Thursday, 19 May 2011

एक कविता -गंगा कोई नदी नहीं

चित्र -गूगल से साभार 
एक गीत -थककर बैठी हुई उम्र की इस ढलान पर 
थककर बैठी हुई 
उम्र की इस ढलान पर |
कभी बहा करती थी 
यह गंगा उफान पर |

वर्षों का इतिहास समेटे 
कथा कह रही ,
आँसू पीते ,मलबा ढोते 
मगर बह रही ,
टुकड़ों में बंट जाती है 
यह हर कटान पर |

ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश 
सगर भी भूल गये ,
कहाँ भागीरथ की 
पूजा के फूल गये ,
गंगा को अब बेच रहे 
पंडे दुकान पर |

इससे ही महिमा है 
काशी औ प्रयाग की ,
मगर यही गंगा लपटों में 
घिरी आग की ,
इसका जल लहराता था 
पूजा अजान पर |

यह गंगा कोई नदी नहीं 
जग माता है ,
वेदों की  साक्षी 
उनकी उद्गाता है ,
यही मुक्ति देती हम -
सबको श्मशान पर |

वन में बहती गंगा 
बहती चट्टानों में 
देवों में भी पूजित -
पूजित इंसानों में ,
मगर आज संकट है 
इसके आन -बान पर |
चित्र -गूगल से साभार 
                                                                                                                                                                                                            

20 comments:

  1. गंगा कोई नदी नहीं
    यह माता है ,
    वेदों की यह साक्षी है
    उद्गाता है ,
    यही मुक्ति देती है
    सबको श्मशान पर |

    सुंदर.....सार्थक भाव
    माँ गंगा को नमन

    ReplyDelete
  2. sachi samvedana ,ganga ke prati.


    ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश
    सगर भी भूल गये ,
    कहाँ भागीरथ की
    पूजा के फूल गये ,
    गंगा को अब बेच रहे
    पंडे दुकान पर |

    aabhar ji .

    ReplyDelete
  3. गंगा के किनारे वाले छोरे का दर्द समझ सकता हूँ...कानपुर में रहता हूं...इलाहाबाद का रहने वाला हूँ...सो गंगा के लिए जो दर्द आपने सहज शब्दों में व्यक्त किया है महसूस कर सकता हूँ...गंगा प्रदूषण या आत्म मुक्ति सब गंगा के अस्तित्व पर सजी दुकानें ही नज़र आते हैं...

    ReplyDelete
  4. गंगा कोई नदी नहीं
    यह माता है ,
    वेदों की यह साक्षी है
    उद्गाता है ,
    यही मुक्ति देती है
    सबको श्मशान पर |
    waah... bahut gahri baat

    ReplyDelete
  5. गंगा पर खूबसूरत कविता.... तुषार जी आपको पढना अच्छा लगता है... आंच पर भी आपके गीत पढ़े...

    ReplyDelete
  6. गंगा की पीड़ा और गंगा का गौरव....

    दोनों को शब्द देती है आपकी सुन्दर कविता....

    ReplyDelete
  7. ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश
    सगर भी भूल गये ,
    कहाँ भागीरथ की
    पूजा के फूल गये ,
    गंगा को अब बेच रहे
    पंडे दुकान पर ।

    गंगा की व्यथा इन पंक्तियों में मुखर हो गई है।
    इस सुंदर गीत के लिए आभार, तुषार जी ।

    ReplyDelete
  8. बहुत सुन्दर, सार्थक और लाजवाब गीत|

    ReplyDelete
  9. ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश
    सगर भी भूल गये ,
    कहाँ भागीरथ की
    पूजा के फूल गये ,
    गंगा को अब बेच रहे
    पंडे दुकान पर |

    saartthakata yah hi i is navgeet me aapake aanchlikata dikhati hai

    ReplyDelete
  10. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने! दिल को छू गयी हर एक पंक्तियाँ! उम्दा प्रस्तुती!

    ReplyDelete
    Replies
    1. हमारे ब्लॉग पर भी आइए और अपनी राय व्यक्त कीजिए🙏🙏🙏🙏🙏🙏

      Delete
  11. गंगा कोई नदी नहीं
    यह माता है ,
    वेदों की यह साक्षी है
    उद्गाता है ,
    यही मुक्ति देती है
    सबको श्मशान पर ...
    माँ गंगा को नमन .... बहुत ही अच्छी रचना है ...

    ReplyDelete
  12. वन में बहती गंगा
    बहती चट्टानों में
    देवों में भी पूजित -
    पूजित इंसानों में ,
    मगर आज संकट है
    इसके आन -बान पर

    १००% सही कहा.वाह.

    ReplyDelete
  13. सत्य है पर आजकल सत्य मानता कौन है.. बेचना और गन्दगी फैलाना.. यही दो काम रह गए हैं पंडों के और हम आम लोगों के..

    सुख-दुःख के साथी पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
    आभार

    ReplyDelete
  14. सुंदर भाव..सुन्दर कविता.

    ReplyDelete
  15. गंगा माँ को नमन...अच्छा लिखा है.. आभार.

    ReplyDelete
  16. गंगा की अलग अनुभूति ...बहुत सुंदर

    ReplyDelete
  17. बहुत बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  18. सार्थक और संवेदनात्मक चित्रण!--ब्रजेंद्रनाथ

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी हमारा मार्गदर्शन करेगी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद |

एक गीत -सर्द मौसम

  चित्र साभार गूगल  एक गीत -सर्द मौसम  बर्फ़ में गुलमर्ग  औली  और शिमला है. सर्द मौसम में  गुलाबी  कोट निकला है. छतें  स्वेटर बुन रही हैं  भा...