Sunday 30 June 2024

एक गीत -मन किसी को याद करता है

 

चित्र साभार गूगल 
एक गीत -मन किसी को याद करता है 

जब गुलाबी फूल खिलते हैं 

मौसमों से रंग मिलते हैं 

पोछता हूँ धूल जब तस्वीर से 

मन किसी को याद करता है.


हाथ जब मेंहदी रचाते हैं 

पेड़ पंछी गुनगुनाते हैं 

धूप को जब छाँह मिलती है 

सुरमई जब शाम ढलती है 

खिड़कियों पर टांगकर पर्दे 

मौन भी संवाद करता है 

मन किसी को याद करता है.


चिट्ठियों के दिन कहाँ खोये 

कब हँसे हम और कब रोये 

मन लिखे भूली कथाओं को 

प्रेम की पावन ऋचाओं को 

प्रेम और वैराग्य का स्वागत 

यह इलाहाबाद करता है.

मन किसी को याद करता है.


पथ कभी छूटे नहीं मिलते 

हर समय गुड़हल नहीं खिलते 

वक्त ही हमको नई आवाज़ देता है

आम्रपाली को वही सुर साज देता है 

गीत लिखते हम मगर जादू 

साज पर नौशाद करता है

मन किसी को याद करता है.

कवि -जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


Sunday 16 June 2024

एक गीत -गंगा हमको छोड़ कभी इस धरती से मत जाना

 

गंगा तट हरिद्वार 

गंगा दशहरा की हार्दिक शुभकामनायें 


एक गीत -गंगा हमको छोड़ कभी 


गंगा हमको छोड़ कभी 

इस धरती से मत जाना 

माँ जैसे कल तक बहती थी 

वैसे बहती जाना.


तुम हो तो ये पर्व अनोखे 

ये साधू, सन्यासी,

तुमसे कनखल, हरिद्वार है 

तुमसे पटना, काशी,

जहाँ कहीं हर हर गंगे हो 

पलभर माँ रुक जाना.


भक्तों के ऊपर ज़ब भी 

संकट गहराता है,

सिर पर तेरा हाथ 

और आँचल लहराता है,

मुझको भी है तेरे 

पावन तट पर दीप जलाना.


माँ तुम नदी सदानीरा हो 

कभी न सोती हो,

गोमुख से गंगासागर तक 

सपने बोती हो,

जहाँ कहीं बंजर धरती हो 

माँ तुम फूल खिलाना.


राजा, रंक सभी की नैया 

हँसकर पार लगाती,

कंकड, पत्थर, शंख, सीपियाँ 

सबको गले लगाती,

तेरे तट पर बैठ अघोरी

 सीखे मंत्र जगाना.


छठे छमासे माँ हम 

तेरे तट पर आएंगे,

पान फूल, सिंदूर 

नारियल तुम्हें चढ़ाएंगे,

मझधारों में हम ना डूबें 

माँ तुम पार लगाना.


कवि -जयकृष्ण राय तुषार

यह गीत मेरे प्रथम संग्रह में प्रकाशित है.

गंगा मैया 

Monday 3 June 2024

एक प्रेम गीत -वीणा के साथ तुम्हारा स्वर हो

  

चित्र साधार गूगल 


एक गीत -वीणा के साथ तुम्हारा स्वर हो 

फूलों की 
सुगंध वीणा के 
साथ तुम्हारा स्वर हो.
इतनी सुन्दर 
छवियों वाला 
कोई प्यारा घर हो.

धान -पान के 
साथ भींगना 
मेड़ों पर चलना,
चिट्ठी पत्री 
लिखना -पढ़ना 
हॅसकर के मिलना,
मीनाक्षी आंखें 
संध्या की 
पाटल सदृश अधर हो,

ताल-झील 
नदियों से 
पहले हम बतियाते थे,
कुछ बंजारे 
कुछ हम 
अपना गीत सुनाते थे,
हर राधा के 
स्वप्नलोक में 
कोई मुरलीधर हो.

इंद्रधनुष की 
आभा नीले 
आसमान में निखरी,
चलो 
बैठकर पढ़ें 
लोक में प्रेम कथाएँ बिखरी,
रिमझिम 
वाले मौसम में 
फिर से साथ सफ़र हो.

सबकी चिंता 
सबका सुख दुःख 
मिलकर जीते थे,
निर्गुण गाते हुए 
ओसारे 
हुक्का पीते थे,
ननद भाभियों की 
गुपचुप फिर 
घर में इधर उधर हो.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 
चित्र साधार गूगल 


Sunday 2 June 2024

एक सामयिक गीत -केरल से उड़ या मेघा बंगाल से

 

चित्र साधार गूगल 

एक ताज़ा सामयिक गीत 


केरल से 

उड़ या 

मेघा बंगाल से.

खुशबू वाले 

फूल 

झर रहे डाल से.


हांफ रहे 

हैँ हिरण 

राम क्या मौसम है,

जंगल में 

चिड़ियों का 

कलरव बेदम है,

हंस 

पियासे 

झाँक रहे नभ ताल से.


पारो पोछे 

सुबह 

पसीना पल्लू से,

हवा गरम 

आ रही 

श्रीनगर, कुल्लू से,

मोर मोरनी 

थके 

लग रहा चाल से.


चम्पा, बेला

गुड़हल

मन से खिले नहीं,

इस मौसम 

कपोत के 

जोड़े मिले नहीं,

उड़ी 

इत्र की महक 

सभी रुमाल से.

कवि जयकृष्ण राय तुषार

चित्र साधार गूगल 


Saturday 1 June 2024

एक गीत -गर्म तवे सी धरती

 

चित्र साभार गूगल 

एक सामयिक गीत 

आज 10जून को दैनिक जागरण 
में यह गीत प्रकाशित 



गर्म तवे सी 
धरती 
पत्ते -फूल सभी मुरझाए.
इस दुरूह 
मौसम में 
कोई राग मल्हार सुनाए.

गाद भरी 
नदियों झीलों में 
सिर्फ नयन भर जल है,
अनियंत्रित 
विकास मौसम के 
साथ स्वर्ण मृग छल है,
जल विहीन 
बादल चातक की 
कैसे प्यास बुझाए.

पीपल, नीम 
उपेक्षित 
आँगन सजे बोनसाई,
क़ातिल 
लगने लगा 
सुहाना मौसम कैसे भाई,
भोर, साँझ 
दिन -रात 
एक सा पारा हमें रुलाए.

पंखा झलते 
उँटी, चम्बा 
औली, कुल्लू मनाली,
बरखा रानी 
की आभा से 
दसों दिशाएं खाली,
मैना 
सूखी हुई डाल पर 
अपनी पीठ खुजाए.

कवि जयकृष्ण राय तुषार 

चित्र साभार गूगल 


एक ग़ज़ल -वो अक्सर फूल परियों की तरह

  चित्र साभार गूगल  बेटियों /स्त्रियों पर लगातार लैंगिक अपराध से मन दुःखी है. कभी स्त्रियों के दुख दर्द पर मेरी एक ग़ज़ल बी. बी. सी. लंदन की न...