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चित्र साभार गूगल |
एक ताज़ा गीत -गंगा सा निर्मल मन
गंगा सा
निर्मल मन
माथ -माथ चंदन है.
संगम की
रेती में
सबका अभिनन्दन है.
थके -थके
पाँव मगर
मन में उत्साह प्रबल,
महाकुम्भ
दर्शन को
आतुर है विश्व सकल,
मणिपुर-
केरल,काशी,
पेरिस औ लंदन है.
कालिंदी
गंगा का सुखद
मिलन बिंदु यही,
भक्तों की
आस्था का
एक महासिंधु यही,
संत और
अखाड़ों का
यहाँ वहाँ वंदन है.
ब्रह्मा की
यज्ञ भूमि
तीर्थराज कहते हैं,
द्वादश माधव
इसमें रक्षक
बन रहते हैं,
यह तो
रविदास की
कठौती का कँगन है.
कवि
जयकृष्ण राय तुषार
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