कवि -योगेन्द्र वर्मा व्योम सम्पर्क -09412805981 |
समकालीन युवा कवियों में जो छंद को साधने में समर्थ हैं उनमें योगेन्द्र वर्मा व्योम एक महत्वपूर्ण गीत कवि हैं |इनके गीतों में कथ्य शिल्प की ताजगी ,समकालीन सोच ,जनवादी तेवर ,समय काल के अनुरूप काव्य -कौशल ,सब कुछ एक साथ मौजूद रहता है |इनके गीतों में अगर बाँसुरी का स्वर है तो समय की छटपटाहट भी है |गीत ,गज़ल दोहे ,मुक्तक ,कहानी ,संस्मरण आदि विधाओं में योगेन्द्र जी निरंतर लेखन कर रहे हैं |देश की प्रतिष्ठित पत्र -पत्रिकाओं में इनकी कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं |09-09-1970को मुरादाबाद में जन्में योगेन्द्र जी की शिक्षा कामर्स में स्नातक तक हुई है |कृषि विभाग में लेखाकार के पद पर कार्यरत योगेन्द्र जी साहित्यिक संस्था अक्षरा के संयोजक भी हैं | इस कोलाहल में इनका चर्चित नवगीत संग्रह है |अंतर्जाल पत्रिका गीत पहल के सम्पादक योगेन्द्र वर्मा व्योम के तीन गीत हम आप तक पहुंचा रहे हैं -
एक
मेघा रे
चित्र -गूगल से साभार |
मेघा रे
मेघा रे !
अब और न रूठो
जल्दी आओ ना |
टोने -टोटके मान -मनौती
करके देख लिये ,
रहा बरसना दूर दरस तक
तुमने नहीं दिये ,
किसी रेल के इंतजार -सा
तुम तरसाओ ना |
तुलसी झुलसी पीपल का हर
पत्ता जर्द हुआ ,
सूरज इस सीमा तक वहशी
दहशतगर्द हुआ ,
सूखे खेतों की मुस्काने
वापस लाओ ना |
इस बारिश में हंगामा कुछ
नया -नया होगा ,
बच्चों ने ई- मेल किया है
पहुंच गया होगा ,
नाव चलानी है कागज की
जल बरसाओ ना |
दो
युवा स्वप्न घायल
युवा स्वप्न घायल
मुश्किल भरे कँटीले पथ पर
युवा स्वप्न घायल |
मात्र एक पद हेतु देखकर
लाखों आवेदन ,
मन को कुंठित करती रहती
भीतर एक घुटन ,
मंजिल कैसे मिले
सभी रस्ते ओढ़े दलदल |
मेहनत से पढ़कर ,अपनाकर
केवल सच्चाई ,
कहाँ नौकरी बुधिया के
बेटे को मिल पाई ,
अपने -अपने स्वार्थ सभी के
अपने -अपने छल |
रोजगार के सिमट रहे जब
सभी जगह अवसर ,
और हो रहा जीवन -यापन
दिन -प्रतिदिन दुष्कर ,
समझ न आता कैसे निकले
समीकरण का हल |
तीन
पुरखों की यादें
तीन
पुरखों की यादें
नई ताजगी भर जाती हैं
पुरखों की यादें |
मन को दिया दिलासा
दुःख के बादल जब छाये ,
खुशियाँ बांटी संग ,सुखद पल
जब भी घर आये ,
सपनों में भी बतियातीं हैं
पुरखों कीयादें |
कभी तनावों के जंगल में
भटके जब -जब मन ,
और उलझनें बढ़तीं जायें
दूभर हो जीवन ,
नई राह तब दिखलाती हैं
पुरखों की यादें |
तीनों ही गीत बहुत सुन्दर हैं| योगेन्द्र जी को बधाई|
ReplyDeleteबहुत सुंदर गीत हैं। योगेन्द्र जी को बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteसभी नवगीत अच्छे लगे...
ReplyDeleteबधाई व्योम जी को
और आपका आभार..
bahut sundar navgeet..
ReplyDeleteतीनों ही गीत मोहक लगे....
ReplyDeleteकभी तनावों के जंगल में
ReplyDeleteभटके जब -जब मन ,
और उलझनें बढ़तीं जायें
दूभर हो जीवन ,
नई राह तब दिखलाती हैं
पुरखों की यादें |
बहुत सुंदर हैं तीनों ही रचनाएँ .......पढवाने का आभार
तीनों ही रचनायें एक से बढ़कर एक हैं । पढवाने के लिए आभार तुषार जी ।
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