Thursday, 31 July 2025

नई किताब हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार -श्री ज्ञानप्रकाश विवेक

 

 नई किताब

आदरणीय श्री ज्ञानप्रकाश विवेक जी


हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार-लेखक श्री ज्ञान प्रकाश विवेक

हिन्दी ग़ज़ल पर वाणी प्रकाशन से आदरणीय ज्ञानप्रकाश विवेक की बेहतरीन आलोचनात्मक पुस्तक प्राप्त हुई. 371 पेज की यह पुस्तक है इसमें विशद आलेख हैं. मुझे भी शामिल किया गया है. बहुत मेहनत के साथ कुल पांच वर्षों के अथक प्रयास से यह पुस्तक प्रकाशित हुई है.इस पुस्तक में कुल तीन खण्ड हैं बहुत बहुत बधाई आदरणीय ज्ञान प्रकाश जी



पुस्तक -हिन्दी ग़ज़ल व्यापकता और विस्तार 

लेखक -श्री ज्ञान प्रकाश विवेक 

प्रकाशक वाणी प्रकाशन नई दिल्ली 

मूल्य सजिल्द -795

Monday, 28 July 2025

एक गीत -सारंगी को साधो जोगी

 

चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -

सारंगी को 

साधो जोगी 

बन्द घरों की खिड़की खोलो.

टूटे दिल 

उदास मन वालों के 

संग कुछ क्षण बैठो बोलो.


झाँक रहे 

दिन भर यन्त्रों में 

गमले में चंपा मुरझाई,

भूल गया 

मौसमी गीत मन 

किसे पता कब चिड़िया गाई,

धूल भरे आदमकद 

दरपन को 

आँचल से पोछो धो लो.


बखरी हुई

उदास ग़ुम हुई

दालानों की हँसी-ठिठोली,

रंगोली के

रंग कृत्रिम हैं

पान बेचता कहाँ तमोली,

कहाँ गए

वो हँसने वाले

याद करो उनको फिर रो लो.


महुआ, पीपल

नीम-आम के

नीचे कजरी बैठ रम्भाती,

पीकर पानी

नदी-ताल का

वन में खाते नमक चपाती,

डांट पिता की

याद करो फिर

माँ की यादों के संग हो लो.

कवि

जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल

Saturday, 19 July 2025

एक ग़ज़ल -अब तो बाज़ार की मेंहदी लिए बैठा सावन

  

चित्र साभार गूगल

एक ग़ज़ल 


ग़ुम हुए अपनी ही दुनिया में सँवरने वाले 

हँसके मिलते हैं कहाँ राह गुजरने वाले 


घाट गंगा के वही नाव भी केवट भी वही 

अब नहीं राम से हैं पार उतरने वाले 


फैसले होंगे मगर न्याय की उम्मीद नहीं 

सच पे है धूल गवाहान मुकरने वाले 


अब तो बाज़ार की मेंहदी लिए बैठा सावन

रंग असली तो नहीं इससे उभरने वाले


ढूँढता हूँ मैं हरेक शाम अदब की महफ़िल

जिसमें कुछ शेर तो हों दिल में उतरने वाले



कवि जयकृष्ण राय तुषार

सभी चित्र साभार गूगल

एक ताज़ा गीत -हर मौसम में रंग फूल ही भरते हैं

 

चातक पक्षी

एक ताज़ा गीत 


सूखे जंगल 

का सारा 

दुःख हरते हैं.

झीलों से 

उड़कर ये 

बादल घिरते हैं.


आसमान में 

कितने 

चित्र बनाते हैं,

महाप्राण

बन

बादल राग सुनाते हैं.

फूल -

पत्तियों पर 

अमृत बन झरते हैं.


कजली गाते 

नीम डाल पर 

झूले हैं,

कमल, कुमुदिनी 

चंपा 

गुड़हल फूले हैं,

हर मौसम में 

रंग 

फूल ही भरते हैं.


मेघों के 

मौसम भी 

चातक प्यासा है,

दूर कहीं 

खिड़की में 

हँसी बतासा है,

दिन भर 

किस्से याद 

पुराने आते हैं.

चित्र साभार गूगल


गीतकार -जयकृष्ण राय तुषार

Sunday, 13 July 2025

मौसम का गीत -ढूँढता है मन

 

चित्र साभार गूगल
ढूंढता है

मन शहर की 
भीड़ से बाहर.
घास, वन चिड़िया 
नदी की धार में पत्थर.

नीम, पाकड़ 
और पीपल की
घनी छाया,
सांध्य बेला 
आरती की 
स्वर्ण सी काया,
चिट्ठियों में
ढक गए हैं फूल से अक्षर.

तन बदन दिन
घास मिट्टी
होंठ पर मुरली,
दो अपरिचित
कर रहे हैं
धूप की चुगली,
याद आए
अल्पनाओं से सजे कोहबर.

साज
मौसम का
परिंदे गा रहे ठुमरी,
गाँव-घर
सिवान, गलियाँ
गूँजती कजरी,
घाट काशी के
लगे फिर बोलने हर हर.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साभार गूगल


Friday, 11 July 2025

माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी को ग़ज़ल संग्रह भेंट करते हुए

 इलाहाबाद अब प्रयागराज का इंडियन कॉफी हॉउस कभी साहित्य का बहुत बड़ा अड्डा था तमाम नामचीन कवि लेखक यहाँ साहित्य विमर्श करते थे. आज वह बात तो नहीं लेकिन कभी कभी कवि, लेखक, पत्रकार प्रोफ़ेसर आ ही जाते हैं. कभी कभी सेवानिवृत न्यायमूर्ति भी आ जाते हैं. आज अकस्मात अपने समय के विख्यात न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी दिखे तो मैंने अपना ग़ज़ल संग्रह देते हुए फोटो का आग्रह किया तो माननीय सहज भाव से स्वीकार कर लिए. आभार आपका सर

माननीय न्यायमूर्ति श्री अरुण टंडन जी
सेवानिवृत्त



Sunday, 6 July 2025

किताब की समीक्षा -मनोरंजन अमर उजाला

 ग़ज़ल संग्रह "सियासत भी इलाहाबाद में संगम नहाती है"की समीक्षा आज अमर उजाला में साहित्यिक पेज मनोरंजन में छपी है. लेखक श्री श्री चित्रसेन रजक जी सम्पादक श्री देव प्रकाश चौधरी जी का हृदय से आभार




एक गीत -गा रहा होगा पहाड़ों में कोई जगजीत

  चित्र साभार गूगल एक गीत -मोरपँखी गीत  इस मारुस्थल में  चलो ढूँढ़े  नदी को मीत. डायरी में  लिखेंगे  कुछ मोरपँखी गीत. रेत में  पदचिन्ह होंगे ...