चित्र -गूगल से साभार |
उम्र की इस ढलान पर |
कभी बहा करती थी
यह गंगा उफान पर |
वर्षों का इतिहास समेटे
कथा कह रही ,
आँसू पीते ,मलबा ढोते
मगर बह रही ,
टुकड़ों में बंट जाती है
यह हर कटान पर |
ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश
सगर भी भूल गये ,
कहाँ भागीरथ की
पूजा के फूल गये ,
गंगा को अब बेच रहे
पंडे दुकान पर |
इससे ही महिमा है
काशी औ प्रयाग की ,
घिरी आग की ,
इसका जल लहराता था
पूजा अजान पर |
यह गंगा कोई नदी नहीं
जग माता है ,
वेदों की साक्षी
उनकी उद्गाता है ,
यही मुक्ति देती हम -
सबको श्मशान पर |
वन में बहती गंगा
बहती चट्टानों में
देवों में भी पूजित -
पूजित इंसानों में ,
मगर आज संकट है
इसके आन -बान पर |
गंगा कोई नदी नहीं
ReplyDeleteयह माता है ,
वेदों की यह साक्षी है
उद्गाता है ,
यही मुक्ति देती है
सबको श्मशान पर |
सुंदर.....सार्थक भाव
माँ गंगा को नमन
sachi samvedana ,ganga ke prati.
ReplyDeleteब्रह्मा ,विष्णु ,महेश
सगर भी भूल गये ,
कहाँ भागीरथ की
पूजा के फूल गये ,
गंगा को अब बेच रहे
पंडे दुकान पर |
aabhar ji .
गंगा के किनारे वाले छोरे का दर्द समझ सकता हूँ...कानपुर में रहता हूं...इलाहाबाद का रहने वाला हूँ...सो गंगा के लिए जो दर्द आपने सहज शब्दों में व्यक्त किया है महसूस कर सकता हूँ...गंगा प्रदूषण या आत्म मुक्ति सब गंगा के अस्तित्व पर सजी दुकानें ही नज़र आते हैं...
ReplyDeleteगंगा कोई नदी नहीं
ReplyDeleteयह माता है ,
वेदों की यह साक्षी है
उद्गाता है ,
यही मुक्ति देती है
सबको श्मशान पर |
waah... bahut gahri baat
गंगा पर खूबसूरत कविता.... तुषार जी आपको पढना अच्छा लगता है... आंच पर भी आपके गीत पढ़े...
ReplyDeleteगंगा की पीड़ा और गंगा का गौरव....
ReplyDeleteदोनों को शब्द देती है आपकी सुन्दर कविता....
ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश
ReplyDeleteसगर भी भूल गये ,
कहाँ भागीरथ की
पूजा के फूल गये ,
गंगा को अब बेच रहे
पंडे दुकान पर ।
गंगा की व्यथा इन पंक्तियों में मुखर हो गई है।
इस सुंदर गीत के लिए आभार, तुषार जी ।
बहुत सुन्दर, सार्थक और लाजवाब गीत|
ReplyDeleteब्रह्मा ,विष्णु ,महेश
ReplyDeleteसगर भी भूल गये ,
कहाँ भागीरथ की
पूजा के फूल गये ,
गंगा को अब बेच रहे
पंडे दुकान पर |
saartthakata yah hi i is navgeet me aapake aanchlikata dikhati hai
सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteहमारे ब्लॉग पर भी आइए और अपनी राय व्यक्त कीजिए🙏🙏🙏🙏🙏🙏
DeleteWonderful creation !
ReplyDeleteगंगा कोई नदी नहीं
ReplyDeleteयह माता है ,
वेदों की यह साक्षी है
उद्गाता है ,
यही मुक्ति देती है
सबको श्मशान पर ...
माँ गंगा को नमन .... बहुत ही अच्छी रचना है ...
वन में बहती गंगा
ReplyDeleteबहती चट्टानों में
देवों में भी पूजित -
पूजित इंसानों में ,
मगर आज संकट है
इसके आन -बान पर
१००% सही कहा.वाह.
सत्य है पर आजकल सत्य मानता कौन है.. बेचना और गन्दगी फैलाना.. यही दो काम रह गए हैं पंडों के और हम आम लोगों के..
ReplyDeleteसुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार
सुंदर भाव..सुन्दर कविता.
ReplyDeleteगंगा माँ को नमन...अच्छा लिखा है.. आभार.
ReplyDeleteगंगा की अलग अनुभूति ...बहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteसार्थक और संवेदनात्मक चित्रण!--ब्रजेंद्रनाथ
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