के लिए सर्वोच्च पुरस्कार है |इस बार का पुरस्कार मेरे आलावा कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर स्टीफन बार्न सहित पांच को मिला है |भारत और हिमांचल के लिए यह गर्व की बात है कि उनके यहाँ के एक व्यक्ति को पहचान [रिकग्नीसन ]मिली है |इसके अलावा एक और दृष्टि से इस किताब का पुरस्कृत होना महत्वपूर्ण है |जैसा आपने भी कहा ,दोनों ही देश एक दूसरे के साहित्य के बारे में बहुत कम जानते हैं |ऐसे में एक दूसरे देश की रचनाओं का अनुवाद होना दोनों देशों में सांस्कृतिक पुल बनाने की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है 
अरुण आदित्य -कहते हैं कि कविता का अनुवाद बहुत कठिन होता है और एक कवि ही सही अनुवाद कर सकता है |क्या आप भी कविताएँ लिखते हैं ?
बी० आर० दीपक -थोड़ी बहुत कविताएँ लिखता हूँ ,लेकिन मैं अपने को कवि नहीं मानता |चाईनीज क्लासिकल लिटरेचर की मुझे बहुत अच्छी समझ है और हिंदी का हमारा जो संस्कार है उससे मुझे लगा कि मैं अनुवाद कर सकता हूँ |अनुवाद जब मैंने लोगों को दिखाया तो लोगों ने कहा अनुवाद तो अच्छा है ,लेकिन इसमें थोड़ी और काव्यात्मकता होनी चाहिए |फिर मैंने जे० एन० यू० के प्रोफेसर और हिंदी के श्रेष्ठ कवि केदारनाथ सिंह और रुसी भाषा के प्रोफेसर वरयाम सिंह और गोविन्द प्रसाद की मदद ली |करीब एक साल का समय लगा इसे दुरुस्त करने में |
अरुण आदित्य --आपने भारत चीन संबंध पर एक किताब लिखी है -इंडो चाइना रिलेशंस इन फर्स्ट हाफ़ ऑफ द ट्वंटीएन्थ सेंचुरी |आपने फर्स्ट हाफ़ सेंचुरी पर ही फोकस क्यों किया ?
बी० आर० दीपक --दरअसल इसमें मैंने औपनिवेशिक काल में भारत और चीन के बीच जिस तरह के सहयोगात्मक संबंध थे ,उस पर फोकस किया है |किस तरह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लोग चीनी विद्रोहियों के साथ मिलकर काम किया करते थे |हथियार के बल पर अंग्रेजों का तख्ता पलट करने की योजनाएं भी वहाँ बनीं |1905 से 1947 तक हमारे क्रांतिकारी रासबिहारी बोस आदि ने चीनी नेताओं के साथ मिलकर अंग्रेजों को भारत से भगाने की योजना बनाई थी |जब जापान ने चीन पर आक्रमण किया ,तो भारत ने किस तरह चीन की मदद की |इंडियन नेशनल कांग्रेस ने डॉक्टर्स का  एक दस्ता भेजा ,जिसमें शोलापुर महाराष्ट्र के डॉक्टर कोटनीस भी थे |चीनी लोगों की सेवा करते -करते ही उनकी मृत्यु हो गयी थी |उन्होंने वहाँ एक चीनी नर्स से शादी की थी |वे अभी 97साल की हो गयी हैं |उन्होंने एक संस्मरण लिखा था 2004में |2006 में मैंने उसका अनुवाद किया था |चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ जब भारत आये थे तो उन्होंने मेरे द्वारा अनुवाद की गयी यह किताब डॉ० कोटनीस के परिजनों को भेंट की थी |
अरुण आदित्य -पिछले दिनों दिल्ली में हाईकोर्ट के गेट पर बम विस्फोट हुआ ,जिसमें कई लोग मारे  गए |आपने चीन और भारत पर काफी तुलनात्मक काम किया है |आतंकवाद से निपटने में भारत और चीन की नीतियों में आप क्या अंतर देखते हैं ?
बी० आर० दीपक --मुझे लगता है की हमें चीन से सबक लेने की जरूरत है |चीन की आबादी हमसे बहुत अधिक है ,किस तरह से वे अपनी पापुलेशन को मैनेज करते हैं |उनके जो भीड़ वाले इलाके हैं चाहे वो मार्केट्स हों रेलवे स्टेशन हों उनके सुरक्षा प्रबंधन को वे किस तरह मैनेज करते हैं वह काबिले तारीफ है |एंट्री और एक्जिट प्वाइंट्स डिफाइंड हैं और उन पर कैमरे लगे हुए हैं |हर हरकत पर नज़र रखी जाती है |हमारे यहाँ नई दिल्ली स्टेशन पर देखिये |एक दो जगह पर स्कैनर लगा रखे हैं लेकिन आसपास खुला एरिया है |कोई कहीं से भी घुस सकता है |
[अमर उजाला से साभार http://adityarun.blogspot.com/अरुण आदित्य का ब्लॉग है ]

8 comments:

  1. हाई स्कूल के बाद आगे की पढ़ाई कुल्लू कालेज से की |ग्यारहवीं और बारहवीं में टॉपर था |अरुण आदित्य -अक्सर टॉपर स्टूडेंट्स मेडिकल ,इंजीनियरिंग या आई० ए० एस० आदि में जाने का ख्वाब देखते हैं ??


    प्रोफेसर बरियाम सिंह से हुई ,जो जवाहरलाल नेहरु विश्व विद्यालय में रुसी भाषा के प्रोफेसर हैं |वे मेरे बड़े भैया के मित्र भी हैं |उन्होंने भाई साहब से कहा कि अगर तुम्हारे भाई को विदेशी भाषाओँ में रूचि है तो इसे जे० एन० यू० भेज दो |फिर हमने जे०एन० यू० की प्रवेश परीक्षा दी |उसमें पास हो गए और 1986 में चीनी भाषा विभाग में आ गए |

    बधाई ||

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  2. हिंदुस्तान सीखना ही तो नहीं चाहता...यहाँ सब पूर्ण स्वतंत्रता के हिमायती हैं...जो मन में आये वो करो...हर जगह थूकने की आज़ादी सिर्फ यहाँ ही मिल सकती है...शिव खेडा की एक किताब का शीर्षक ही काफी लगता है...फ्रीडम इज नॉट फ्री...चीन झलक दिखाने के लिए शुक्रिया...दीपक जी से परिचय करवाने के लिए धन्यवाद...

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  3. चीनी भाषा और लिपि बहुत कठिन समझी जाती है। अरुण आदित्य जी के कार्य, उनकी लगन और परिश्रम को नमन।
    उन्हें बधाई ओर शुभकामनाएं।

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. इस अद्वितीय प्रतिभा के धनी शख्सियत से साक्षात्कार कराने का शुक्रिया।

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  6. वाह, सधे हुए सवालों का खरा जवाब दिया गया है

    तुषार जी,, साझा करने के लिए धन्यवाद

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  7. संस्कृतियों को जोड़ने का कार्य महान है।

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  8. एक ऐसा इंटरव्यू जो सहेज कर रखने लायक है

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