Monday, 13 June 2011

एक नवगीत -मानसून कब लौटेगा बंगाल से

चित्र -गूगल सर्च इंजन से साभार 
ये सूखे बादल 
लगते बेहाल से |
मानसून कब 
लौटेगा बंगाल से ?

कजली रूठी ,झूले गायब 
सूने गाँव ,मोहल्ले ,
सावन -भादों इस मौसम में 
कितने हुए निठल्ले ,
सोने -चांदी के दिन 
हम कंगाल से |

आंखें पीली 
चेहरा झुलसा धान का ,
स्वाद न अच्छा लगता 
मघई पान का ,
खुशबू आती नहीं 
कँवल की ताल से |

नहीं पास से गुजरी कोई 
मेहँदी रची हथेली ,
दरपन मन की बात न बूझे 
मौसम हुआ पहेली ,
सिक्का कोई नहीं 
गिरा रूमाल से |

फूलों के होठों से सटकर 
बैठी नहीं तितलियाँ ,
बिंदिया लगती है माथे की 
धानी -हरी बिजलियाँ ,
भींगी लटें नहीं
टकरातीं गाल से |


भींगी देह हवा से सटकर 
जाने क्या बतियाती ,
चैन नहीं खूंटे से बंधकर 
कजरी गाय रम्भाती ,
अभी नया लगता है 
बछड़ा चाल से |
चित्र -गूगल से साभार 

18 comments:

  1. प्रिय राय साहब ,बंगाल के बादलों की प्रतीक्षा काव्यमयी धार से चल
    रसमयी हो गयी है . ...सुंदर मनोहारी वर्णन .शुक्रिया जी /

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  2. कजली रूठी ,झूले गायब
    सूने गाँव ,मोहल्ले ,
    सावन -भादों इस मौसम में
    कितने हुए निठल्ले ,
    सोने -चांदी के दिन
    हम कंगाल से

    गहन अभिव्यक्ति लिए पंक्तियाँ....सुंदर

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  3. प्रिय बंधुवर जयकृष्ण राय तुषार जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    आज सर्वप्रथम अपराध स्वीकार करते हुए क्षमायाचना करना चाहूंगा …

    आपके इतने श्रेष्ठ नवगीत मैं पढ़-पढ़ कर गया हूं यहां … लेकिन प्रतिक्रिया नगण्यमात्र ही दे पाया … यही है मेरा अपराध !

    मन का आनन्द मिलता है आपकी उत्कृष्ट रचनाओं द्वारा । लेकिन , इस लेने के बदले में … और तो क्या दिया जाए , 'ले रहा हूं' आगाह तो करना चाहिए !


    शब्द नहीं हैं मेरे पास आपकी श्रेष्ठ रचनाओं के अनुरूप !

    मां सरस्वती का प्रसाद अनवरत बांटते रहें …

    सादर बधाई और शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  4. फूलों के होठों से सटकर
    बैठी नहीं तितलियाँ ,
    बिंदिया लगती है माथे की
    धानी -हरी बिजलियाँ ,
    भींगी लटें नहीं
    टकरातीं गाल से |
    बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना! बधाई!

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  5. सिक्का कोई नहीं
    गिरा रूमाल से |

    तथा

    भींगी लटें नहीं
    टकरातीं गाल से |

    ये जो बीच बीच में गीत की टेक पर श्रंगारिक टच दे दिया है आपने, ये वास्तव में ग़ज़ब की सुन्दरता बढ़ा रहे हैं.मज़ा आ गया.

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  6. बहुत सुंदर नवगीत है तुषार जी, हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

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  7. बहुत सुंदर ... लाजवाब है पूरा नव गीत ....

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  8. मानसून की खुशबू आ रही है कविता से....

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  9. बहुत सुन्दर नवगीत तुषार जी ।
    आनंददायी

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  10. भाई राजेन्द्र जी आपको बिलकुल क्षमा याचना करने की आवश्यकता नहीं है |आप मेरे गीतों को चुपचाप पढ़ते रहे यही कविता की सफलता है कमेंट्स करना बहुत आवश्यक नहीं है |बस कमेंट्स से आपके भावोद्गार हम तक पहुंच जाते हैं |

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  11. man mugdh ho aapki rachna padhkar..

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  12. सुंदर नवगीत में आपने भींगा ही दिया....

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  13. फूलों के होठों से सटकर
    बैठी नहीं तितलियाँ ,
    बिंदिया लगती है माथे की
    धानी -हरी बिजलियाँ ,
    भींगी लटें नहीं
    टकरातीं गाल से |

    तुषार जी ,निर्झर की तरह कल-कल करती सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

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  14. सहज शब्दों में बातें कहने में आपका कायल हो गया...

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  15. नहीं पास से गुजरी कोई
    मेहँदी रची हथेली ,
    दरपन मन की बात न बूझे
    मौसम हुआ पहेली ,
    सिक्का कोई नहीं
    गिरा रूमाल से |

    बहुत सुन्दर भावमयी गीत...कोमल अहसास दिल को छू लेते हैं..

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  16. राय साहब, बंगाल की खडी से काले बादल आ गए है , घनघोर वृष्टि जे आसार है , तनी आजमगढ़ की तरफ देखिये . सुँदर और मनमोहक गीत .

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  17. बहुत सुन्दर नवगीत। पंक्तियों ने मन मोह लिया। आकर्षक।

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