Tuesday, 17 May 2011

तीन गीत -कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम

कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम 
सम्पर्क -09412805981
समकालीन युवा कवियों में जो छंद को साधने में समर्थ हैं उनमें योगेन्द्र वर्मा व्योम एक महत्वपूर्ण गीत कवि हैं |इनके गीतों में कथ्य शिल्प की ताजगी ,समकालीन सोच ,जनवादी तेवर ,समय काल के अनुरूप काव्य -कौशल ,सब कुछ एक साथ मौजूद रहता है |इनके गीतों में अगर बाँसुरी का स्वर है तो समय की छटपटाहट भी है |गीत ,गज़ल दोहे ,मुक्तक ,कहानी ,संस्मरण आदि विधाओं में योगेन्द्र जी निरंतर लेखन कर रहे हैं |देश की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में इनकी कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं |09-09-1970को मुरादाबाद में  जन्में योगेन्द्र जी की शिक्षा कामर्स में स्नातक तक हुई है |कृषि विभाग में लेखाकार के पद पर कार्यरत योगेन्द्र जी साहित्यिक संस्था अक्षरा के संयोजक भी हैं | इस कोलाहल में इनका चर्चित नवगीत संग्रह है |अंतर्जाल पत्रिका गीत पहल के सम्पादक योगेन्द्र वर्मा व्योम के तीन गीत हम आप तक पहुंचा रहे हैं -
चित्र -गूगल से साभार 
एक 
मेघा रे 

मेघा रे !
अब और न रूठो 
जल्दी आओ ना |

टोने -टोटके मान -मनौती 
करके  देख लिये ,
रहा बरसना दूर दरस तक 
तुमने नहीं दिये ,
किसी रेल के इंतजार -सा 
तुम तरसाओ ना |

तुलसी झुलसी पीपल का हर 
पत्ता जर्द हुआ ,
सूरज इस सीमा तक वहशी 
दहशतगर्द हुआ ,
सूखे खेतों की मुस्काने 
वापस लाओ ना |

इस बारिश में हंगामा कुछ 
नया -नया होगा ,
बच्चों ने ई- मेल किया है 
पहुंच गया होगा ,
नाव चलानी है कागज की 
जल बरसाओ ना |
दो 
युवा स्वप्न घायल 
मुश्किल भरे कँटीले पथ पर 
युवा स्वप्न घायल |

मात्र एक पद हेतु देखकर 
लाखों आवेदन ,
मन को कुंठित करती रहती 
भीतर एक घुटन ,
मंजिल कैसे मिले 
सभी रस्ते ओढ़े दलदल |

मेहनत से पढ़कर ,अपनाकर 
केवल सच्चाई ,
कहाँ नौकरी बुधिया के 
बेटे को मिल पाई ,
अपने -अपने स्वार्थ सभी के 
अपने -अपने छल |

रोजगार के सिमट रहे जब 
सभी जगह अवसर ,
और हो रहा जीवन -यापन 
दिन -प्रतिदिन दुष्कर ,
समझ न आता कैसे निकले 
समीकरण का हल |
तीन 
पुरखों की यादें 
नई ताजगी भर जाती हैं 
पुरखों की यादें |

मन को दिया दिलासा 
दुःख के बादल जब छाये ,
खुशियाँ बांटी संग ,सुखद पल 
जब भी घर आये ,
सपनों में भी बतियातीं हैं 
पुरखों कीयादें |

कभी तनावों के जंगल में 
भटके जब -जब मन ,
और उलझनें बढ़तीं जायें 
दूभर हो जीवन ,
नई राह तब दिखलाती हैं 
पुरखों की यादें |

7 comments:

  1. तीनों ही गीत बहुत सुन्दर हैं| योगेन्द्र जी को बधाई|

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  2. बहुत सुंदर गीत हैं। योगेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई।

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  3. सभी नवगीत अच्छे लगे...
    बधाई व्योम जी को

    और आपका आभार..

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  4. तीनों ही गीत मोहक लगे....

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  5. कभी तनावों के जंगल में
    भटके जब -जब मन ,
    और उलझनें बढ़तीं जायें
    दूभर हो जीवन ,
    नई राह तब दिखलाती हैं
    पुरखों की यादें |

    बहुत सुंदर हैं तीनों ही रचनाएँ .......पढवाने का आभार

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  6. तीनों ही रचनायें एक से बढ़कर एक हैं । पढवाने के लिए आभार तुषार जी ।

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