यह प्रयाग कुम्भ गीत का अलबम रिलीज
मैंने 2001 में महाकुम्भ इस गीत का सृजन किया था रेडिओ कलाकारों के साथ कुछ स्थानीय गायकों द्वारा इसे स्वर दिया गया. लेकिन मेरी शुभचिंतक श्रीमती दीप्ती चतुर्वेदी जी ने कमाल कर दिया. विख्यात भजन गायक पद्मश्री श्री अनूप जलोटा जी के साथ गाकर मेरे गीत को अमर कर दिया. संगीत भाई श्री विवेक प्रकाश जी का है. इसे red ribbon musik ने रिलीज किया है. यह मेरे लिए सुखद और शानदार अनुभव है. भजन सम्राट श्री अनूप जलोटा, मेरे लिए परम आदरणीया श्रीमती दीप्ती चतुर्वेदी एवं भाई श्री विवेक प्रकाश के प्रति एवं red ribbon musik के प्रति मैं हृदय से आभारी हूँ. आप सभी इस महाकुम्भ गीत को सुनें और आशीष प्रदान करें. जय तीर्थराज प्रयाग. जय गंगा, जमुना सरस्वती मैया. जयहनुमान जी
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श्री विवेक प्रकाश पद्मश्री श्री अनूप जलोटा जी एवं गायिका श्रीमती दीप्ती चतुर्वेदी जी |
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श्री अनूप जलोटा जी श्रीमती दीप्ती चतुर्वेदी जी एवं श्री विवेक प्रकाश जी |
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दैनिक भाष्कर |
यह प्रयाग है यहाँ धर्म की ध्वजा निकलती है
प्रयाग में [इलाहाबाद में धरती का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण अध्यात्मिक मेला लगता है चाहे वह नियमित माघ मेला हो अर्धकुम्भ या फिर बारह वर्षो बाद लगने वाला महाकुम्भ हो |इस गीत की रचना मैंने २००१ के महाकुम्भ में किया था और इसे जुना पीठाधीश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज को भेंट किया था |
यह प्रयाग है |
इसके पीछे राजा चलता
रानी चलती है।
महाकुम्भ का योग
यहां वर्षों पर बनता है
गंगा केवल नदी नहीं
यह सृष्टि नियंता है
यमुना जल में, सरस्वती
वाणी में मिलती है।
यहां कुमारिल भट्ट
हर्ष का वर्णन मिलता है
अक्षयवट में धर्म-मोक्ष का
दीपक जलता है
घोर पाप की यहीं
पुण्य में शक्ल बदलती है।
रचे-बसे हनुमान
यहां जन-जन के प्राणों में
नागवासुकी का भी वर्णन
मिले पुराणों में
यहां शंख को स्वर
संतों को ऊर्जा मिलती है।
यहां अलोपी, झूंसी,
भैरव, ललिता माता हैं
मां कल्याणी भी भक्तों की
भाग्य विधाता हैं
मनकामेश्वर मन की
सुप्त कमलिनी खिलती है।
स्वतंत्रता, साहित्य यहीं से
अलख, जगाते हैं
लौकिक प्राणी यही
अलौकिक दर्शन पाते हैं
कल्पवास में यहां
ब्रह्म की छाया मिलती है।
बहुत-बहुत बधाई आपको सर।
ReplyDeleteआपकी यह सराहनीय उपलब्धि आपके चिट्ठाकार साथियों के लिए गर्व और
हर्ष का विषय है।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ जनवरी २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपका हृदय से आभार. सादर अभिवादन
Deleteबधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन
Deleteहम तो रचना पढ़ते पढ़ते मन से प्रयाग घूम आए, इस बार कुंभ स्नान की इच्छा पूरी होना संभव नहीं परंतु कुंभ के मानसिक दर्शन तो हो ही गए . सुंदर सरल संग्रहणीय रचना.
ReplyDeleteहर हर गंगे. सादर प्रणाम. आपकी कामना पूर्ण हो हार्दिक शुभकामनायें
Deleteबहुत-बहुत बधाई
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर प्रणाम
Deleteआपके पेज पर लिखना कठिन हो जाता है या फिर मैं ही अज्ञानी.... खैर बहुत बहुत बधाई हो।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका. सादर अभिवादन.
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